प्रदूषण

दक्षिण एशिया के लिए विकराल समस्या बन गई है बैटरी रीसाइक्लिंग

अवैध रीसाइक्लिंग के चलते पर्यावरण में जहरीले सीसे का प्रवाह अनियंत्रित है, जिसका मानव स्वास्थ्य पर भारी दुष्प्रभाव है
<p>बांग्लादेश के ढाका में बैटरियों की रीसाइक्लिंग की जाती है। देश में केवल छह औपचारिक रूप से पंजीकृत बैटरी रीसाइकलर हैं। (फोटो: ज़ाकिरहोसैन चौधुरी ज़ाकिर / अलामी)</p>

बांग्लादेश के ढाका में बैटरियों की रीसाइक्लिंग की जाती है। देश में केवल छह औपचारिक रूप से पंजीकृत बैटरी रीसाइकलर हैं। (फोटो: ज़ाकिरहोसैन चौधुरी ज़ाकिर / अलामी)

लखन को लगता है कि उसने आज लॉटरी जीती है। 45 वर्षीय स्क्रैप खरीदार ने नई दिल्ली में एक घर से 50 रुपये (0.67 डॉलर) में एक डेड कार बैटरी खरीदी है। भारत की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर घूमकर पुराने अखबारों, खाली बोतलों को इकट्ठा करने वाले हजारों कबाड़ी वालों में से एक, लखन को रीसाइक्लिंग बाजार की कीमत का अंदाजा है। लखन को पता है कि वह 3,760 रुपये (50.30 डॉलर) में इस बैटरी बेचने में कामयाब हो जाएगा। यह रकम, लखन की औसत मासिक आय लगभग 30,000 रुपये (400  डॉलर) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

डेड बैटरी, अब एक जटिल रीसाइक्लिंग श्रृंखला का हिस्सा बनने के लिए तैयार है। लेकिन एक समस्या है: अनौपचारिक बैटरी रिसाइक्लिंग, दुनिया में सबसे जहरीली प्रक्रियाओं में से एक है।

फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी गैस्टन प्लांट द्वारा 1859 में आविष्कार की गई, लेड एसिड बैटरी, कई अन्य उपयोगों के अलावा, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार और ऊर्जा उद्योगों में ऊर्जा भंडारण का प्राथमिक साधन बनी हुई है। दुनिया भर में खपत होने वाले लेड का लगभग 86 फीसदी लेड एसिड बैटरी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, जिनमें से अधिकांश की रीसाइकलिंग की जाती है। हाल ही में, इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर ऊर्जा के माध्यम से विद्युतीकरण की दिशा में अभियान ने बैटरी उत्पादन में तेजी से वृद्धि की है। ऐसा अनुमान है कि वैश्विक लेड एसिड बैटरी बाजार जो 2019 में अनुमानित 41.6 बिलियन डॉलर का रहा है, वह बढ़कर 2024 तक 52.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

A worker melts lead in a makeshift furnace, Toxics Link
नई दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक गैर-पंजीकृत लेड रीसाइक्लिंग इकाई के अंदर एक श्रमिक, एक अस्थायी भट्टी में सीसा पिघला रहा है (फोटो: टॉक्सिक्स लिंक)

इस मांग ने लेड एसिड बैटरियों के निपटान को दक्षिण एशिया में एक बड़ी और सम्पन्न अनौपचारिक अर्थव्यवस्था बना दिया है। औद्योगिक और अन्य प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाले नई दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था टॉक्सिक्स लिंक के एक अध्ययन के अनुसार, 2013-14 और 2016-17 के बीच के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में बिकने वाली बैटरियों में 1,000 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2017-18 में, 12 लाख टन बैटरी, भारत के रीसाइक्लिंग उद्योग में पहुंची। इसमें से 90 फीसदी को अनौपचारिक रूप से संसाधित किया गया था।

अवैध सीसा प्रगालग

लखन द्वारा बेचे जाने के बाद, कार की बैटरी को नई दिल्ली के बाहर एक प्रगालक में ले जाया जाएगा। यहां इसकी लेड हटाकर फैक्ट्रियों को बेचा जाएगा। मुरादनगर, नई दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर है, जहां कई बैटरी-रीसाइक्लिंग केंद्र हैं। यहां www.thethirdpole.net ने दौरा किया तो पाया कि यहां की जमीन अवैध सीसा-गलाने वाली इकाइयों के अवशेषों से आच्छादित हैं। खेती योग्य भूमि के हरे-भरे भूखंड, छोटे कारखानों से घिरे हुए हैं, जिन्हें अधिकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया है। एसिड के कारण यहां की मिट्टी जहरीली हो चुकी है। बैटरियों के डिब्बों का ढेर हैं।

यहां के निवासी कहते हैं, “इन फैक्टरियों को दो साल पहले नष्ट कर दिया गया था। इसके लिए हम आभारी हैं क्योंकि हमारे लिए सांस लेना मुश्किल था।”

Poisoned soil left by illegal lead-smelting operations
अधिकारियों द्वारा ध्वस्त की गई सीसा गलाने वाली एक अवैध फैक्टरी की साइट। सीसा और सल्फ्यूरिक एसिड के कारण मिट्टी जहरीली बनी हुई है। (फोटो:  मनीष उपाध्याय)

लेकिन इससे स्थानीय लोगों की परेशानी खत्म नहीं हुई है। एक अन्य निवासी विनोद धनगर कहते हैं, “गर्मियों की रातें आमतौर पर एक मिचली भरी गंध से भरी होती हैं।” उनके अनुसार यहां ऐसी समस्या बनी रहती है क्योंकि ऐसी अवैध फैक्टरियां उन जगहों पर चली जाती हैं जहां उनका संचालन छिपाना आसान होता है। ये अस्थाई हैं और रोजाना कमाने और खाने जैसा व्यापार है।

चूंकि अवैध इकाइयों के पास प्रदूषण नियंत्रण के कोई उपकरण नहीं है, इसलिए गलाने की प्रक्रिया, हानिकारक धुएं और अपशिष्ट जल को सीधे स्थानीय क्षेत्र में छोड़ती है। ये बंद होने की तरह से ही, तेजी से फिर उभर आती हैं। नाम न छापने की शर्त पर, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्थानीय अधिकारी का कहना है कि कई सीसा गलाने वाले व्यवसाय औपचारिक होते जा रहे हैं। सभी अवैध गतिविधियों पर रोक लगाना मुश्किल है। अगर हमें कोई शिकायत मिलती है, तो आमतौर पर हम प्रतिष्ठान की बिजली और पानी की आपूर्ति जैसी सेवाएं बंद कर देते हैं।

Casings of used lead acid batteries
नई दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश के मुराद नगर में ध्वस्त की गई एक अवैध लेड रीसाइक्लिंग फैक्टरी में इस्तेमाल की गई लेड एसिड बैटरी के कबाड़ (फोटो:  मनीष उपाध्याय)

स्थानीय निवासी आमतौर पर अवैध रीसाइकलिंग संयंत्रों की स्थापना का विरोध करते हैं। मुराद नगर के पास गाजियाबाद शहर से बाहर स्थित एक एनजीओ, पर्यावरण सचेतक समिति के संस्थापक, विजयपाल बघेल कहते हैं, “ये इकाइयां किसी भी प्रदूषण [नियंत्रण] मानदंडों का पालन नहीं करती हैं। दंडात्मक कार्रवाई के मामले में इनका संचालन अस्थायी रूप से रोक दिया जाता है।” इन फैक्टरियों के हटने के बाद भी लंबे समय तक ऐसे स्थान प्रदूषित रहते हैं। टॉक्सिक्स लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश का कहना है कि ऐसी फैक्टरियों के  हटने के वर्षों बाद तक वहां सीसे की उच्च सांद्रता पाई गई है।

नियम और कार्यान्वयन की कमी

कार्यान्वन को बेहतर करने के लिए 2010 में द् बैटरीज (हैंडलिंग एंड मैनेजमेंट) रूल्स 2001, में संशोधन किया गया। यह भारत में लेड एसिड बैटरी के उपयोग और निपटान के संदर्भ में प्राथमिक विनियमन है। यह निर्माताओं, एसेंबल करने वालों और डीलरों को खरीदारों से प्रयोग की जा चुकी बैटरियों के संग्रह को सुनिश्चित करने और उन्हें पंजीकृत रीसाइकलर्स को भेजने के लिए जिम्मेदार बनाता है। हालांकि, सरकार ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रकाशित नियमों की 2017-18 की स्थिति समीक्षा रिपोर्ट में कहा है कि विभिन्न राज्यों के राज्य प्रदूषण बोर्ड, उपयुक्त स्टेकहोल्डर्स की इन्वेंट्रीज और अनुपालन रिपोर्ट के मामले में पूरी तरह से अक्षम रहे।”

दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के हिसाब से भारत की राजधानी में सीसे के  निर्माण के साथ ही कचरे से सीसे की निकासी प्रतिबंधित है। लेड बैटरी रीसाइक्लिंग के प्रभाव पर टॉक्सिक्स लिंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसके कारण अवैध रीसाइक्लिंग इकाइयां आस-पास के शहरों, जैसे मुराद नगर में स्थानांतरित हो गई हैं।

सीसा इतना खतरनाक क्यों है?

वक्त के साथ शरीर में सीसा जमा होता जाता है। भारी धातु के संपर्क में आने से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। इससे विशेष रूप से मस्तिष्क और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचता है। यूनिसेफ और एक एनजीओ, प्योर अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीसा विषाक्तता, सालाना 900,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है, जो वैश्विक मौतों का 1.5 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि हमारे रक्त में लेड का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है। इसके बावजूद, बैटरी, पेंट और कई अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों में धातु का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह हमारे द्वारा खाए जाने वाले मसालों और हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों में भी अपना रास्ता बना चुका है। मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में सीसे के कारण बढ़ रहे खतरे के पीछे लेड एसिड बैटरियों की रीसाइक्लिंग एक प्रमुख वजह है।

Women wash lead from battery separators,
डेड बैटरियों से लेड को हटा दिए जाने के बाद, इलेक्ट्रोड के बीच विभाजकों में अभी भी कुछ अशुद्ध लेड चिपकी हुई है। उन विभाजकों और अन्य कचरे को आगे 1.5-2 रुपये (0.02-0.03 डॉलर) प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाता है। बाद में किसी स्नान के कुंड में इससे सीसा निकाला जाता है। यह दृश्य राजधानी दिल्ली के निकट उत्तर प्रदेश के  मुराद नगर में देखा जा सकता है। (फोटो:  मनीष उपाध्याय)

बैटरी रिसाइक्लिंग की अनौपचारिक प्रकृति का मतलब यह है कि इस क्षेत्र का मात्रात्मक या पैमाने को मापने योग्य कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। लेकिन रुग्णता के आंकड़े से स्पष्ट हो जाता है कि समस्या कितनी गंभीर है। ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन (जीएएचपी) के अनुसार, भारत में सालाना, लगभग 233,000 लोगों की समय से पहले मौत का कारण, सीसे की वजह से होने वाला यह प्रदूषण है। बांग्लादेश और नेपाल के लिए यह अनुमानित संख्या क्रमशः 30,800 और 3,760 है।

सीसे से होने वाली विषाक्तता, न केवल लोगों को जान लेती है बल्कि यह अनेक बीमारियों का कारण बनती है और सामान्य जीवन जीने की हमारी क्षमता को प्रभावित करती है। बच्चों का विकास अपरिवर्तनीय रूप से प्रभावित होता है। इसके अलावा, संभावित रूप से इसके गंभीर व्यवहार प्रभाव भी होते हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लेड पॉइज़निंग के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण दुनिया भर में स्वस्थ जीवन के 2.17 करोड़ वर्ष (विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष, या डीएएलवाई) नष्ट हो जाते हैं। सबसे ज्यादा संख्या निम्न और मध्यम आय वाले देशों में है।

पूरे दक्षिण एशिया में एक ही कहानी

इंटरनेशनल लेड एसोसिएशन (आईएलए) के अनुसार, बांग्लादेश में हर साल लगभग 118,000 टन लेड एसिड बैटरी को उपयोग के बाद निकाला जाता है। लेकिन प्योर अर्थ के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में सरकार द्वारा पंजीकृत केवल दो रीसाइकलर्स और चार बैटरी निर्माण कंपनियां हैं, जो औपचारिक रूप से इस्तेमाल की गई बैटरी को रीसाइकिल करती हैं। पूरे भारत में तकरीबन यही स्थिति है। उदाहरण के लिए, भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक, झारखंड की बात करें तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, 672 परिचालन इकाइयों में से केवल दो पंजीकृत रीसाइकलर्स हैं। झारखंड की राजधानी रांची के कोकर इंडस्ट्रियल एरिया में काम कर रहे रजिस्टर्ड रीसाइकलर शिव शंकर कहते हैं, ”अगर सही तरीके से रीसाइकिल किया जाए तो लेड एसिड बैटरी आमतौर पर अपने असली मूल्य का 60 फीसदी देती है।” उनका दावा है कि उनके लिए काम करने वाले मजदूर, पहले सिरदर्द और सांस फूलने की शिकायत करते थे। लेकिन अब हमने एक नई वायु निस्पंदन प्रणाली का इस्तेमाल किया है और मास्क और दस्ताने के निरंतर उपयोग को अनिवार्य कर दिया है, इसलिए हमारे कारखाने में सीसे की विषाक्तता का कोई मामला सामने नहीं आया है। शंकर मानते हैं कि लेड बैटरी रीसाइक्लिंग उद्योग की छवि बहुत खराब है।

शिव शंकर जैसी फैक्ट्रियां पाकिस्तान में दुर्लभ हैं। लाहौर में क्लीनर प्रोडक्शन इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अजहर-उद्दीन खान www.thethirdpole.net से बातचीत में कहते हैं कि लेड एसिड बैटरी की  अनौपचारिक रीसाइकलिंग इकाइयां आमतौर पर शहरों के आसपास हैं। उपयोग के बाद इन बैटरियों को वापस खरीदने संबंधी की मजबूत नीतियां पाकिस्तान में अभी तक नहीं है। उनके अनुसार, अनौपचारिक उद्यमियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई व्यर्थ है, क्योंकि समस्या को स्रोत पर ही रोका जाना चाहिए। विनिर्माण कंपनियों को अपने आविष्कारों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए।

खान का कहना है कि हाल के वर्षों में लेड एसिड बैटरियों का उपयोग काफी बढ़ा है। यह बिजली की कटौती से प्रेरित है, जो लोगों को लेड एसिड बैटरी पर चलने वाले इनवर्टर का उपयोग करने और वाहन के लिए इसे बढ़ाने के लिए मजबूर करता है।

नेपाल की भी यह समस्या अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों की तरह ही है। काठमांडू में त्रिभुवन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ज्योति गिरी कहती हैं, “प्रयुक्त लेड बैटरी को अक्सर दक्षिणी नेपाल के तराई क्षेत्र में नष्ट करने के लिए ले जाया जाता है।” गिरि के अनुसार, ऐसी इकाइयां आमतौर पर नदियों के पास पाई जाती हैं ताकि अम्ल के निकासी में आसानी हो। वह कहती हैं कि रीसाइक्लिंग गतिविधियों को “गंभीरता से” नहीं किया जा रहा है और मानदंडों में स्पष्ट खामियां हैं। गिरि चेतावनी देती हैं, “सीसा केवल स्पर्श से रक्त प्रवाह में अपना रास्ता बनाता है।” इस जहरीली प्रकिया के बारे में बात करने पर इस प्रक्रिया में बिल्कुल शुरू से शामिल कबाड़ीवालों में से एक, लखन का कहना है, “क्या लोग बैटरी का उपयोग करना बंद कर देंगे? मैं बस अपना काम करने की कोशिश कर रहा हूं।” लाहौर के खान का कहना है: “विषाक्त पदार्थों के रीसाइक्लिंग के बारे में जागरूकता के मामले में हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।”