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विचारः अरुणाचल में बांधों से होने वाले नुकसान को कम करने में मददगार हो सकता है एटालिन फैसला 

अरुणाचल प्रदेश में कई बड़े बांध बनाने की प्रक्रिया के बीच, वन सलाहकार समिति ने एटालिन जलविद्युत परियोजना को मंजूरी नहीं दी है। माना जा रहा है कि इस फैसले से उन लोगों की विचारों को मजबूती मिलेगी जो जैव विविधता की रक्षा के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं।
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<p>रूफस-नेक्ड हॉर्नबिल यानी लाल गर्दन वाला धनेश कई संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों में से एक है। अरुणाचल प्रदेश में बांधों के निर्माण से इनके वास स्थल खतरे में पड़ सकते हैं। (फोटो: अलामी)</p>

रूफस-नेक्ड हॉर्नबिल यानी लाल गर्दन वाला धनेश कई संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों में से एक है। अरुणाचल प्रदेश में बांधों के निर्माण से इनके वास स्थल खतरे में पड़ सकते हैं। (फोटो: अलामी)

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एपेक्स बॉडी ने 27 दिसंबर, 2022 को एटालिन जलविद्युत परियोजना को फॉरेस्ट क्लीयरेंस देने से मना कर दिया है। इस परियोजना का निर्माण अरुणाचल प्रदेश में होना था। 

इसके साथ ही, वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने अपनी सिफारिश में दिबांग घाटी क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता की रक्षा के लिए राज्य सरकार को सही तरीके से आकलन करने की सलाह दी है।

यह छठवां मौका है जब 3097 मेगावाट क्षमता वाली इस परियोजना को फॉरेस्ट क्लीयरेंस से मना किया गया है। साल 2008 में एटालिन परियोजना की परिकल्पना पहली बार की गई थी। अगर यह बांध बन जाता है तो स्थापित क्षमता के मामले में यह देश का सबसे बड़ा बांध होगा। 

एटालिन परियोजना को फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं दिए जाने की खबर ने अरुणाचल प्रदेश में जलविद्युत परियोजनाओं के कारण होने वाली अराजकता और विनाश की हकीकत को उजागर किया है। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि साल के शुरुआत में ही ख़बरों के अनुसार सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश में पांच बांधों के निर्माण की दिशा में पहल शुरू की गई थी। इसके साथ ही 2880 मेगावाट दिबांग मेगा डैम को भी मंज़ूरी मिली।

एटालिन की निराशाजनक कहानी

वर्ष 2008 में बेहद कम समय अंतराल के बीच अरुणाचल प्रदेश सरकार ने बिजली कंपनियों के साथ मिलकर पांच मेगावाट से लेकर 4,000 मेगावाट क्षमता की कई जलविद्युत परियोजनाओं के 130 से अधिक समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इतनी बड़ी संख्या में जिस तेजी से इन एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए उस पर तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे ‘एमओयू वायरस’ बताया था। यह वायरस न केवल जैव विविधता के लिए विनाशकारी साबित हुआ, बल्कि राज्य के लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्थानों और वहां मूल रूप से निवास करने वाली समुदायों को भी संक्रमित किया।

इनके अनुमोदन पर न केवल जोर दिया गया बल्कि मानदंडों और प्रक्रियाओं का हर तरह से उल्लंघन किया गया था। इसको लेकर साल 2010 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट दी। इसमें बताया गया कि अरुणाचल प्रदेश के जलविद्युत विकास विभाग के पास ‘परियोजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर कोई ठोस योजना नहीं है’। इनमें से कई परियोजनाएं तो अपर्याप्त जानकारी और कठोर पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) की कमी के साथ तेजी से आगे बढ़ रही हैं। साल 2013 की एक रिपोर्ट में कैग ने कहा कि इसको लेकर ओपन टेडरिंग न होने के कारण सिक्योरिटी डिपॉजिट्स की जब्ती जैसी कार्रवाई नहीं हो पाई। इस कारण काफी वित्तीय नुकसान हुआ। वहीं एक्टिविस्ट्स ने इन जलविद्युत परियोजनाओं में ‘बड़े भ्रष्टाचार’ होने की बात कही।

Dri River, Upper Dibang Valley District,Arunachal Pradesh, India
द्री नदी, अरुणाचल प्रदेश में दिबांग की एक सहायक नदी है। यह तस्वीर 1987 में ली गई थी। द्री नदी उन नदियों में से एक है जहां 3,097 मेगावाट क्षमता वाला एटालिन जलविद्युत परियोजना को मंजूरी मिलने पर कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाया जाएगा। (फोटो: पुर्नेंदु रॉय/ फ़्लिकर / सीसी बाय 2.0)

अरुणाचल प्रदेश की उपन्यासकार, कवि और पत्रकार ममांग दाई ने इसे एक बड़े आक्रमण के रूप में वर्णित किया। उन्होंने इस बात की भी निंदा की कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनके ऊपर ‘अनपढ़’ होने की लेबलिंग की कोशिश की जा रही है। 

सियांग पीपुल्स फोरम, आदि स्टूडेंट्स यूनियन और सेव मोन रीजन फेडरेशन जैसे संगठनों ने राज्य भर में चल रहे बांध विरोधी आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। बदले में इन समूहों को अथॉरिटीज के द्वारा राज्य में प्रतिबंधित चरमपंथी वाम मिलिशिया का संदर्भ देते हुए ‘माओवादी‘ के रूप दर्शाया गया। राज्य की इदु मिश्मी जनजाति के सदस्य और एक्टिविस्ट बमांग तागो ने कहा कि ऐसा करने से राज्य की पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को प्रदर्शनकारियों पर हमला करने और आंदोलन को प्रभावित करने का लाइसेंस मिल गया है।

आम लोगों की भागीदारी वाले विरोध प्रदर्शनों को प्रभावित करने के प्रयासों की भी कुछ रिपोर्ट्स हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज द्वारा 2014 में प्रकाशित एक शोध में भारत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त, दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक के ऊपर बांधों के खिलाफ विरोध करने वाले ग्रामीणों की क्षमता को कम करने के लिए रणनीति बनाने का आरोप लगाया गया है। साथ ही, बांध बनाने वाली कंपनियों पर अफीम बांटने तथा नेताओं को रिश्वत देने जैसे तथ्य भी शामिल किए गए हैं। वहीं राज्य में जलविद्युत परियोजनाओं पर आलोचनात्मक लेख लिखने वाले द् अरुणाचल टाइम्स के एसोसिएट एडिटर तोंगम रीना के ऊपर वर्ष 2012 में हत्या का असफल प्रयास भी किया गया था।

भारत की जैव विविधता प्रतिज्ञा और एटालिन

अरुणाचल प्रदेश में बड़े जलविद्युत बांध बनाने की हड़बड़ी से, भारत की अंतरराष्ट्रीय आकांक्षाओं के साथ टकराव देखने को मिल रहा है। 22 दिसंबर को एफएसी द्वारा एटालिन को मंजूरी से इनकार करने के कुछ ही दिन पहले, दुनिया की सरकारों ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क को अपनाया। इसका उद्देश्य प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना था। इस समझौते के अनुसार ‘देश यह सुनिश्चित करेंगे कि वर्ष 2030 तक कम से कम 30 प्रतिशत स्थलीय, अंतर्देशीय जल व तटीय समुद्री क्षेत्रों विशेष रूप से जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य और सेवाएं प्रभावी ढंग से संरक्षित और संवर्धित होंगे’। इसमें “मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों को पारंपरिक क्षेत्रों के साथ उनके अधिकारों को मान्यता देना और सम्मान करना शामिल है।”

चूंकि अरुणाचल प्रदेश और पूरे पूर्वी हिमालय को दुनिया के ‘जैव विविधता हॉटस्पॉट’ में से एक माना जाता है, इसलिए नीति निर्माताओं को किसी भी प्रकार की विकासात्मक परियोजना शुरू करते समय स्थानीय जनजातीय समुदायों की भावनाओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने की जरूरत है।

Bugun Loichichla
गंभीर रूप से लुप्तप्राय बुगुन लिओसीचला, जो केवल अरुणाचल प्रदेश में पाया गया है (फोटो: मूक.सह/ विकिमीडिया, सीसी बाय एसए 4.0)

प्रस्तावित एटालिन परियोजना के मामले में, वन्य जीवन, विशेष रूप से बाघों का संरक्षण, इदु मिश्मी जनजाति और अधिकारियों के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण रहा है। 2018 में दिबांग घाटी में और उसके आसपास बाघों की खोज के बाद, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने दिबांग वन्यजीव अभयारण्य को बाघ अभयारण्य घोषित करने का फैसला किया था। इस योजना में बाड़ और गश्ती गार्ड को भी शामिल किया गया।

प्रस्ताव को इदु मिश्मी समुदाय ने खारिज करते हुए अधिकारियों से कहा कि वे बाघ को ‘भाई’ मानते हैं और सदियों से इस बड़े शिकारी के साथ रहते आ रहे हैं। अपने तर्क में उन्होंने कहा कि संरक्षण का मॉडल ‘विश्वासों और सांस्कृतिक मूल्यों की गहरी जड़ों पर आधारित’ होना चाहिए। इदु मिश्मी समुदाय, तालो नदी को भी पवित्र मानता है, इसी नदी पर एटालिन परियोजना के तहत बांध बनाने की योजना है। उनका मानना है कि मृतक की आत्माएं इदु शेमन्स द्वारा उनके स्वर्गीय निवास तक पहुंचने के लिए निर्देशित करती हैं।

27 दिसंबर के एफएसी मिनट्स बताते हैं कि वन मंजूरी के लिए एटालिन को खारिज करने के फैसले में जैव विविधता को संरक्षित करना प्रमुख केंद्र बिंदु था। एफएसी ने मांग की कि राज्य सरकार, भारतीय वन सर्वेक्षण और वन्य जीवन की सुरक्षा के परामर्श से काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या का आकलन करे। एटालिन परियोजना के साथ-साथ “पहले से स्वीकृत परियोजनाओं” पर कई संगठनों के असंतोष को ध्यान में रखते हुए, समिति ने “राज्य सरकार से सभी स्वीकृत परियोजनाओं की स्थिति की समीक्षा करने का अनुरोध किया है” और “जल्द से जल्द” एफएसी की शर्तों के साथ परियोजनाओं के अनुपालन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

एफएसी का फैसला स्वागत योग्य कदम है। यह न केवल एटालिन परियोजना की सीमाएं निर्धारित करता है, बल्कि अरुणाचल प्रदेश सरकार को दिबांग बहुउद्देशीय बांध परियोजना जैसी पहले से स्वीकृत परियोजनाओं की समीक्षा करने और राज्य में किसी भी नई परियोजना के अनुमोदन के लिए आवेदन करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (ईआईए) को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध करता है।

क्या पक्के घोषणा उम्मीद से बहुत ज़्यादा है?

अरुणाचल प्रदेश में जैव विविधता संरक्षण को लेकर आशा की कुछ किरणें दिख रही हैं। नवंबर 2021 में, राज्य सरकार ने ‘पक्के घोषणा‘ को अपनाया है, जिसके तहत जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान पर कार्रवाई को लेकर नागरिकों को आश्वासन दिया गया है। अप्रैल 2022 में, अरुणाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड और विश्व वन्यजीव कोष-भारत ने राज्य जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (एसबीएसएपी) तैयार करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें अरुणाचल प्रदेश के पर्यावरण और वन मंत्री मामा नटुंग ने घोषणा की है कि एसबीएसएपी में 2020 के बाद की वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा और पक्के घोषणा को शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे इस तरह के उपायों का मुख्य मकसद अरुणाचल प्रदेश के लोगों में जैव विविधता के नुकसान को रोकने और स्थानीय लोगों के अधिकारों के सम्मान की वास्तविक प्रगति के प्रति उम्मीद कायम करना है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक, मानवता द्वारा ‘प्रकृति के प्रति युद्ध’ जारी रखने के चलते जैव विविधता इन दिनों अपने अस्तित्व के खतरे का सामना कर रही है। उनका मानना है कि ‘प्रकृति के साथ शांति बनाने’ के लिए, ईआईए जैसे निर्णय लेने से जैव विविधता संबंधी चिंताओं को एकीकृत करना महत्वपूर्ण होगा।

उम्मीद है कि एटालिन परियोजना- और पांच पनबिजली परियोजनाएं जो जनवरी में निजी बिजली कंपनियों से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को हस्तांतरित की गईं – इस दिशा में एक उदाहरण होंगी।