व्यवसाय

चीन-नेपाल व्यापार के असंतुलन को कैसे दर्शाता है रुद्राक्ष का बाज़ार

रुद्राक्ष बीज व्यापारियों के अनुभव दर्शाते हैं कि कैसे नेपाली सरकार के समर्थन की कमी और बाज़ार में चीन की अत्यधिक नियंत्रण की वजह से दोनों देशों के बीच व्यापार प्रभावित होते हैं।
<p><span style="font-weight: 400;">रुद्राक्ष के बीजों को हिंदू और बौद्ध धर्म में पवित्र माना जाता है। इस वजह से नेपाल के रुद्राक्ष का चीन में तेजी से निर्यात हो रहा है और चीन-नेपाल के बीच व्यापार का विस्तार हो रहा है। (छवि: थॉमस डीटुर / अलामी)</span></p>

रुद्राक्ष के बीजों को हिंदू और बौद्ध धर्म में पवित्र माना जाता है। इस वजह से नेपाल के रुद्राक्ष का चीन में तेजी से निर्यात हो रहा है और चीन-नेपाल के बीच व्यापार का विस्तार हो रहा है। (छवि: थॉमस डीटुर / अलामी)

रुद्राक्ष हिमालय की तलहटी में उगने वाले इलियोकार्पस गेनिट्रस पेड़ के सूखे बीज से बनते हैं। हिंदुओं का मानना है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है इसलिए वो इन बीजों को पवित्र मानते है। हालांकि, बौद्ध धर्म में ऐसी कोई कहानी नहीं है, लेकिन महात्मा बुद्ध के चित्रण में उन्हें रुद्राक्ष की माला पहने चित्रित किया गया है, इसलिए बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भी यह खास है। नेपाली व्यापारी भारत में बड़े पैमाने पर हिंदुओं को रुद्राक्ष के मोती बेचते रहे हैं, लेकिन कुछ सालों में इस प्रचलन में बदलाव आया है।

27 वर्षीय नीमा तमांग के लिए रुद्राक्ष बीज का मतलब चीन के लोगों के साथ व्यापार करना है। वह कहते हैं, ‘मैंने साल 2020 में चीन के लोगों को 10 हजार किलोग्राम रुद्राक्ष बीज बेचे। नेपाली लोग वार्षिक औसत 2000-3000 किलोग्राम बीज से 35 लाख नेपाली रुपये कमाते हैं। साल 2014 से चीन की ओर से रुद्राक्ष की भारी मांग है। बौद्ध प्रार्थना में इस्तेमाल होने वाले रुद्राक्ष और बोधिचित्त बीजों की मांग नेपाली किसान और व्यापारी के लिए बहुत लाभदायक रही है। 

रुद्राक्ष का ये व्यापार नेपाल और चीन के बीच के व्यापार की एक बड़ी तस्वीर दिखाता है। ये एक ऐसी परिस्थिति को दर्शाता है जिसमें नेपाल कच्चे माल का निर्यात करता है लेकिन इस व्यापार तंत्र में उसकी जगह कमज़ोर है। 

पिछले एक दशक में चीन और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों के मजबूत होने का अर्थ है कि चीनी खरीदार सीधे किसानों और तमांग जैसे बिचौलियों से बीज खरीद सकते हैं, लेकिन साल 2020 में तमांग को कुछ खास मुनाफा नहीं हुआ। दरअसल, वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए चीनी यात्रा प्रतिबंधों के चलते मांग और कीमतों में तेजी से गिरावट आई। इससे नेपाली किसानों और व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ। 

नेपाल में इस तरह के व्यापार पर केंद्रित नीति की कमी है, इसका मतलब है कि इस मामले में विक्रेता ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। वे बस चीनी खरीदारों के लौटने का इंतज़ार कर सकते हैं।

नेपाल-चीन व्यापार में नहीं है संतुलन

दोनों देशों के बीच समग्र व्यापार चीन के पक्ष में ज्यादा है। नेपाल के सीमा शुल्क विभाग के मुताबिक, नेपाल ने जुलाई, 2021 से अप्रैल, 2022 के बीच चीन से 211 अरब नेपाली रुपये का सामान आयात किया है। इसके विपरीत समान अवधि में नेपाल ने सिर्फ 62.2 करोड़ नेपाली रुपये का सामान निर्यात किया है।

नेपाल मुख्य रूप से कालीन, औषधीय पौधे, हाथ से बनाई गई पेंटिंग और मूर्तियां आदि चीन को निर्यात करता है। वित्तीय वर्ष 2020-2021 की निर्यात सूची में रुद्राक्ष 10वीं सबसे मूल्यवान वस्तु थी। नेपाल ने वित्तीय वर्ष 2020-2021 में 280,874 किलोग्राम बीजों का निर्यात किया था।

बीते कुछ समय में हुए चर्चा या डिस्कोर्स सिर्फ़ चीनी निर्यात और निवेश के इर्द गिर्द सीमित रही है। उसमें नेपाल में मूल्यवर्धन और नीतिगत सुधारों के जरिये निर्यात के विस्तार की संभावनाओं पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है। 

इसी का नतीजा है कि नेपाल रुद्राक्ष के बीज और यार्सागुम्बा (एक औषधीय गुणों वाला पौधा जिसे कीड़ा जड़ी भी कहा जाता है) को रॉ मैटेरियल या कच्चे माल के तौर पर निर्यात करता है। विश्व बैंक ने अप्रैल, 2021 की एक रिपोर्ट में कहा कि नेपाल की अप्रयुक्त निर्यात क्षमता उसके वर्तमान मूल्य से 12 गुना ज्यादा है। यह भी कहा गया कि नेपाल 2010-17 के बीच 2.2 अरब से अधिक अमेरिकी डॉलर का निर्यात चीन को करने से चूक गया।

बाजार में चीनी खरीदारों का दबदबा

तमांग कहते हैं कि नेपाली किसानों ने साल 2013-2014 से चीनी खरीदारों को रुद्राक्ष के बीज बेचना शुरू किया था। चीन में बढ़ती रुद्राक्ष की मांग ने पूर्वी नेपाल के संखुवासभा और भोजपुर जिलों के किसानों और तमांग जैसे बिचौलियों की किस्मत बदल दी। बता दें कि पूर्वी नेपाल के इन जिलों में रुद्राक्ष के बीज एकत्रित किए जाते हैं। यहां तमांग जैसे कई बिचौलिये भी मौजूद हैं, जो मंदारिन बोल सकते हैं।

क्या आप जानते हैं?

हिंदू धर्म में पवित्र और शुभ माना जाने वाला रुद्राक्ष अगर दुर्लभ किस्म का है तो इसका एक बीज 15.5 लाख रुपय से 18.6 लाख रुपय में बेचा जा सकता है।

तमांग कहते हैं, “चीन के लोग रुद्राक्ष के बीज का काफी अच्छा दाम चुकाते हैं। कई बार वे 10 से 15 लाख नेपाली रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर भी खरीदते हैं। मैं एक चीनी भाषा गाइड था, लेकिन यहां मुनाफे को देखते हुए 3 साल पहले मैं इस व्यवसाय में आ गया।” 

रुद्राक्ष के बीज बेचने के लिए भारत एक प्रमुख बाजार है, लेकिन यहां चीनी खरीदार हावी हैं। वे रुद्राक्ष की कीमत निर्धारित करते हैं क्योंकि वे रुद्राक्ष की सामान्य किस्म के लिए भी ऊंची कीमत देने की पेशकश करते हैं।

रुद्राक्ष बाजार मुख्य रूप से एक अनौपचारिक नकद व्यवसाय है। इसलिए इसके निर्यात का आंकड़ा सरकारी रिपोर्ट में दर्ज संख्या से भी अधिक हो सकता है। औसत रुद्राक्ष बीजों की तुलना में दुर्लभ किस्म के रुद्राक्ष की कीमत बहुत अधिक होती है।

वर्तमान में बोधिचित्त और रुद्राक्ष का व्यापार वन शुल्क और नगरपालिका कर को छोड़ दिया जाए तो किसी भी औपचारिक नीति के तहत नियंत्रित नहीं है। विक्रेताओं का मानना है कि नेपाल सरकार को कीमत निर्धारित करने और व्यापार को औपचारिक देने के लिए नीति बनानी चाहिए। इससे राजस्व का नुकसान भी नहीं होगा, लेकिन यह क्षेत्र आधिकारिक तौर पर उपेक्षा का शिकार है, जिसका पूरा लाभ विक्रेताओं को मिल रहा है। बिना कोई शुल्क या कर चुकाए मुनाफे की पूरी रकम उनकी जेब में आ रही है।

कोविड प्रतिबंध ने खोल दी व्यापार समर्थन की पोल

कोविड-19 महामारी के चलते रुद्राक्ष व्यापार ठप हो गया। यह दिखाता है कि बिना प्रभावी नीति और संस्थागत समर्थन के एक निर्यात वस्तु का बाजार कभी भी लड़खड़ा सकता है। दरअसल, बाजार में चीनी खरीदारों का दबदबा है। वे रुद्राक्ष के बीज की कीमत निर्धारित कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि तमांग जैसे विक्रेताओं को अपना माल चीनी व्यापारियों की ओर से निर्धारित कीमतों पर बेचना होगा। आर्थिक दृष्टि से देखें तो यहां चीनी व्यापारियों का एकाधिकार है। यानी कि जब एक खरीदार इतना प्रभावशाली हो कि वह व्यापार की शर्तें निर्धारित करे तो यह प्रभावी एकाधिकार है।

यह एकाधिकार तब और बढ़ गया जब कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाई गईं पाबंदियों के चलते चीनी नागरिकों का नेपाल आना मुश्किल हो गया। सीमाएं बंद कर दी गईं। चीन से आने और जाने वाली सभी उड़ानें रद्द कर दी गईं। केवल कुछ खरीदार दोहा और दुबई के रास्ते नेपाल पहुंचने में कामयाब हो पाए। उन्होंने पिछले वर्षों की तुलना में बेहद कम कीमत पर रुद्राक्ष खरीदने की पेशकश की। उस वक्त नेपाली किसानों के पास कोई और खरीदार नहीं था, इसलिए उनके पास कम कीमत पर बीज बेचने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था।

तमांग कहते हैं, ‘हमें चीनी खरीदारों की ओर से पेश की गई कीमतों पर ही अपना माल बेचना होगा। साल 2021 में उनके अलावा किसी ने भी मुनाफा नहीं कमाया।’

तीन साल में रुद्राक्ष की कीमत घटकर आधे से भी कम हो गई

सीमा शुल्क विभाग के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में नेपाल ने चीन को 4,44,722 किलोग्राम रुद्राक्ष के बीज का निर्यात किया, जिसकी कीमत करीब 8.67 करोड़ नेपाली रुपये थी। औसत मूल्य की बात करें तो यह 195 नेपाली रुपये प्रति किलोग्राम था। वित्तीय वर्ष 2019-20 में चीन को 264,390 किलोग्राम रुद्राक्ष निर्यात किया गया, जिसकी कीमत 3.92 करोड़ नेपाली रुपये थी। यानी कि पहली वित्तीय वर्ष की तुलना निर्यात में कमी आई थी। औसत मूल्य 149 नेपाली रुपये प्रति किलोग्राम रहा। वित्तीय वर्ष 2020-21 में निर्यात बढ़कर 280,874 किलोग्राम हो गया, जिसका औसत मूल्य घटकर 93 रुपये प्रति किलोग्राम रह गया। यानी कि तीन सालों में रुद्राक्ष के बीच की औसत कीमत घटकर आधी से भी कम हो गई।

इतनी कम कीमत का मतलब है कि रुद्राक्ष के व्यापार करने वालों को भारी घाटा हुआ है। तमांग को साल 2021 में 700,000-800,000 का नुकसान हुआ। वह कहते हैं कि इस घाटे के चलते उन्होंने 300-400 किलोग्राम बीज होटल के कमरे में स्टॉक किया हुआ है। जब तक व्यापार और सीमा प्रतिबंध नहीं हट जाते हैं, तब तक उनको संदेह है कि व्यापार अपने पहले के स्तर पर लौटेगा।

नेपाल के निर्यात को प्रभावित करने वाले कारक

नेपाल का निर्यात बुनियादी ढांचा, व्यापार समझौते और गुणवत्ता नियंत्रण की वजह से प्रभावित हो रहा है। चीन ने नेपाल के 8,000 से अधिक उत्पादों पर कोई शुल्क नहीं लगाया है। इसे लेकर पूर्व वाणिज्य सचिव पुरुषोत्तम ओझा का कहना है कि मूल नियमों के सख्त मानदंडों के चलते नेपाली उत्पादों को योजना के तहत पास होना मुश्किल हो जाता है। मंदारिन में खाद्य-प्रमाणन और लेबलिंग जैसी बाधाएं भी शामिल हैं। ओझा के मुताबिक, चीन को निर्यात परिवहन की उच्च लागत के चलते कनेक्टिविटी भी एक बड़ा मुद्दा है। समुद्री माल ढुलाई भी बेहतर नहीं है, महामारी शुरू होने के बाद से लागत प्रति कंटेनर करीब 5 गुना बढ़ गई है।

चीन के साथ नेपाल का व्यापार धीमा हुआ है, क्योंकि व्यापार समझौतों को अभी तक व्यवहार में नहीं लाया गया है। इसमें साल 2016 का वह बहुप्रतीक्षित समझौता भी शामिल है, जिसमें नेपाल को पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति करने के मामले में भारत के एकाधिकार को खत्म किया गया था।

चीनी विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा दौरान नेपाली हाइलिज (आंशिक रूप से सूखे घास से बने साइलेज) के निर्यात पर मार्च में हस्ताक्षरित एक समझौते के बारे में इसी तरह की चिंता जताई जा चुकी है। कांतिपुर समाचार पत्र के बिजनेस एडिटर कृष्णा आचार्य कहते हैं, चीन के साथ “दोनों पक्षों पर कार्यान्वयन भी एक मुद्दा है”। साथ ही, “दोनों पक्षों की तरफ से व्यापार को आसान बनाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति” भी ज़रुरी है। 

रुद्राक्ष व्यापार के उदाहरण से ये बात सामने आई है कि नेपाल ऐसे कृषि व वन-आधारित उत्पादों के साथ निर्यात मूल्य श्रृंखला की सीढ़ी में ऊपर आने में असमर्थ है। साथ ही महामारी प्रतिबंधों के दौरान व्यापार को हुए नुकसान की भरपाई करने में भी असमर्थ है। 

विश्व बैंक की अप्रैल, 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल के मूल्य वर्धित खासकर कृषि संबंधित निर्यात में इजाफा करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण बुनियादी ढांचा अहम है। नेपाल के उत्पाद क्षेत्रीय और वैश्विक निर्यात बाजारों की विभिन्न स्वच्छता और पादप स्वच्छता मानक (एसपीएस) की जरूरतों को पूरा करते हैं, यह प्रमाणित करने के लिए बुनियादी ढांचे, उपकरण और मानव संसाधन में निवेश की आवश्यकता है।

चीन-नेपाल व्यापार का भविष्य

चीन का पूरा ध्यान ‘द बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव‘ के औपचारिक हिस्से पर है। अनौपचारिक व्यापार का बढ़ना चीन के अपने पड़ोसियों के साथ बढ़ते संपर्क का एक स्वाभाविक परिणाम है। माइकल यहूदा और अन्य विद्वानों ने उल्लेख किया है कि चीन के विदेश संबंध ड्राइव और व्यापार के आधार पर ही संचालित होते हैं। व्यापार का प्रबंधन या कुप्रबंधन चीन के नेपाल जैसे देश के साथ रिश्ते निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है।

रुद्राक्ष के बीज में नियमन की कमी चीनी मांग के कारण कीमतों में उछाल से कहीं पहले की है। वन उत्पादों के मूल्य श्रृंखला विश्लेषण पर साल 2016 के अध्ययन में रुद्राक्ष बीज बाजार में रॉयल्टी संग्रह से परे सरकारी भागीदारी की कमी का जिक्र किया गया। इस अध्ययन में सिफारिश की गई कि बीजों की गुणवत्ता को प्रमाणित के लिए सरकार को कानून बनाने की आवश्यकता है, जिसके लिए व्यापारियों और किसानों से बातचीत करनी चाहिए। व्यापारियों के मुताबिक, 6 साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।