उर्जा

हाइड्रोजन की नई दुनिया में अग्रणी बनने का प्रयास कर रहा है भारत

जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतें, ग्रीन हाइड्रोजन को तुलनात्मक रूप से सस्ता बना रही हैं। यह स्थिति भारत के स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण को तेज कर सकती है।
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<p>अमोनिया जैसे ग्रीन हाइड्रोजन डेरिवेटिव्स, विमानन के लिए लो-कार्बन वाले ईंधन के रूप में जाने जाते हैं। इस तरह ग्रीन हाइड्रोजन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में डिकॉर्बनाइजेशन के लिए अहम भूमिका निभा सकता है। साथ ही, इससे दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र में भी भारत की भूमिका अग्रणी हो सकती है।  (फोटो : Davidovich Mikhail / Alamy Stock Photo)</p>

अमोनिया जैसे ग्रीन हाइड्रोजन डेरिवेटिव्स, विमानन के लिए लो-कार्बन वाले ईंधन के रूप में जाने जाते हैं। इस तरह ग्रीन हाइड्रोजन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में डिकॉर्बनाइजेशन के लिए अहम भूमिका निभा सकता है। साथ ही, इससे दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र में भी भारत की भूमिका अग्रणी हो सकती है। (फोटो : Davidovich Mikhail / Alamy Stock Photo)

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया भर के ऊर्जा बाजारों को झकझोर कर रख दिया है। जलवायु संकट के कारण पहले से ही इस बात की तात्कालिता बढ़ रही थी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था से कार्बन को मुक्त किया जाए। लेकिन युद्ध के हथौड़े ने जिस तरह तेल और गैस की कीमतों में आग लगा दी है उससे एक बात स्पष्ट है कि जीवाश्म ईंधन एक जोखिम भरा व्यवसाय है।

वैसे तो भारत, आयातित ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करने और अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के विस्तार की तरफ ध्यान दे रहा है, लेकिन अभी भी वह अपनी ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदी कोयले, तेल और ठोस बायोमास के माध्यम से पूरा करता है। भारत न केवल नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाकर, बल्कि हरित हाइड्रोजन क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बनने का प्रयास करके भी इस स्थिति से निपट रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के नए विश्लेषण के अनुसार, 2021 में कोयले को जलाकर उत्पन्न की गई बिजली की मात्रा को लेकर भारत ने एक नया रिकॉर्ड बना डाला, जो 2020 के स्तर से 13 फीसदी अधिक है। कोयले के उपयोग में वृद्धि के कारण कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में भारी उछाल दर्ज की गई। एनर्जी वॉचडॉग ने यह भी भविष्यवाणी की है कि जैसे-जैसे ऊर्जा की मांग बढ़ती जाएगी, आयातित तेल और गैस पर भारत की भारी निर्भरता, देश को कीमतों में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति श्रृंखला में संभावित व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बना सकती है। यह विश्लेषण उस समय सही साबित हुआ जब सरकार ने कथित तौर पर आयातित कच्चे तेल की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी से संतुलन स्थापित करने के लिए पेट्रोल और गैसोलीन की कीमत बढ़ाने की तैयारी की, जो भारत के तेल उपयोग का 80 फीसदी हिस्सा है।

भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता के लिहाज से सौर को सबसे शक्तिशाली माध्यमों में से एक माना जाता है। यह बढ़ते रहने की ओर अग्रसर है। लेकिन नीतिगत अड़चनें और चीन, जो अभी भी भारत की स्वच्छ क्रांति को बढ़ावा देने वाले घटकों का एक बड़ा हिस्सा प्रदान करता है, के साथ एक व्यापार युद्ध,  इस प्रगति को धीमा कर रहा है। हालांकि सौर क्षेत्र के लिहाज से इनमें से कुछ बाजार रुझानों को ठीक करने की दिशा में काफी देर हो सकती है। वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाइड्रोजन का विकास अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है और भारतीय नीति निर्माता पिछली गलतियों से सीखने और अधिक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने का इरादा रखते हैं।

ग्रीन, ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन क्या है?

ग्रे, ब्लू और ग्रीन हाइड्रोजन केवल अपने उत्पादन के तरीके में भिन्न होते हैं। ग्रे हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस, बायोमास या कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है। यह वर्तमान में भारत में उत्पादित हाइड्रोजन की लगभग समग्रता बनाता है। ब्लू हाइड्रोजन भी जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके उत्पादित किया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया को कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के साथ जोड़ा जाता है जो इसके उत्सर्जन को रोकता है। सौर, पवन या परमाणु जैसे स्रोतों से स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है।

पिछले महीने, सरकार ने 2030 तक प्रति वर्ष 50 लाख टन ईंधन का उत्पादन करने के लक्ष्य के साथ एक हरित हाइड्रोजन नीति शुरू की, जो यूरोपीय संघ के लक्ष्य का लगभग आधा है। नीति का उद्देश्य राज्यों के बीच हाइड्रोजन उत्पादन के लिए स्वच्छ ऊर्जा के संचरण की सुविधा प्रदान करना है। यह कनेक्टिविटी के उन मुद्दों को संबोधित करता है जिन्होंने अतीत में सौर और पवन ऊर्जा के प्रसार को बाधित किया है। यह देश भर में विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए भी सहायता प्रदान करता है।

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था

हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला रासायनिक तत्व है, लेकिन प्रकृति में यह अपने शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता है। इसे इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से प्राकृतिक गैस, बायोमास या पानी जैसे यौगिकों से निकाला जाता है। जब यह प्रक्रिया सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा से संचालित होती है, तो हाइड्रोजन पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त होता है, क्योंकि उपयोग करने पर यह कार्बन का उत्सर्जन नहीं करता है।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के विश्लेषक कशिश शाह कहते हैं, “हरित हाइड्रोजन का उत्पादन काफी सरल है।” वह बताते हैं, भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत लगभग 7 डॉलर प्रति किलोग्राम है, जबकि जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत 2 डॉलर प्रति किलोग्राम से कम है। ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत कम करना संभव है, और “यह अक्षय ऊर्जा की कीमतों में कमी और इलेक्ट्रोलाइज़र की कीमतों में कमी के माध्यम से होने जा रहा है।”

भारत का एक हाइड्रोजन मानचित्र

लेकिन एक हाइड्रोजन बाजार को अभी स्थापित किया जाना बाकी है। इसके अनुप्रयोग उतने व्यापक नहीं हैं जितने स्वच्छ ऊर्जा के अन्य स्रोतों के हैं। पहली बात यह है कि गैस बहुत ज्वलनशील होती है, जिसका अर्थ है कि इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना काफी मुश्किल होता है और जहां इसका उत्पादन होता है, वहां इसका बेहतर उपयोग किया जाता है। भारत का भविष्य का हाइड्रोजन मानचित्र, सौर ऊर्जा से बहुत अलग दिखेगा, जिसमें औद्योगिक क्लस्टर के भीतर स्थित संयंत्र होंगे जहां ईंधन का उपयोग किया जाएगा।

डेवलपर एसीएमई सोलर ने पहले ही रेगिस्तानी राज्य राजस्थान में 5 टन प्रति दिन की क्षमता के साथ दुनिया का पहला एकीकृत सौर से ग्रीन हाइड्रोजन से हरित अमोनिया संयंत्र स्थापित किया है। यह कंपनी  सौर-विकिरण सम्पन्न देश ओमान में भी एक संयंत्र स्थापित करनी की योजना बना रही है। दिल्ली के थिंक टैंक द् एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने कहा है कि हाइड्रोजन की मांग, जो वर्तमान में भारत में प्रति वर्ष लगभग 60 लाख टन है और ज्यादातर उर्वरक और रिफाइनरी उद्योगों से आती है, 2050 तक पांच गुना बढ़ सकती है। आशावादी होने के बावजूद, ग्रीन हाइड्रोजन की संभावित बड़े आवेदन अभी भी अस्पष्ट हैं।

यूक्रेन में युद्ध ग्रीन हाइड्रोजन में रूपांतरण की प्रक्रिया को तेज कर सकता है, क्योंकि गैस की उच्च कीमतें, ग्रीन अमोनिया और हाइड्रोजन को तुलनात्मक रूप से सस्ता बना रही हैं।

थिंक टैंक, काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर्स (सीईईडब्ल्यू) के हाइड्रोजन संबंधी कार्यों का नेतृत्व करने वाले और सरकार के साथ विकास रणनीतियों में सहयोग करने वाले हेमंत माल्या कहते हैं, “हमें हरित हाइड्रोजन के लिए एक बाजार बनाने की आवश्यकता है।”

वर्तमान में, देश में उत्पादित अधिकांश हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से आता है, लेकिन भारत, समय के साथ इसे ग्रीन हाइड्रोजन से बदलने की उम्मीद कर रहा है। अप्रत्याशित रूप से, यूक्रेन में युद्ध इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है, क्योंकि गैस की उच्च कीमतें, ग्रीन अमोनिया और हाइड्रोजन को तुलनात्मक रूप से सस्ता बना रही हैं।

माल्या कहते हैं कि इस बार हम ऐसे मौके को नहीं खो सकते जैसा कि सौर ऊर्जा के मामले में कर चुके हैं। इस क्षेत्र में चीन के अडिग प्रभुत्व का जिक्र करते हुए माल्या कहते हैं, “ऐसा कहने के बाद, हमें यह देखना होगा कि उपयोगकर्ता कैसी प्रतिक्रिया देते हैं, क्योंकि यह केवल [ईंधन] की आपूर्ति के बारे में नहीं है, अंतिम उपयोगकर्ता को भी निवेश करने के लिए [बुनियादी ढांचे को स्थापित करने के लिए] तैयार होना चाहिए।” वह कहते हैं, “उपभोक्ता दृष्टिकोण हमें सूचित करेगा कि हम घरेलू स्तर पर क्षमता का निर्माण कर सकते हैं या नहीं।” एसीएमई समूह के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर संदीप कश्यप का कहना है कि कंपनी, सरकार द्वारा उठाए गए पहले नीतिगत कदमों की सराहना करती है। आगे बढ़ते हुए मांग सृजन के लिए नीतिगत उपायों को लागू करना होगा। उदाहरण के लिए, ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया खरीद दायित्व भी हो सकते हैं, जिसके लिए लक्षित उपयोगकर्ताओं को अपने संचालन के लिए स्वच्छ ईंधन का न्यूनतम प्रतिशत खरीदना होगा।

वैश्विक महत्वाकांक्षाएं

माल्या कहते हैं, भारत को ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाने का विचार इलेक्ट्रोलाइज़र के साथ-साथ अमोनिया जैसे ग्रीन हाइड्रोजन डेरिवेटिव का निर्यात करने में सक्षम है। इनको विमानन और समुद्री उद्योग कम कार्बन ईंधन के रूप में मान रहे हैं। कश्यप कहते हैं कि यदि सरकार की योजनाओं के अनुसार अक्षय ऊर्जा की प्रगति होती है, तो “भारत में पवन, सौर और अन्य नवीकरणीय स्रोतों की स्थापित क्षमता 2030 तक 500 गीगावाट तक बढ़ जाएगी। इस अतिरिक्त बिजली का उपयोग विभिन्न उद्योगों में कार्बन उत्सर्जक ईंधन को बदलने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। इनमें उर्वरक, रिफाइनरी, इस्पात निर्माण और लंबी दूरी के परिवहन सहित अन्य उद्योग भी हो सकते हैं।

ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग किसके लिए किया जाता है?

एक बार ग्रीन हाइड्रोजन के लिए आपूर्ति श्रृंखला स्थापित हो जाने के बाद, ईंधन अपने सभी मौजूदा उपयोगों में, ग्रे हाइड्रोजन की जगह ले सकता है। वर्तमान में, हाइड्रोजन का उपयोग ज्यादातर भारी उद्योगों जैसे स्टील और लोहे में और उर्वरकों और रिफाइनरियों जैसे विस्तारित क्षेत्रों में किया जाता है। एक बार इसकी ऊर्जा दक्षता में सुधार होने पर हाइड्रोजन, शिपिंग और विमानन के लिए ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

आईईईएफए के शाह की चेतावनी है कि अमेरिका या यूरोप में निर्मित इलेक्ट्रोलाइजर्स की कीमत की तुलना में एक चौथाई कीमत पर इसके निर्माण से चीन पहले से ही इस क्षेत्र में काफी आगे है। वह यह भी कहते हैं कि लेकिन हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत प्रारंभिक चरण में है और मुझे लगता है कि हाइड्रोजन उन तकनीकों में से एक हो सकता है जिसमें भारत वैश्विक नेतृत्व कर सकता है।

ऊर्जा उत्पादक-संघ से परे

आखिरकार, हालांकि भारत, चीन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में समृद्ध देशों के बीच कुछ प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी, लेकिन एक नई वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था, सौर ऊर्जा अर्थव्यवस्था से बहुत अलग दिखेगी जहां कुछ प्रौद्योगिकियों के मालिक हैं, उनके पास जनशक्ति है या आपूर्ति ऋंखला को ज्यादातर नियंत्रित करते हैं। 

माल्या कहते हैं, “एक देश के रूप में हम मानते हैं कि ऊर्जा स्रोतों का कोई उत्पादक-संघ नहीं होना चाहिए। हम नहीं चाहते हैं कि ओपेक की तरह ही उत्पादक-संघों का एक नया झुंड बन जाए।”

हाइड्रोजन में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था को नया आकार देने की शक्ति है, और सभी के लिए अधिक न्यायसंगत पहुंच प्राप्त करने में मदद करने का अनूठा अवसर है। माल्या कहते हैं, “लंबी अवधि में, हमारे पास प्रौद्योगिकी, ईंधन के स्रोत या ऊर्जा को नियंत्रित करने वाले कुछ ही देश नहीं हो सकते हैं।” भारत हरित ऊर्जा का पावरहाउस बनने जा रहा है, “लेकिन हम खुद को बाजारों के साथ मुकाबला करते हुए नहीं देखते हैं।” इसके बजाय, भारत का उद्देश्य एक “बहुपक्षीय हरित हाइड्रोजन गठबंधन के प्रस्ताव का है, जहां हम पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्थाओं पर चर्चा करते हैं, आपूर्ति श्रृंखला में लचीलेपन से लेकर ऊर्जा के मूल्य निर्धारण तक के मुद्दों को सुलझाते हैं।” और इससे भी महत्वपूर्ण बात हमारे लिए यह है कि “दुनिया की विशाल आबादी की सेवा कैसे करें, जिनके पास अभी भी स्वच्छ ऊर्जा की पहुंच नहीं है।”

यह लेख सबसे पहले Lights On में प्रकाशित किया गया