<p>नेपाल के गंडकी प्रांत के नाइचे गांव का एक शहद शिकारी, बिचे मान गुरुंग, हिमालय की विशालकाय मधुमक्खियों (एपिस लेबोरियोसा) द्वारा बनाए गए घोंसलों तक पहुँचने के लिए खुद से बनाए हुए सीढ़ी से नीचे उतरते हैं। मधुमक्खियों को भ्रमित करने के लिए उसके साथी शिकारियों द्वारा चट्टान के नीचे जलाई गई आग से धुंआ उठता है। (फोटो: <a href="https://nabinbaral.com/">नवीन बराल</a> / द् थर्ड पोल)</p>
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मधुमक्खियों की गिरती आबादी के बीच अपनी परंपराओं से जुड़े हुए हैं नेपाल के शहद शिकारी

हजारों वर्षों से गुरुंग समुदाय ने हिमालय के विशाल मधुमक्खी के छत्ते के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है, लेकिन ज़रूरत से अधिक हार्वेस्ट और बांधों और सड़कों के निर्माण के कारण इनकी संख्या घट रही है।

गंगा बहादुर गुरुंग भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं। वो पानी, पृथ्वी, अग्नि, पवन और सांप के देवताओं से शहद के अगले शिकार के लिए आशीर्वाद मांग रहे हैं। शिकारियों का ये समूह हाथ से बनाई रस्सियों और सीढ़ियों की मदद से 50 मीटर ऊंची खड़ी चट्टान पर चढ़ने वाला है। ये दुनिया की सबसे बड़ी मधुमक्खियों के छत्ते का शिकार करने जा रहे हैं।

गंगा सुरक्षित और कामयाब शिकार के लिए प्रार्थना करते हुए कहते हैं, “जंगली मधुमक्खियां सिर्फ़ सुरक्षित चट्टानों में छत्ता बनाती हैं, वहां जहां देवता रहते हैं।”

Five Himalayan giant honeybee nests (top left) tucked under an overhang in the Nyadi River gorge, central Nepal
मध्य नेपाल के न्यादी नदी के कण्ठ में एक ओवरहैंग के नीचे पांच हिमालयी विशाल मधुमक्खी के घोंसले (ऊपर बाएं)। इस प्रजाति के घोंसले, जिन्हें आमतौर पर हिमालयी चट्टान हनीबी के रूप में भी जाना जाता है, का बेस आमतौर पर लगभग 1.5 मीटर होता है और यह चट्टानों या पेड़ के अंगों पर बने होते हैं। नाइचे गांव के लोगों द्वारा इस विशेष घोंसले के शिकार स्थल का शिकार कभी नहीं किया जाता है क्योंकि इस तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

नेपाल के हिमालय की तलहटी में चट्टानों से शहद निकालना एक प्राचीन परंपरा रही है। मध्य नेपाल और उत्तरी भारत की पहाड़ियों और पहाड़ों में रहने वाले गुरुंग जातीय समूह के पुरुष हजारों सालों से अपनी जान खतरे में डाल कर शहद निकाल रहे हैं। ये शिकार साल में दो बार होता है: पतझड़ और वसंत ऋतु में। ये गुरुंग संस्कृति का ज़रुरी हिस्सा है और इसे गांवों में त्योहार की तरह मनाया जाता है।

एशिया में शहद के शिकार से जुड़े रीति-रिवाज़

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के एक वरिष्ठ रिज़िल्यन्ट लाइवलिहुड विशेषज्ञ सुरेंद्र राज जोशी के अनुसार, नेपाल में, हिमालयी विशाल मधुमक्खी (एपिस लेबोरियोसा) का शहद मुख्य रूप से गुरुंग समुदाय द्वारा शिकार किया जाता है। ये प्रजाति मुख्य रूप से दक्षिणी एशिया के हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है। भूटान में नेपाली मूल के लोग भी शहद का शिकार करते हैं। भारत में, दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत, म्यांमार, लाओस और वियतनाम में, लोग ज्यादातर तराई के विशाल मधुमक्खी (एपिस डोरसाटा) के शहद का शिकार करते हैं।

गंगा नेपाल के मध्य गंडकी प्रांत के मार्शयांगडी ग्रामीण नगरपालिका के एक गांव नाइचे के 15 शहद का शिकार करने वाले समूहों के नेता हैं। नाइचे गांव न्यादी नदी के कंठ में स्थित है। न्यादी नदी मार्शयांगडी नदी की एक सहायक नदी है।

The Nyadi River
न्यादी नदी मध्य नेपाल के मार्शयांगडी ग्रामीण नगरपालिका में नाइचे गांव के नीचे बहती है (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

बहुत समय तक नाइचे के आसपास मौजूद ऊंची चट्टानों पर जंगली शहद बड़ी मात्रा में उपलब्ध था। लेकिन अब ये बदल रहा है।

गंगा की प्रार्थना अब खत्म होने जा रही है। 48 साल के गंगा मधुमक्खियों से माफ़ी मांग रहे हैं क्योंकि शिकार में 3 सेंटीमीटर तक बढ़ने वाले इन मधुमक्खियों का घर तबाह होने जा रहा है। वो समूह के बच्चों की सुरक्षा की भी कामना करते हैं।

इस चट्टान के बेस में समूह के बाकी लोग इंतज़ार कर रहे हैं और चट्टान के ऊपर सिर्फ़ दो शिकारी गए हैं: बिचे मान गुरुंग और प्रबीन गुरुंग। चट्टान के ऊपर चढ़ाई करके उन्होंने रस्सियों वाली सीढ़ी बांधी जिसकी मदद से वो चट्टान के नीचे जाकर मधुमक्खी के छत्तों तक पहुंच पाएंगे।

man climbs rope ladder to collect honeycomb, using smoke to confuse the bees
शिकारी बिचे मान गुरुंग और प्रबीन गुरुंग धुएं से खुद को घेर कर कामचो चट्टान से नीचे उतरते हैं। धुएं का इस्तेमाल मधुमक्खियों की गंध की भावना को भ्रमित करने के लिए किया जाता है। इससे मधुमक्खियों को लगता है कि जंगल में आग लगी है जिससे वो अपने घोंसले छोड़ने लगते हैं। इससे शिकारियों के लिए मधुकोश लेना आसान हो जाता है। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
Honey hunters sit in the forest, directing the honey hunt from the base of a cliff
गंगा बहादुर गुरुंग (बीच में) खुद को जानवरों से बचाने के लिए चट्टान के बेस से शिकार का निर्देशन करते हैं। उसके सिर पर एक लाल रंग की बोरी होती है जिससे वो खुद को मधुमक्खियों से बचाते हैं। गंगा कहते हैं, “मैं कम ऊंची चट्टानों पर युवा शिकारियों को अवसर देता हूं। ज्यादातर ऊंची चट्टानों पर मैं खुद चढ़ता हूं – युवा पीढ़ी को तकनीक सीखने की जरूरत है।” (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
Birjung Gurung climbs up a tree to help relay messages to the hunters on the cliff
चट्टान पर शिकारियों को संदेश भेजने में मदद करने के लिए बिरजंग गुरुंग एक पेड़ पर चढ़ते हैं (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

शिकार सुरक्षित तो रहा लेकिन गंगा के प्रार्थनाओं के बावजूद कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। जब शिकारियों ने मधुकोश वाली बाल्टी नीचे भेजी तो समूह को पता चला कि वह सूखी है। गंगा का कहना है कि पहले वे इस चट्टान पर एक बड़े घोंसले से 15 लीटर शहद निकाल सकते थे; आज 200 मिलीलीटर से भी कम शहद उपलब्ध है।

पिछले 10 सालों में ये तीसरी बार हुआ है कि उन्हें कामचो चट्टान से शहद नहीं मिल पाया है।

शिकार के अंत में, गंगा मधुमक्खियों को धन्यवाद देते हैं और मधुमक्खियों की कॉलोनी को आशीर्वाद देते हैं ताकि यह फले-फूले और अगले साल तक 100 कॉलोनियों का निर्माण कर सके।

गंगा कहते हैं: “प्रकृति हमारे लिए भगवान है; हमें अपने पूर्वजों की तरह सम्मान और सावधानी से उपज इकट्ठा करना है, ताकि आने वाली सदियों तक हार्वेस्ट जारी रहे।”

The comb cut from the Kamcho cliff holds less than 200 millilitres of honey
कामचो चट्टान से काटे गए इस छत्ते में 200 मिलीलीटर से भी कम शहद है। गंगा यह समझ नहीं पा रहे कि घोंसला इतना सूखा क्यों है। वे कहते हैं, “जंगली शिकार में कभी-कभी आपको ट्राफियां मिलती हैं और कभी-कभी हमें खाली हाथ लौटना पड़ता है। या तो यह गलत समय था, या यह शुष्क सिउरी धारा के कारण है, लेकिन छत्ता तो शहदहीन था।” (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

मधुमक्खियां की है कमी पर शहद की मांग है ज़्यादा

काठमांडू में त्रिभुवन विश्वविद्यालय के वरिष्ठ मधुमक्खी वैज्ञानिक रत्ना थापा का कहना है कि नेपाल में ये प्रजाति खतरनाक दर से घट रही है। वे कहते हैं, “हर साल हिमालयी चट्टान की मधुमक्खी की आबादी में 70% की गिरावट आती है।”

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के एक वरिष्ठ रिज़िल्यन्ट लाइवलिहुड विशेषज्ञ सुरेंद्र राज जोशी कहते हैं: “कास्की और लामजंग जिलों के आंकड़े, अन्य देशों के वास्तविक साक्ष्य और रिपोर्ट बताते हैं कि प्रति चट्टान कालोनियों और मधुमक्खियों के घोंसलों वाली चट्टानों की संख्या में कमी आई है।” वो इस बात पर जोर देते है कि यह जिले और देश के अनुसार भिन्न होता है।

थापा और जोशी तेजी से आई इस गिरावट के पीछे कई कारकों का हाथ बताते हैं। वो इसके पीछे कीटनाशक, आवास और खाद्य स्रोतों की हानि, इंफ्रस्ट्रक्चर का विकास और कीटों और शिकारियों के हमलों को जिम्मेदार ठहराते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण चालक जिसे वे पहचानते हैं वह है “विनाशकारी शहद शिकार की प्रथाएं”।

One of the members of the honey hunting group holds up a piece of dry honeycomb. Normally this would be dripping with honey.
शहद शिकार समूह के सदस्यों में से एक ने सूखे छत्ते का एक टुकड़ा पकड़ा हुआ है। आम तौर पर इससे शहद टपक रहा होता। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

बीस साल पहले, नाइचे के ग्रामीणों द्वारा हार्वेस्ट किया गया शहद लगभग 280 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेचा जाता था। आज, यह उनकी आय के मुख्य स्रोतों में से एक है। गंगा के अनुसार, आज ये करीबन 1600 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कहीं ज्यादा हैं। शहद की वैश्विक मांग बढ़ने के कारण यह वृद्धि हुई है।

गंगा कहते हैं, “दो दशक पहले मोम शहद से अधिक मूल्यवान था, इसलिए हम मधुमक्खियों के छत्ते से चले जाने के बाद इसकी कटाई करते थे। उस समय स्थानीय शराब बनाने के लिए शहद का इस्तेमाल किया जाता था या तंबाकू के साथ मिलाया जाता था… कोई भी शहद नहीं खरीदता था।”

Aerial view of Naiche village, Nepal
नाइचे गांव में करीब 61 गुरुंग परिवार हैं। ग्रामीण अपना घर चलाने के लिए कृषि और प्राकृतिक संसाधनों जैसे जंगली शहद पर निर्भर हैं। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
Gurung women in Naiche grind rice in a dhiki, a traditional manual grinder. Women tend not to be involved in honey hunting as they are busy with household work.
नाइचे में गुरुंग महिलाएं चावल को एक पारंपरिक मैनुअल ग्राइंडर ढिकी में पीसती हैं। महिलाएं शहद के शिकार में शामिल नहीं होती हैं क्योंकि वे घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
Women in Naiche prepare young girls for Ghatu, a dance performed during the Baishak Purnima full moon festival – one of the biggest festivals in Gurung culture
नाइचे में महिलाएं युवा लड़कियों को घटू के लिए तैयार करती हैं। घटू बैशाक पूर्णिमा के दौरान किया जाने वाला नृत्य है। ये गुरुंग संस्कृति के सबसे बड़े त्योहारों में से एक। इस त्योहार के दौरान गुरुंग समुदाय शहद का शिकार नहीं करते हैं। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

संजय काफले नेपाल में स्थित कंपनी बेस्ट मैड हनी के मुख्य कार्यकारी और संस्थापक हैं, जो दुनिया भर में क्लिफ शहद एक्सपोर्ट करता है। उनका कहना है कि उनकी कंपनी सालाना तीन से चार टन निर्यात करती है, और यह “हर साल बढ़ रहा है”।

शहद की मांग में वृद्धि इसके मनो-सक्रिय प्रभावों की वजह से है। ये “मैड हनी” के रूप में जाना जाता है और इस कम मात्रा में लेने से सर हल्का लगने लगता है और उत्साह का अनुभव होता है। बड़ी खुराक में ये मतिभ्रम पैदा कर सकता है। माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं यानी कोलेस्ट्रॉल और जोड़ों की समस्याओं से आराम मिल सकता है। लेकिन यह भी स्थापित हो चुका हैं कि ये पॉइज़निंग करने में भी सक्षम है।

गंगा कहते हैं, “लोगों ने इस शहद के औषधीय महत्व को समझ लिया है और वैज्ञानिकों ने इसे साबित भी कर दिया है, इसलिए हम इन दिनों इससे पैसे कमा रहे हैं।”

लेकिन मधुमक्खी विशेषज्ञ रत्ना थापा इससे सहमत नहीं हैं। वो कहते हैं, “मैंने कोई वैज्ञानिक रिसर्च नहीं देखा या पढ़ा है जो इसके औषधीय मूल्य को साबित करता है। इसके बजाय, मैं जो कह सकता हूं वह यह है कि इसमें ग्रेनोटॉक्सिन नामक एक रसायन होता है जो हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है।

ग्रेनोटॉक्सिन रोडोडेंड्रोन पौधों की पत्तियों और फूलों में पाया जाता है। ये नेपाल के हिमालय में अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं।

A rhododendron, the national flower of Nepal, in the Tinjure-Milke-Jaljale Rhododendron Conservation Area
तिनजुरे-मिल्के-जलजाले रोडोडेंड्रोन संरक्षण क्षेत्र में उगा एक रोडोडेंड्रोन या बुरांस, नेपाल का राष्ट्रीय फूल। (फोटो: नबीन बराल)

थापा बताते हैं कि हिमालय की विशाल मधुमक्खियां ऊंचाई वाली वनस्पतियों की “प्रमुख पॉलिनेटर” हैं।

आइसीआइएमओडी के आजीविका विशेषज्ञ जोशी कहते हैं कि समुद्र तल से 4,200 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली प्रजातियों के साथ, जहां कोई अन्य मधुमक्खियां नहीं होती हैं, कई फूल वाले पौधे इस पर निर्भर होते हैं।

थापा कहते हैं, “इन मधुमक्खियों से इकट्ठा किया गया शहद का मूल्य इकोसिस्टम सर्विसेज़ की तुलना में कुछ भी नहीं है जो मदद वे हमें ऊंचाई वाले जैव विविधता संरक्षण में प्रदान करते हैं।”

“अगर हिमालयी चट्टान की मधुमक्खियां जाती हैं तो नेपाल के राष्ट्रीय फूल, रोडोडेंड्रोन की सभी प्रजातियां भी उनके पीछे चली जाएंगी।”

Ganga (second from left) and his fellow Naiche villagers cut wild bamboo into thin strips, which they will use to make the ladder needed for the honey hunt
गंगा (बाएं से दूसरे) और उनके साथी नाइचे ग्रामीणों ने जंगली बांस को पतली पट्टियों में काट दिया, जिसका उपयोग वे शहद के शिकार के लिए आवश्यक सीढ़ी बनाने के लिए करेंगे। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
) The group twist the bamboo strips into parang rope, which is then fixed with wooden rungs to make the hunting ladder
समूह बांस की पट्टियों को परांग रस्सी में घुमाता है, जिसे बाद में शिकार की सीढ़ी बनाने के लिए लकड़ी के डंडों से बांध दिया जाता है। 100 मीटर रस्सी बनाने के लिए लगभग 1,600 मीटर बांस की आवश्यकता होती है, और इस काम में लगभग दो दिन लगते हैं।(फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
The hunters climb towards the Kamcho cliff, about an hour’s walk from Naiche village, carrying their bamboo rope ladder
शिकारी बांस की रस्सी की सीढ़ी लेकर नाइचे गांव से लगभग एक घंटे की पैदल दूरी पर मौजूद कामचो चट्टान की ओर चढ़ते हैं। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

मार्सयांगडी ग्रामीण नगरपालिका के अध्यक्ष अर्जुन गुरुंग कहते हैं, “शहद का शिकार पर्यटन के आधारों में से एक है।” वो यह भी कहते हैं कि स्थानीय सरकार पर्यटकों को प्रोत्साहित करने के लिए अपने प्रचार को बढ़ाने के लिए उत्सुक है।

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा, “शहद का शिकार पारंपरिक तरीके से किया जाता है; हम ग्रामीणों के पारंपरिक तरीकों और अधिकारों को बाधित नहीं करना चाहते हैं।

अर्जुन ने द् थर्ड पोल को बताया कि अधिकारियों को जैव विविधता के लिए मधुमक्खियों के महत्व के बारे में पता नहीं था। यह पूछे जाने पर कि स्थानीय अधिकारियों द्वारा संरक्षण के क्या प्रयास किए जा रहे हैं, उन्होंने कहा: “हमने अभी तक कोई आवश्यकता नहीं देखी है क्योंकि हमें घोंसले के शिकार स्थलों के नुकसान के बारे में कोई शिकायत नहीं मिली है … अगर संरक्षण की आवश्यकता है तो हम इसे करेंगे। “

रत्ना का कहना है कि शहद की कटाई को रोक दिया जाना चाहिए और इको-टूरिज्म गतिविधियों को विकसित किया जाना चाहिए। उनका सुझाव है कि समूह शहद के छत्तों की वास्तविक कटाई के बिना यह दिखा सकते हैं कि शहद का शिकार कैसे होता है। इसकी मदद से मधुमक्खियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किए बिना ही पर्यटन किया जा सकता है।

जोशी शहद की हार्वेस्टिंग को लंबे समय तक कर पाने के लिए कई उपायों की सिफारिश करते हैं। वो कहते हैं कि मधुमक्खी के छत्ते के केवल एक हिस्से की कटाई की जाए और बाकी के आधे हिस्से को अबाधित छोड़ दिया जाए। वह जंगलों और घोंसले के शिकार स्थलों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने की सलाह भी देते हैं। वो कहते है कि हनी हंटर्स को उनकी सुरक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए क्लिफ्स का स्वामित्व और प्रबंधन की जिम्मेदारी देना चाहिए और इकोटूरिज्म गतिविधियां जैसे मधुमक्खी देखने को बढ़ावा देना चाहिए।

मधुमक्खियों पर डैम्स का क्या असर होता है?

हिमालय की विशाल मधुमक्खी के लिए सिर्फ़ जरूरत से अधिक हार्वेस्टिंग ही खतरा नहीं है। नेपाल हिमालय में, भू-विस्फोट और सड़कों और बांधों का निर्माण नाजुक पर्वतीय इकोसिस्टम को प्रभावित कर रहा है।

न्यादी नदी बेसिन में, जहां नाइचे गांव के शहद शिकारी रहते हैं, वहां पांच जलविद्युत परियोजनाएं हैं: तीन न्यादी की मुख्य धारा पर और दो इसकी सहायक नदियों पर। इनमें से दो पहले से ही चालू हैं, जबकि अन्य का निर्माण किया जा रहा है।

) An access road and tunnel being built just below the dam site of the 30 MW Nyadi Khola hydropower project
30 मेगावाट की न्यादी खोला जलविद्युत परियोजना के बांध स्थल के ठीक नीचे एक पहुंच मार्ग और सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। हंटर गंगा का कहना है कि निर्माण कार्य शुरू होने से पहले सड़क के ऊपर चट्टान पर हिमालय का विशालकाय मधुमक्खी का घोंसला हुआ करता था।(फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
A dry section of the Nyadi River, which has been diverted for the Nyadi Khola project.
न्यादी नदी का एक सूखा हिस्सा जिसे न्यादी खोला परियोजना के लिए मोड़ दिया गया है। हिमालय की विशाल मधुमक्खियां आमतौर पर पानी के पास घोंसला बनाती हैं – इसके बिना, वे क्षेत्र छोड़ देंगी। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)
Members of the honey hunting group cross the dry bed of the Siuri stream as they head towards the Kamcho cli
शहद शिकार समूह के सदस्य कामचो चट्टान की ओर बढ़ते हुए सिउरी धारा के सूखे बिस्तर को पार करते हैं। यह न्यादी नदी की सहायक नदियों में से एक है, लेकिन इसके पानी को 5 मेगावाट सिउरी खोला जलविद्युत स्टेशन को खिलाने के लिए एक पाइप के माध्यम से मोड़ दिया गया है। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)

थापा का कहना है कि एक घोसले को प्रतिदिन चार से पांच लीटर पानी की जरूरत होती है। मधुमक्खियों को भी स्वस्थ रहने के लिए पानी द्वारा ले जाए जाने वाले रेत और खनिजों की आवश्यकता होती है। इस वजह से, घोंसले आमतौर पर जल स्रोतों के पास होते हैं। थापा के रिसर्च में पाया गया है कि अगर घोंसलों के आसपास बहता पानी सूख जाता है, तो इलाके से कॉलोनियां भी गायब होने लगती हैं।

नाइचे गांव के पास मुख्य शहद शिकार स्थलों में से एक 30 मेगावाट की न्यादी खोला जलविद्युत परियोजना के लिए निर्माणाधीन बांध के ठीक नीचे है, जिस पर काम 2017 में शुरू हुआ था। गंगा याद करते हैं कि परियोजना के पास चट्टानों पर 22 घोंसले हुआ करते थे; आधे से भी कम बचे हैं।

वह इसके लिए ब्लास्टिंग और निर्माण कार्य के साथ-साथ वाहनों से होने वाले प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराते हैं।

गंगा इस बात से चिंतित हैं कि नदी के खंड में घोंसलों के नीचे, न्यादी खोला बांध के नीचे और इसके टरबाइन के आउटलेट से पहले पानी उपलब्ध नहीं रहेगा। गंगा कहते हैं, “भविष्य में जब पानी सुरंग के अंदर चला जाता है, जिससे नदी सूख जाती है, तो जंगली मधुमक्खियों को यह स्थान पित्ती बनाने के लिए अनुपयुक्त लग सकता है।”

Abandoned Himalayan giant honeybee nests, about 20 metres downstream of the powerhouse for the 30 MW Nyadi Khola hydropower project
30 मेगावाट की न्यादी खोला जलविद्युत परियोजना के लिए बिजलीघर से लगभग 20 मीटर नीचे, हिमालय के विशाल मधुमक्खी का एक घोंसला। नदी के किनारे मछलियां पकड़ते समय मधुकोश को छोड़ने के लिए लोगों ने उन पर पत्थर फेंके और घोंसलों को नष्ट कर दिया। जब से जलविद्युत परियोजना पर काम शुरू हुआ है, तब से क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां बढ़ी हैं। (फोटो: नवीन बराल / द् थर्ड पोल)