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बांध और बिजली के लिए अपने घर में ही अस्तित्व की लड़ाई हार रही यमुना

उत्तराखंड में लखवार-व्यासी जलविद्युत परियोजना का पहला चरण लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन विरोध, भूमि अधिग्रहण और बढ़ती आपदाओं की जटिलताओं का मतलब है कि 50 साल पुरानी परियोजना पर बहस खत्म नहीं हुई है।
<p>यमुना नदी पर व्यासी जलविद्युत परियोजना पर काम लगभग पूरा हो गया है। इस स्टेशन से फरवरी से बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। (फोटो: वर्षा सिंह)</p>

यमुना नदी पर व्यासी जलविद्युत परियोजना पर काम लगभग पूरा हो गया है। इस स्टेशन से फरवरी से बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। (फोटो: वर्षा सिंह)

उत्तर भारत में उत्तराखंड में, व्यासी जलविद्युत परियोजना जल्द ही बिजली पैदा करना शुरू कर देगी। 120 मेगावाट का यह स्टेशन 420 मेगावाट की लखवार-व्यासी परियोजना का हिस्सा है, जो यमुना नदी पर सबसे बड़ा जलविद्युत बांध परिसर है। अगले चरण पर काम, व्यासी बांध के 5 किलोमीटर ऊपर 300 मेगावाट लखवार परियोजना, इस साल शुरू होने वाली है।

लगभग आधी सदी पहले अवधारणा की गई थी, यह परियोजना 1992 में रुक गई थी। पुरानी मंजूरी के आधार पर इसे 2014 में विवादास्पद रूप से पुनर्जीवित किया गया था। कोई पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, स्थानीय परामर्श या आपदा जोखिम अध्ययन नहीं किया गया है।

“दिसंबर के आखिरी हफ्ते में व्यासी जलविद्युत परियोजना की एक टर्बाइन का ट्रायल किया गया। यमुना का पानी बिलकुल ही कम रह गया। लोग डर गए कि यमुना तो बिलकुल सूख गई। पानी कम होने से मछलियां सतह पर आ गईं। कोई डंडों से तो कोई पत्थर से मछिलयों को मार रहा था। वे तड़प रही थीं। वो बहुत दिल तोड़ देने वाला दृश्य था”।

ये बताते हुए यमुना स्वच्छता समिति के सदस्य यशपाल तोमर की आवाज़ कांपती है।

“हमने स्थानीय प्रशासन और उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएन) के अधिकारियों से यमुना में पानी छोड़ने की बात की। वे बार-बार यमुना का जलस्तर कम कर देते हैं। हम उनसे कहते हैं पानी छोड़िए नहीं तो मछलियां मर जाएंगी।

29 तारीख की सुबह अधिकारियों के साथ तस्वीरें साझा की गईं और दोपहर में कुछ पानी छोड़ा गया। अगर पानी ठीक से नहीं छोड़ा गया तो उन्होंने कहा, “व्यासी डैम से पावर हाउस के बीच 5-6 किलोमीटर तक यमुना नदी नहीं रह जाएगी।” यह नदी का वह खंड है जिसे एक सुरंग के माध्यम से मोड़ा जाता है। सुरंग की सीधी लंबाई 2.7 किमी है, लेकिन यह नदी के 5 किमी के हिस्से को प्रभावित करती है।

A reservoir has been built on the Yamuna for the Vyasi Hydroelectric Project, Varsha Singh
व्यासी परियोजना के लिए टर्बाइनों को चलाने वाली ऊर्जा पैदा करने के लिए यमुना पर एक जलाशय बनाया गया है। यह 621 मीटर गहरा है। एक टर्बाइन का परीक्षण दिसंबर 2021 में किया गया था। (फोटो: वर्षा सिंह)

प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी (नाम नहीं ज़ाहिर करना चाहते) बताते हैं कि दिसंबर-2021 से व्यासी बांध के लिए यमुना पर बन रही झील ने आकार लेना शुरू कर दिया है। तकरीबन 5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वाली झील में पानी का जलस्तर 621 मीटर तक आ गया है। अधिकतम जलस्तर 631 मीटर तक तय किया गया है। डैम पर 590 मीटर झील का बेस लेवल है। डैम पर पानी की गहराई करीब 40 मीटर तक होगी। फरवरी से व्यासी की दोनों टर्बाइन बिजली बनाने के लिए तैयार हो जाएंगी।

लोहारी गांव

व्यासी परियोजना से आसपास के 6 गांव के 334 परिवार प्रभावित हो रहे हैं। इनमें से एक जौनसार-भाबर की अनूठी संस्कृति और परंपरा वाला जनजातीय आबादी वाला गांव लोहारी भी है। 72 परिवार वाला ये पूरा गांव झील में समा जाएगा। लेकिन पुनर्वास और मुआवज़े को लेकर ग्रामीणों का राज्य सरकार से समझौता नहीं हो सका है।

लोहारी गांव की महिलाएं यमुना पर बनी झील का गांव की ओर चढ़ता पानी दिखाती हैं। आम के पेड़ पानी में डूब रहे हैं। पशुओं की छानी (पशुओं को रखने की जगह) झील की दूसरी तरफ चली गई है। पशुओं तक पहुंचने के लिए बनाया गया बांस का कच्चा पुल झील में समा चुका है। कुछ पनचक्कियां (water mill) पानी में समा चुकी हैं। शमशान घाट पूरा डूब चुका है।

वे गांव के खेत पर लगाया गया पीला निशान दिखाती हैं। जो 626 मीटर का स्तर दर्शाता है। यहां तक पानी चढ़ने पर उनके खेत डूब जाएंगे। 631 मीटर पर पूरा गांव डूब जाएगा। बेहद सुंदर-पर्वतीय शैली में लकड़ियों से बने दो मंज़िले घर झील में समा जाएंगे। एक पूरी सभ्यता डूब जाएगी।

ये बताते हुए लोहारी गांव की महिलाओं की आंखों से आंसू छलक जाते हैं। झील में खड़े होकर वे बांध के लिए अपना प्रतिरोध दर्ज कराती हैं।

Women from Lohari village stand in the rising waters of the lake created for the Lakhwar-Vyasi project, Varsha Singh
व्यासी परियोजना के लिए बनाई गई झील के बढ़ते पानी में खड़ीं लोहारी गांव की महिलाएं (फोटोः वर्षा सिंह)
A traditional house in Lohari village, Uttarakhand, Varsha Singh
लोहारी गांव में एक पारंपरिक घर (फोटोः वर्षा सिंह)
Reservoir created for the Lakhwar-Vyasi project in Uttarakhand, Varsha Singh
जलाशय का पानी गांव में पहुंच गया है। बाग, खेत और श्मशान घाट जलमग्न हो गए हैं। (फोटोः वर्षा सिंह)

ज़मीन के बदले ज़मीन की मांग

तकरीबन 70 साल की गुल्लो देवी कहती हैं “रात को नींद टूटती है तो हम रात को भी रोते हैं। झील हमारे गांव तक पहुंच गई है। सरकार कहती है कि पैसे ले लो और अपनी ज़मीन हमें दे दो। हमारी मांग है कि हमें पैसे नहीं ज़मीन के बदले ज़मीन चाहिए। हमारे गांव को एक जगह बसा दो। दो दिन की बारिश में ही झील हमें डराती है”।

50 वर्ष की चंदा चौहान कहती हैं “हम अपनी पुरखों की संपत्ति सरकार को दे रहे हैं। गेहूं, मक्की, अदरक, मिर्च, प्याज-लहसुन, हल्दी, दाल सब उगाने वाले हमारे ये खेत डूब रहे हैं। हम खेती कहां करेंगे”।

सुचीता तोमर लोहारी गांव की आशा कार्यकर्ता भी हैं। वह कहती है “हमसे टुकड़े-टुकड़े में ज़मीन ली जा रही है और टुकड़े-टुकड़े में मुआवजा दिया जा रहा है। कुछ ज़मीनें सन् 1972 में हमारे पुरखों से ले ली। कुछ ज़मीन अब ले रहे हैं। फिर कहते हैं कि लखवाड़ परियोजना के समय थोड़ी सी ज़मीन लेंगे। हमारा कहना है कि एक ही बार में ज़मीन लो। जो थोड़ी बहुत ज़मीन यहां बची रह जाएगी और हमें यहां से हटा देंगे तो उसकी देखरेख कैसे होगी। सरकार ग्रामीणों को छल रही है”।

पुनर्वास और ज़मीन के बदले ज़मीन की मांग को लेकर लोहारी गांव के लोगों ने 5 जून से 2 अक्टूबर-2021 तक  धरना प्रदर्शन किया। ग्रामीण राजेंद्र सिंह तोमर कहते हैं “वो हमारे खेतों में काम करने का समय था। लेकिन हम अपने बच्चों के साथ धरना देते रहे। 2 अक्टूबर को तड़के 4 बजे पुलिस फोर्स आई और हमें देहरादून के जेल में डाल दिया। 5 दिन बाद हाईकोर्ट से ज़मानत मिली। हम अपनी मातृभूमि के लिए धरना दे रहे थे। हम जनजातीय क्षेत्र के लोग हैं। कानून भी कहता है कि एससी-एसटी (अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति) को ज़मीन के बदले ज़मीन ही दी जाएगी”।

Document from the 1972 agreement between the government and Lohari villagers for the Lakhwar-Vyasi project, Varsha Singh
सरकार और लोहारी के ग्रामीणों के बीच 1972 के समझौते का एक दस्तावेज (फोटो: वर्षा सिंह)

अधिग्रहण

लोहारी गांव लखवाड़ और व्यासी दोनों परियोजनाओं से प्रभावित हो रहा है। लखवाड़-व्यासी परियोजना के लिए वर्ष 1972 में सरकार और ग्रामीणों के बीच ज़मीन अधिग्रहण का समझौता हुआ था। 1977-1989 के बीच गांव की 8,495 हेक्टेअर भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है। जबकि लखवाड़ परियोजना के लिए करीब 9 हेक्टेअर ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना बाकी है।

यमुनाघाटी बांध (लखवाड़-व्यासी) प्रभावित समिति-लोहारी के सचिव दिनेश सिंह तोमर वर्ष 1972 के समझौते के दस्तावेज दिखाते हैं। जिसमें भविष्य में अधिग्रहण पर ज़मीन के बदले ज़मीन की बात लिखी थी।

उत्तराखंड सरकार वर्ष 2021 में कैबिनेट बैठक में इस मांग को ख़ारिज कर चुकी है।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत पुनर्वास के लिए जनसुनवाई और 70% प्रभावितों की सहमति होनी चाहिए। लोहारी गांव में जनसुनवाई नहीं हुई।

दिनेश बताते हैं कि पिछले वर्ष नवंबर में पुलिस फोर्स के साथ प्रशासन और यूजेवीएन के अधिकारी गांव आए। हमारी परिसंपत्तियों का आधा-अधूरा मूल्यांकन किया। हमने मूल्यांकन के लिए अपनी समहति नहीं दी। वे बाहर से हमारे घरों का आकार नापकर ले गए।

जब हमें यहां से हटा दिया जाएगा तो हम बची हुई छोटी-सी जमीन की देखभाल कैसे करेंगे?
सुचिता तोमर, लोहारी गांव में आशा कार्यकर्ता

महिलाएं अपने घरों के अंदर लकड़ी की फर्श, छत, छोटे-छोटे कमरे, रसोई दिखाती हैं और पूछती हैं कि क्या बाहर से लंबाई-चौड़ाई नापकर हमारे इन घरों की कीमत निकाली जा सकती है।

दिक्कत ये है कि 1970 से 2022 के बीच कई पीढ़ियां गुज़र गईं। पुरखों को दिए गए मुआवजे और समझौते के आधार पर मौजूदा पीढ़ी को विस्थापित होना है। गांववाले कहते हैं सरकार हमें हमारी संपत्ति की जो कीमत दे रही है उससे हम हम अपने लिए दो कमरे का घर नहीं बना सकते। खेती तो दूर की बात है।

Lohari villagers in Uttarakhand want land in compensation for the Lakhwar-Vyasi project, Varsha Singh
ग्रामीणों का कहना है कि मुआवजे में जमीन की मांग पूरी नहीं होने पर वे गांव खाली नहीं करेंगे. उन्होंने सरकारी अधिकारियों को अपने घरों में अपने मूल्य का अनुमान लगाने की अनुमति नहीं दी है। (फोटो: वर्षा सिंह)

आपदा और बांध

व्यापक प्रभाव मूल्यांकन और बांध के प्रभाव पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं होने के कारण, यह इस क्षेत्र के नाजुक भूगोल को कैसे प्रभावित कर रहा है, इसका एकमात्र ज्ञान आपदाओं की एक श्रृंखला है। जैसे ही थर्ड पोल के संवाददाता ने देहरादून से विकासनगर से लोहारी होते हुए 66 किलोमीटर की दूरी तय की, उन्होंने कई भूस्खलनों को पार किया। परियोजना के लिए बनी एक सुरंग से करीब 400 मीटर पहले सड़क पर इतना मलबा था कि वाहनों का गुजरना नामुमकिन था.

Landslide on a road in Uttarakhand, near a tunnel built for the Lakhwar-Vyasi project, Varsha Singh
9-10 जनवरी को बारिश के मौसम में भूस्खलन से निकलने वाला मलबा सड़क को अवरुद्ध कर देता है। दूरियों में एक सुरंग है जिसे व्यासी परियोजना के हिस्से के रूप में बनाया गया है। (फोटो: वर्षा सिंह)

यमुना की स्वच्छता के लिए यमुना घाटी में यमुना स्वच्छता समितियां बनाई गई हैं। विकासनगर में समिति के उपाध्यक्ष प्रवीन तोमर यहां यमुना में मिल रहे बरसाती नाले को दिखाते हैं। “पिछले वर्ष अगस्त में भूस्खलन के बाद नाले में 10 फीट मलबा आया। बुजुर्ग कहते हैं कि हमने इस नाले में इतना मलबा कभी नहीं देखा। हमारी पनचक्की पूरी तरह डूब गई। आपदाएं अब पहले से ज्यादा भयंकर रूप में आ रही हैं”।

वे प्रोजेक्ट निर्माण के लिए बनाया गया डंपिंग यार्ड भी दिखाते हैं। जिसका मलबा यमुना में मिल रहा है। इस संवाददाता ने भी ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण का मलबा यमुना के ठीक किनारे गिराए जाने की तस्वीरें लीं।

गैर-सरकारी संस्था साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल से जुड़े भीम सिंह रावत उत्तराखंड में बादल फटने जैसी तीव्र वर्षा वाली घटनाओं की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। वह बताते हैं कि 25-27 अगस्त के बीच पूरे राज्य में भारी बरसात हुई थी। देहरादून में गंगा-यमुना बेसिन के बीच कम से कम 7 बादल फटने की घटनाएं हुई थीं। जिससे व्यासी परियोजना क्षेत्र भी प्रभावित हुआ था।

व्यासी परियोजना के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर राजीव अग्रवाल कहते हैं कि आपदा से प्रोजेक्ट साइट की बाउंड्री वॉल पर असर पड़ा लेकिन अंदर नुकसान नहीं हुआ।

लोहारी गांव की महिलाएं भी कहती हैं “इन बांधों और बिजली के प्रोजेक्ट से सारे पहाड़ खोखले हो गए हैं। पिछले साल चमोली के तपोवन में बादल फटा था। केदारनाथ आपदा में भारी तबाही हुई थी। ऐसे ही अगर यहां हो गया तो हम कहां जाएंगे। हमारे बुजुर्गों ने समझौता किया था। अगर हम उस समय होते तो ये प्रोजेक्ट बनने नहीं देते”। 

Silt drains into the Yamuna River in Uttarakhand, Varsha Singh
गाद यमुना में गिरती है। 2021 के मानसून में व्यासी परियोजना क्षेत्र के आसपास बादल फटने की घटनाएं हुई थीं। विकासनगर के ग्रामीणों का कहना है कि अभूतपूर्व मात्रा में मलबा उनके नाले में बह गया। (फोटो: वर्षा सिंह)

यमुना की हार

नदी किनारे सभ्यताओं का जन्म हुआ और अब इन्हीं नदियों से बिजली पैदा करने के लिए सभ्यता डूब रही है।  नदी और इसका जलीय जीवन भी।

यमुना जिए अभियान (Yamuna live campaign) चला रहे मनोज मिश्रा कहते हैं “प्राकृतिक आपदाओं के बीच लखवाड़ी-व्यासी परियोजना से तबाही की आशंकाएं जुड़ी हुई हैं। व्यासी के साथ यमुना फिर भी जी सकती है, लखवाड़ के साथ नहीं। लखवाड़ के लिए भविष्य में पानी की जिस जरूरत का हवाला दिया जाता है वो भी तार्किक नहीं”।

परियोजना के समर्थन में मुख्य तर्कों में से एक यह है कि यह पांच राज्यों, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को पीने के पानी की आपूर्ति करेगा। लेकिन दिल्ली जल बोर्ड ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि पुनर्नवीनीकरण पानी पर अधिक निर्भरता से उसे अपनी पानी की जरूरतों को आसानी से प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है। 2015 में दिल्ली के जल मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पानी के उचित प्रबंधन का मतलब होगा कि शहर को बाहरी स्रोतों की आवश्यकता नहीं होगी।

“2 अक्टूबर को पुलिस ने धरने से हमें उठा लिया। लेकिन इस गांव से नहीं उठा सकते। पूरे गांव ने मन बना रखा है। जिस दिन गांव से हमको उठाएंगे, उस दिन कोई अनहोनी हुई तो ज़िम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी”।

व्यासी परियोजना के विरोध में झील किनारे खड़े ग्रामीण गुस्से से ये कहते हैं।

नदी, आपदा और विरोध के स्वरों के उलट, 14 फरवरी 2022 को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जन समर्थन जुटाने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 दिसंबर को व्यासी परियोजना का लोकार्पण कर गए। जिसका कुछ काम अब भी बाकी है।

डूबते लोहारी गांव में 5 महीने पहले लगे सोलर स्ट्रीट लाइट भी दिखे। बांध के खतरे के बीच भविष्य की ऊर्जा की उम्मीद के तौर पर।

A solar-powered light in Lohari village, Uttarakhand, Varsha Singh
पांच महीने पहले लोहारी में लगाई गई सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइट (फोटो: वर्षा सिंह)

थर्ड पोल ने व्यासी परियोजना के एक अधिकारी के साथ लखवार-व्यासी बांध परिसर के आसपास की शिकायतों और चिंताओं पर बात की, जिसमें यमुना नदी की जैव विविधता पर प्रभाव, भूमि मुआवजे और पुनर्वास के मुद्दे और आपदाओं के जोखिम को बढ़ाने के संदर्भ में प्रभाव शामिल हैं। . उन्होंने इस कहानी के रिकॉर्ड पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

कमेंट्स (4)

सरकार का तानाशाही रवय्या देखने को मिला है।लखवाड़ व्यासी बांध से आने वाले भविष्य में खतरा ओर बढेगा।ग्राम लोहारी के साथ नाइंसाफी हो रही है।

लोहारी के ग्रमीणो की मांग ज्याज है उन्हें जमीन के बदले जमीन मिलनी ही चाहिये ।

सरकार ने पूरा तानाशाही रवय्या अपना रखा है ग्रामीणों ओर उनके बच्चों तक को सरकार ने रोड पर लाने में कोई कसर नही छोड़ी जहाँ एक तरफ सरकार द्वारा पलायन रोकने के लिए बहुत प्रयास किये जा रहे है वही सरकार एक मात्र लोहारी गांव को विस्थापित करने में कोई रुचि नही ले रही है
यदि ग्रामीणों को जमीन के बदले जमीन नही दी तो किसान अपना जीवन यापन कैसे करेगा क्या किसानों को मरने के लिये सरकार द्वारा यू ही छोड़ दिया जायेगा
ग्रामीणों के जीवनयापन का क्या साधन होगा यदि ग्रामीणों को जमीन नही दी जायेगी
क्या सरकार द्वारा ग्रामीणों को गोद लिया जाएगा ।

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