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सिंधु जल वार्ता से निकला मामूली समाधान, बढ़ी बातचीत की उम्मीद

वैसे तो, भारतीय जल विद्युत परियोजनाओं के बारे में पाकिस्तान द्वारा किये गए प्रश्नों के उत्तर नहीं दिये गये लेकिन सिंधु जल संधि को लेकर दोनों पक्षों ने आगे बातचीत जारी रखने का मन बनाया है।

जम्मू-कश्मीर में चेनाब पर बगलिहार डैम (Image: ICIMOD)

भारत और पाकिस्तान के परमानेंट इंडस कमिश्नर्स (PIC) ने 23-24 मार्च को नई दिल्ली में मुलाकात की। यह कमीशन सिंधु नदी पर पानी के अधिकारों से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए काम करता है। बैठक में भारत के हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के बारे में किये गए किसी भी सवाल का पाकिस्तान को जवाब तो नहीं दिया गया, लेकिन इतना महत्वपूर्ण संकेत जरूर मिला कि दोनों सरकारों ने बात करना शुरू कर दिया है।

सिंधु जल संधि क्या है?

पाकिस्तान और भारत ने अपनी साझा नदियों के उपयोग को नियमित करने के लिए 1960 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। सिंधु नदी प्रणाली पर की गयी 60 साल पुरानी संधि, भारत को तीन पूर्वी नदियों (व्यास, रावी और सतलज) पर और तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब और झेलम) का नियंत्रण पाकिस्तान को देती है। जब तक डाउन स्ट्रीम प्रवाह प्रभावित नहीं होता है, तब तक प्रत्येक देश अपने पड़ोसी देश की नदियों का उपयोग हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के लिए कर सकते हैं। संधि ने परमानेंट इंडस कमिश्नर्स की स्थापना की, जिसके तहत दोनों देशों के अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल को हर साल बैठकें करनी हैं।

प्रश्न तकनीकी और मुख्य रूप से दो पनबिजली परियोजनाओं के बारे में है, जो भारत चेनाब बेसिन: पाकुल डल और लोअर कलनई में बना रहा है। पाकिस्तान इन परियोजनाओं के जमीन पर उतरने से पहले से ही इनकी डिजाइन पर कम से कम सात साल से आपत्ति जता रहा है। इस बैठक में, पाकिस्तान के इंडस कमिश्नर सैयद मुहम्मद मेहर अली शाह ने भी यही सवाल पूछे। इस पर भारत के इंडस कमिश्नर प्रदीप कुमार सक्सेना ने एक ही जवाब दिया कि कोई भी परियोजना पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुंचाएगी। पूरा विवरण सही समय पर प्रदान किया जाएगा।

भारत के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, “भारतीय पक्ष ने कहा कि ये परियोजनाएं सिंधु जल संधि के प्रावधानों का पूरी तरह से अनुपालन कर रही हैं और इसकी स्थिति के समर्थन में तकनीकी डाटा प्रदान करती हैं। पाकिस्तान पक्ष ने भारत से, आने वाले समय में विकसित करने की योजना में शामिल अन्य भारतीय जल विद्युत परियोजनाओं के डिजाइन के बारे में जानकारी साझा करने के लिए अनुरोध किया है। भारतीय पक्ष ने आश्वासन दिया कि संधि के प्रावधानों के तहत आवश्यक होने पर जानकारी दी जाएगी।”

ढाई साल में पहली मुलाकात

1960 में दोनों देशों के बीच सिंधु जलसंधि (IWT) के तहत, PICs को वर्ष में कम से कम एक बार मिलना चाहिए लेकिन भारत ने कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादी हमले के मद्देनजर 2019 की बैठक रद्द कर दी थी। इसके बाद कोविड-19 महामारी के कारण 2020 की बैठक नहीं हो सकी। इससे पहले की बैठक अगस्त 2018 में लाहौर में हुई थी। मौजूदा बैठक दोनों देशों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा इस घोषणा के कुछ दिन बाद हुई है जिसमें कहा गया है कि दोनों देश कई महीनों के तनाव के बाद शांति स्थापित करने के लिए कोशिश कर रहे हैं और दोनों देश  एक बार फिर 2003 के संघर्ष विराम समझौते पर सहमत हैं।

अभी तक कोई सिंधु नदी डेटा साझा नहीं किया गया है

बैठक के एजेंडे के अनुसार, पाकिस्तान को पता है कि भारत सिंधु बेसिन में बांध बनाते समय IWT से जुड़ा हुआ है। संधि के तहत पाकिस्तान के पास बेसिन की तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का प्राथमिक उपयोग है, लेकिन भारत के पास इन नदियों और उनकी सहायक नदियों में कुल 2.85 मिलियन एकड़ फीट पानी (एमएएफ) रखने का अधिकार है। मानसून के दौरान यह आंकड़ा 3.7 एमएएफ तक जा सकता है। पाकुल डल प्रोजेक्ट, जो चेनाब की सहायक नदी मारुसुदार पर है, को 0.09 एमएएफ भंडारण क्षमता के हिसाब से डिजाइन किया गया है। लोअर कलनई, चेनाब की एक अन्य सहायक नदी पर, एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है, जो पानी को रोक नहीं सकती है, लेकिन तलछट के प्रवाह को काफी बाधित करेगी। पाकुल डल को 1,000 मेगावाट और लोअर कलनई को 48 मेगावाट के हिसाब से डिजाइन किया गया है।

भारत ने अभी भी पाकिस्तान द्वारा मांगे गए परियोजना विवरण उपलब्ध नहीं कराए हैं, इस पर भारत के जल शक्ति (जल संसाधन) मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि बांधों से जुड़े कई संवेदनशील अवयव मसलन उनके आकार इत्यादि में अभी भी समायोजन किया जा सकता है।

नाम न छापने की शर्त पर The Third Pole से बातचीत में इस अधिकारी ने कहा कि परियोजनाएं ऐसे क्षेत्र में हैं जहां पर मिट्टी के फिसलन की आशंका रहती है। यदि ऐसा होता है, तो अभियंताओं को पाकुल डल के लिए बांध की ऊंचाई या लोअर कलनई की बांध की चौड़ाई को समायोजित करना पड़ सकता है।

पिछली बैठकों में, पाकिस्तान ने पाकुल डल और लोअर कलनई परियोजनाओं के डिजाइन पर आपत्ति जताई थी। पाकिस्तान चाहता था कि पाकुल डल के लिए तय की गई ऊंचाई 167 मीटर को पांच मीटर कम किय जाए। साथ ही वह यह भी चाहता था कि बांध में स्पिलवेजेस चौड़े हों। लाहौर में 2018 की बैठक के बाद, भारत ने पाकिस्तानी अधिकारियों को पाकुल डल और अन्य परियोजना स्थलों का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया जो फरवरी 2019 में हुई। इस बैठक में, पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल ने दो अन्य रन-ऑफ-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं– दरबुक (19 मेगावाट) और नेमोचालिंग (24 मेगावाट) पर भी विवरण मांगा। इस पर भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने कहा है कि विवरण बाद में प्रदान किया जाएगा।

भारत ने पुलवामा में 2019 के आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को जल प्रवाह का डाटा प्रदान करना भी बंद कर दिया था। यह पाकिस्तान के लिए तत्काल चिंता का विषय है क्योंकि जल प्रवाह डाटा, विशेष रूप से मानसून के दौरान, उन्हें बाढ़ के लिए तैयार करने में सक्षम बनाता है। पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल ने इस मुद्दे को उठाया और हर साल 1 जुलाई से 10 अक्टूबर तक दैनिक जल प्रवाह डाटा की मांग की है। हालांकि बैठक के बाद इस पर कोई आधिकारिक बात नहीं कही गयी, केवल एक भारतीय नौकरशाह ने कहा, “इस वर्ष डाटा प्रदान किया जाएगा। मुझे उम्मीद है कि ऐसी कोई घटना नहीं होगी जो माहौल को प्रभावित करेगी और उससे डाटा प्रवाह रुकेगा।”

इन दो मुख्य परियोजनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में लोअर कलनई पर काम वर्षों तक अवरुद्ध रहा, जब तक सरकार ने 2019 में मूल निर्माण अनुबंध को समाप्त नहीं कर दिया और नई प्रक्रिया आरंभ नहीं हो गई। दरअसल, जिस कंपनी के पास मूल अनुबंध था, वह दीवालिया हो गई थी। पाकुल डल जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में द्रांगधुरन गांव के पास एक बहुत बड़ी परियोजना है, जिसकी लागत  8,112 करोड़ रुपये (1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है। यह 2023 के अंत तक पूरा होने वाली है।

भारत और पाकिस्तान के बीच के अनेक मुद्दों के अलावा हिमालय क्षेत्र में बांधों के निर्माण का लगभग हमेशा ही स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया गया है, जिससे परियोजनाएं विस्थापित करनी पड़ी हैं। साथ ही साथ पर्यावरणविदों ने भी, बार-बार कहा है कि बांध परियोजनाओं में से कोई भी समग्र लागत-लाभ विश्लेषण प्रस्तुत नहीं कर पाया है। भारत में अब यह भी सवाल है कि क्या देश को अधिक बिजली उत्पादन परियोजनाओं पर जोर देना करना चाहिए, जबकि मौजूदा स्थापित क्षमता मांग का लगभग तीन गुना है।