न्याय

जलवायु परिवर्तन की वजह से गंगा डेल्टा में स्कूल छोड़ रहे हैं बच्चे

चक्रवात प्रभावित सुंदरबन से लेकर बांग्लादेश के सूखाग्रस्त इलाकों तक, लड़कियां रिकॉर्ड संख्या में स्कूल छोड़ रही हैं। कम उम्र में ही इनकी शादी हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण इन इलाकों के परिवार अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
<p>सुंदरबन में मौसुनी द्वीप पर एकमात्र निजी प्राथमिक विद्यालय, मां शारदा शिशु निकेतन में तीसरी कक्षा के विद्यार्थी। यह स्कूल 200 रुपये (2.5 डॉलर) प्रति माह की फीस लेता है। कुछ परिवार फीस की यह रकम भी नहीं दे सकते। (फोटो: <a href="https://www.instagram.com/myshotstories/">चीना कपूर</a>/द् थर्ड पोल)</p>

सुंदरबन में मौसुनी द्वीप पर एकमात्र निजी प्राथमिक विद्यालय, मां शारदा शिशु निकेतन में तीसरी कक्षा के विद्यार्थी। यह स्कूल 200 रुपये (2.5 डॉलर) प्रति माह की फीस लेता है। कुछ परिवार फीस की यह रकम भी नहीं दे सकते। (फोटो: चीना कपूर/द् थर्ड पोल)

बनानी देब 10वीं कक्षा की अपनी पुरानी नोटबुक को ध्यान से देखती है और अपने स्कूल के दिनों की याद करती हैं। इस साल 15 साल की बनानी को स्कूल छोड़ना पड़ा और इसकी शादी एक 11 साल बड़े आदमी से करा दी गई। जिससे शादी हुई है वह मौसुनी द्वीप के बलियारा गांव का रहने वाला है। अप्रैल में वह बनानी देब के परिवार के पास शादी का प्रस्ताव लेकर आया था। 

कढ़ाई वाली साड़ी और सोने के आभूषण पहने बनानी देब का कहना है कि शुरुआत में वह शादी को लेकर उत्साहित थी। लेकिन जल्द ही हकीकत से उसका सामना हुआ। अब उसे अपने स्कूल के दोस्तों और अपने पति की याद आती है, जो दिहाड़ी के रूप में काम की तलाश में शादी के दो महीने बाद झारखंड के लिए रवाना हो गए थे।

देब का कहना है कि उसे पता था कि कम उम्र में ही उसकी शादी हो जाएगी। उसकी कई सहेलियों ने भी उसी समय स्कूल छोड़ दिया जिस समय उसने अपनी पढ़ाई छोड़ी थी- लड़कियों की जल्दी शादी हो जाती है और लड़के काम की तलाश में दूसरे राज्यों की तरफ चले जाते हैं। 

A girl sits in a dark room looking at notebooks
बनानी देब, मौसुनी के बलियारा गांव में अपने माता-पिता के घर में अपने पुराने कमरे में। अप्रैल 2022 में, देब की शादी सिर्फ 15 साल की उम्र में हुई। (फोटो: चीना कपूर / द् थर्ड पोल)

भारत के पूर्वी तट पर बसा, मौसुनी, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वन, सुंदरबन के 54 बसे हुए द्वीपों में से एक है। यह छोटा द्वीप दक्षिण में बंगाल की खाड़ी के साथ गंगा नदी की वितरिकाओं से घिरा है। मौसुनी पर रहने वाले लगभग 25,000 लोग केवल नाव से ही मुख्य भूमि तक पहुंच सकते हैं।

पिछले 20 वर्षों में, यह द्वीप सुंदरबन के सबसे तेजी से घटते हिस्सों में से एक बन गया है। तीन वर्षों में, तीन चक्रवातों – बुलबुल, अम्फान और यास – ने यहां की भूमि को नष्ट कर दिया है। खारे पानी का प्रभाव बढ़ गया है। चक्रवातों की वजह से लोगों की संपत्ति और आजीविका नष्ट हुई है। जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी आपदाएं बार-बार आ रही हैं और उनकी तीव्रता बढ़ रही है। 

जलवायु आपदाओं के कारण आने वाली आपदाओं के साथ ही कोविड-19 लॉकडाउन इस द्वीप पर रहने वालों के लिए बेहद कष्टकारी रहा है, जो कृषि और मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। 

बनानी देब के पिता सुनील देब कहते हैं, “लगातार तीन चक्रवातों के बाद इतनी अनिश्चितता थी कि हमारी नींद उड़ी हुई थी। हमारे पास एक एकड़ जमीन और एक छोटा तालाब है। एक एकड़ में हम फसलें उगाते थे और तालाब में मछली पालन करके बाजार में बेचते थे। लेकिन 2021 में चक्रवात यास ने खड़ी फसल को बर्बाद कर दिया और मीठे पानी की सभी मछलियों को मार डाला।”

Wooden flood defences unable to hold back the sea
सितंबर 2022 की शुरुआत में पूर्णिमा के दिन उच्च ज्वार। जब ये ज्वार विशेष रूप से उच्च होते हैं, तो बाढ़ से बचाव के इस तरह के उपाय अक्सर नजर आते हैं। मौसुनी द्वीप, उच्च पानी के निशान से केवल तीन मीटर ऊपर है और अक्सर खारे पानी से भर जाता है। (फोटो: चीना कपूर/द् थर्ड पोल)

देब कहते हैं कि लगातार चक्रवातों के कारण खारा पानी उनके खेतों में पहुंच गया। इससे न केवल फसलें बल्कि कम से कम अगले पांच वर्षों के लिए जमीन भी बर्बाद हो गई। उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में, स्थानीय लोगों की- जिनकी आय का मुख्य स्रोत पान का पत्ता है जिसे वे उगाते और बेचते हैं- कोई फसल नहीं हुई है।

देब कहते हैं कि चक्रवात यास के बाद, छह लोगों का उनका परिवार, उनके बेटे द्वारा भेजे गए पैसे से चल रहा था जो गुजरात में एक मजदूर के रूप में काम कर रहा है, लेकिन वह रकम “पर्याप्त नहीं” थी। इन परिस्थितियों की वजह से बनानी की जल्दी शादी करने का फैसला हुआ।

रिकॉर्ड संख्या में बच्चे जल्दी पढ़ाई छोड़ देते हैं

द्वीप पर चलने वाले दो माध्यमिक विद्यालयों में से एक मौसुनी कॉपरेटिव स्कूल है। इस स्कूल के प्रधानाध्यापक बिनय शी कहते हैं कि स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अब तक की सर्वाधिक है। वह कहते हैं, “पिछले दो वर्षों में, 14-18 आयु वर्ग के 15-20 फीसदी बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं।” 

इस वर्ष अब तक 1,306 में से 100 विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ चुके हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 151 बच्चों का था। शी का कहना है कि स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों में कम से कम 60 फीसदी लड़कियां हैं।

प्रधानाध्यापक के अनुसार, नए विद्यार्थियों के प्रवेश बढ़ रहे हैं, फिर भी “[विद्यार्थियों की] कुल संख्या वही रहती है या हर साल गिरती है”। शी का कहना है कि नौवीं कक्षा के बाद विद्यार्थियों की संख्या “बेहद गिर जाती है” क्योंकि लड़कों को काम की तलाश में बाहर भेज दिया जाता है और लड़कियों की शादी कर दी जाती है। 

एक के बाद एक कई परिवारों ने द् थर्ड पोल से कहा कि एक वक्त ऐसा था जब उनके खेत पूरे गांव का पेट भर सकते थे। अब उन्हें अपने बच्चों का भरण-पोषण करना ही मुश्किल हो रहा है। ये लोग बताते हैं कि परिवारों पर भरण-पोषण का दबाव काफी ज्यादा हो गया है, ऐसे में लोग अपनी बेटियों को स्कूल से निकालने और जल्द उनकी शादी करने के लिए मजबूर हैं। 

लड़कियों के कल्याण और लंबे समय तक उन्हें स्कूल में रहने की मदद करने के लिए, 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार ने कन्याश्री प्रकल्प योजना शुरू की, जो 13-18 वर्ष की अविवाहित लड़कियों को वार्षिक छात्रवृत्ति प्रदान करती है। शी कहते हैं कि इससे शुरू में ड्रॉपआउट को कम करने में मदद मिली लेकिन चक्रवात अम्फान और यास के बाद से, अभी भी स्कूलों में लड़कियों और छात्रवृत्ति प्राप्त करने वालों की संख्या गिर रही है।

Girls at their desks in school, seen through a window
मौसुनी कॉपरेटिव स्कूल में नौवीं कक्षा की छात्राएं। मौसुनी में नौवीं कक्षा के बाद अभी भी लड़कियों की संख्या गिर रही है। इस समय विद्यार्थी 14-15 वर्ष के होते हैं। (फोटो: चीना कपूर/ द् थर्ड पोल)

साल 2019-21 के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कानून के हिसाब से न्यूनतम उम्र से, कम उम्र में शादी करने वाली लड़कियों की दर पूरे भारत में सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में है। साल 2007-08 में यह दर दूसरी सबसे ऊंची दर थी। साल 2019-21 के आंकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में 6-10 वर्ष की आयु की 99 फीसदी लड़कियां स्कूल जाती हैं, जो 15-17 आयु वर्ग के लिए गिरकर 77 फीसदी हो जाती है।

यह समस्या लड़कों को अलग तरह से प्रभावित करती है जिनकी स्कूल में उपस्थिति लड़कियों की तुलना में कम है। यह आंकड़ा 15-17 वर्ष की आयु में 67 फीसदी ही है। मौसुनी ग्राम पंचायत (ग्राम परिषद) के उप प्रमुख राम कृष्ण मंडल कहते हैं कि हर साल, कम से कम 2,000 किशोर लड़के और युवा अन्य भारतीय राज्यों जैसे गुजरात और केरल में काम की तलाश में मौसुनी छोड़ देते हैं।

कुसुमताला गांव के छत्तीस वर्षीय चंचल गिरि हाल ही में ओमान, कुवैत और अबू धाबी में विभिन्न निर्माण स्थलों पर आठ साल काम करने के बाद अपने चार साल के बेटे और पत्नी के साथ कुछ समय बिताने के लिए द्वीप पर लौटे। 2009 में, चक्रवात ऐला से उनकी फसल बर्बाद हो गई। चक्रवात की वजह से अगले कुछ वर्षों के लिए उनकी भूमि खेती योग्य भी नहीं रही। पिछले साल आए चक्रवात यास ने भूमि को फिर से अनुपयोगी बना दिया।

लगातार तीन चक्रवातों के बाद की भारी अनिश्चितता ने हमारी नींद उड़ा दी थी।
न्यूनतम कानूनी उम्र से कम उम्र में अपनी बेटी की शादी करने वाले एक पिता

अपने भाइयों में सबसे छोटे गिरि कहते हैं, “एक-एक करके, हम सभी चारों भाइयों ने काम की तलाश में द्वीप छोड़ दिया। हम यहां आते रहते हैं क्योंकि हमारे परिवार के लोग अभी भी यहां रहते हैं, लेकिन यहां लंबे समय तक रहने के लिए हमारे पास नौकरी की कोई संभावना नहीं है।” उनका कहना है कि उन्हें अपने बेटे के लिए भी ऐसे ही भविष्य की उम्मीद है।

सूखा प्रभावित बांग्लादेश के राजशाही में भी ऐसा ही हाल

सीमा पार बांग्लादेश में भी बच्चों की शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन का समान प्रभाव पड़ रहा है। राजशाही जिले के शिक्षा अधिकारी नासिर उद्दीन के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में लगभग 30 फीसदी विद्यार्थी (पांचवीं से सीनियर सेकेंडरी तक वाले) राजशाही में स्कूल छोड़ चुके हैं। इनमें बाल विवाह दर 20 फीसदी से अधिक है।

बांग्लादेश के माध्यमिक और उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा इस अगस्त में जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 में, शादी करने के लिए लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर राजशाही में 15.82 फीसदी थी, सबसे अधिक।

राजशाही के चक्रजपुर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक अब्दुस सत्तार कहते हैं, “पद्मा (नदी) में 15 जलवायु-संवेदनशील चार [नदी द्वीपों] पर केवल दो हाई स्कूल हैं और दोनों स्कूलों की लगभग 35-40 छात्राओं की हर साल शादी हो जाती है, क्योंकि चार के निवासी अत्यधिक गरीबी में रहते हैं।” 

राजशाही एक गर्म, सूखा प्रभावित क्षेत्र है। अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन बीआरएसी में एक शोधकर्ता और क्लाइमेट ब्रिज फंड सचिवालय के प्रमुख, गोलाम रब्बानी का कहना है कि 1981 और 2020 के बीच, राजशाही शहर में 30 दिनों या उससे अधिक समय तक तापमान के 38-42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने जैसे हालात सात बार हो चुके हैं। इनमें से तीन 2010, 2012 और 2014 में थे।

बढ़ता तापमान अपने आप में लड़कियों की शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता है।

ढाका में एक थिंक टैंक बांग्लादेश सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज के कार्यकारी निदेशक अतीक रहमान कहते हैं कि पिछले कुछ दशकों में, राजशाही क्षेत्र में औसत तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वह कहते हैं, ”लड़कियां परंपरागत रूप से कई कपड़े पहनती हैं। यहां तक कि गर्मी के दिनों में भी उनको कई कपड़े पहनने पड़ते हैं। लड़कियों के लिए यह बेचैनी का कारण बनता है। स्कूल के दौरान उनकी परेशानी बढ़ जाती है। यह अंततः उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर भी करता है।”

इसके अलावा, बढ़ते तापमान के अप्रत्यक्ष प्रभाव भी पड़ते हैं। जिले के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं और भयानक गर्मी से बुरी तरह प्रभावित हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण लू का प्रभाव अधिक तीव्र हुआ है और लगातार यह स्थिति बनी हुई है। इससे इन क्षेत्रों में पानी की कमी हो गई है। बाढ़ भी गंभीरता से बढ़ रही है, जिसका फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जैसे-जैसे परिवार गरीबी में पड़ते हैं, वे अपने वित्तीय दबाव को कम करने के तरीकों की तलाश करते हैं। रब्बानी का कहना है कि ये स्थितियां माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करती हैं: लड़कियों की शादी हो जाती है, इससे घर में एक व्यक्ति के भरण-पोषण की जिम्मेदारी कम हो जाती है और लड़कों को काम पर भेज दिया जाता है।

माध्यमिक और उच्च शिक्षा निदेशालय की अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के राजशाही में बाल श्रम में शामिल स्कूली उम्र के बच्चों (19 फीसदी) की दर उच्चतम है।

जलवायु परिवर्तन के साथ, डेल्टा में परेशानी बढ़ेगी

बलियारा निवासी 50 वर्षीय शेख अब्दुल्ला, मौसुनी के उन कई किसानों में से एक हैं, जिनकी तटीय जमीन खत्म हो गई है। 2016 में, उनके परिवार की पुश्तैनी जमीन का 4.5 हेक्टेयर हिस्सा – लगभग नौ फुटबॉल मैदानों के बराबर – एक ही समुद्री तूफान में खत्म हो गया। 

अपनी पत्नी और दो बहुओं के साथ रहने वाले अब्दुल्ला कहते हैं, “अगर केरल और कोलकाता में काम करने वाले मेरे दो बेटों द्वारा पैसे नहीं भेजे जाते तो हम भूख से मर जाते।” इस साल उन्होंने बची हुई जमीन के छोटे से टुकड़े में धान उगाने की कोशिश की, लेकिन पिछले साल के चक्रवात के खारे पानी ने फसल को बर्बाद कर दिया।

यह द्वीप, पानी के उच्च निशान से केवल तीन मीटर ऊपर है, और अक्सर खारे पानी से भर जाता है।

An embankment separating the sea from the land
खेत में खारे पानी की घुसपैठ को रोकने के प्रयास में मौसुनी के तट पर बनाया गया एक तटबंध (फोटो: चीना कपूर / द् थर्ड पोल)

साल 1968-69 और 2012 के बीच, मौसुनी पर 16 फीसदी भूमि खत्म हो गई थी। इसी अवधि में, भारतीय सुंदरबन लगभग 260 वर्ग किलोमीटर तक सिकुड़ गया, जो कि औसतन 6 वर्ग किमी प्रतिवर्ष की दर से था। 2001 से 2012 तक 10 वर्षों में कटाव सबसे ज्यादा थी: लगभग 90 वर्ग किमी, प्रति वर्ष लगभग 8 वर्ग किमी की दर से गायब हो गया।

कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक स्टडीज के प्रमुख और सुंदरबन के विशेषज्ञ सुगत हाजरा का कहना है कि सुंदरबन के किनारे डायमंड हार्बर में समुद्र का स्तर साल में 5 मिलीमीटर से अधिक बढ़ रहा है। इसकी तुलना में, केरल तट पर दो हजार किलोमीटर से अधिक दूर, समुद्र के स्तर में वार्षिक वृद्धि 1.8 मिमी है।

हाजरा कहते हैं, “हिंद महासागर गर्म हो रहा है।” वह कहते हैं कि समुद्र की सतह के ऊपर यह गर्म हवा उत्तर की ओर बढ़ती है, यह सुंदरबन डेल्टा में फंस जाती है। यह संचित गर्मी चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति और समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर को बढ़ाती है।

हाजरा कहते हैं कि जब तक वैश्विक उत्सर्जन में बढ़ोतरी जारी रहेगी, तब तक जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले हादसों में युवाओं की पढ़ाई छूटना भी शामिल रहेगी। वह जोर देकर कहते हैं, “इस द्वीप पर रहने वाले लोग उत्सर्जक नहीं हैं, लेकिन ये उत्सर्जन से पीड़ित हैं।”

कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

रफीकुल इस्लाम द्वारा बांग्लादेश से रिपोर्टिंग की गई है। 

यह लेख ICIMOD और GRID-Arendal द्वारा दिए ग्रांट की वजह से संभव हो पाया।