जलवायु

गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए गंभीर खतरा कैसे बनी हीटवेव्स

बढ़ते तापमान की वजह से गर्भावस्था में समय से पहले डिलीवरी होने की संभावना, जन्म के समय बच्चे के वजन में कमी, नवजात बच्चे की मृत्यु और स्टिलबर्थ होने का ज्यादा जोखिम बना रहता है। यह जलवायु प्रवृति दुनियाभर में मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा कर रही है।
<p>कई अध्ययनों के परिणामों को इकट्ठा करके पाया गया है कि गर्मी में हीटवेव्स के  दौरान प्री-मैच्योर डिलीवरी यानी समय से पहले जन्म में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।(फोटो: अलामी)</p>

कई अध्ययनों के परिणामों को इकट्ठा करके पाया गया है कि गर्मी में हीटवेव्स के  दौरान प्री-मैच्योर डिलीवरी यानी समय से पहले जन्म में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।(फोटो: अलामी)

इस साल जून आने से पहले ही गर्मी अपना विकराल रूप दिखा चुकी थी। देश की राजधानी दिल्ली का तापमान 49 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जा चुका था। हीटवेव्स यानी लू के थपेड़ों से बचने के लिए एडवाइजरी तक जारी करनी पड़ी थी। धरती के बढ़ते तापमान की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कुछ अध्ययनों में यह बात निकलकर सामने आई है कि गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों पर इसका काफी ज्यादा असर पड़ सकता है। 

अधिक तापमान होने की वजह से मनुष्य का शरीर का तापमान नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। वहीं, गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर का तापमान औसत से कुछ अधिक रहता है। गर्भावस्था शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता को भी प्रभावित करती है। बढ़ते तापमान की वजह से गर्भावस्था में समय से पहले डिलीवरी होने की संभावना, जन्म के समय बच्चे के वज़न में कमी, नवजात बच्चे की मृत्यु और स्टिल बर्थ होने का ज्यादा जोखिम बना रहता है। यह जलवायु प्रवृति दुनियाभर में मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा कर रही है। 

गर्मी की वजह से गर्भवती महिलाओं में प्री-मैच्योर डिलीवरी (समय से पहले बच्चे के पैदा) होने की संभावना बनी रहती है। समय से पहले बच्चे होने पर उनकी जान को भी खतरा हो सकता है। कई अध्ययनों के परिणामों को इकट्ठा करके पाया गया है कि गर्मी में हीटवेव्स के दौरान समय से पहले जन्म में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। गर्म हवाओं के प्रकोप से गर्भवती महिलाओं को ब्लड प्रेशर से जुड़ी समस्याओं का भी ज्यादा सामना करना पड़ सकता है।

एक ही शहर में रहने वाले लोगों पर तापमान में बढ़ोत्तरी का अलग-अलग अनुभव होगा।
डॉ दर्शनिका पेमी लाखू, शोधकर्ता

गर्मी अधिक होने से गर्भवती महिलाओं में डिहाइड्रेशन की समस्या पैदा हो जाती है। पसीना अधिक आने की वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाने का डर बना रहता है। हार्टबीट बढ़ने की भी संभावना बनी रहती है। महिलाओं को नवजात बच्चों को स्तनपान कराने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 

मानव शरीर पर उच्च तापमान के बुरे असर के लिए किए गए अध्ययनों में गर्भवती महिलाओं को हाल ही में उन समूहों में शामिल किया गया है जो इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं। गर्भवती महिलाओं पर गर्म हवाओं के प्रभाव को जानने के लिए 70 अध्ययनों का मेटा-विश्लेषण किया गया। इन अध्ययनों का परिणाम निकला है कि यदि एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है तो प्री-मैच्योर डिलीवरी और स्टिल बर्थ (जन्म से पहले बच्चे की मौत) का खतरा पांच फीसदी बढ़ जाता है।

आस्ट्रेलिया महाद्वीप की स्टडी के रिव्यू में पाया गया कि गर्म मौसम की वजह से स्टिल बर्थ के केसों में 46 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई। अधिकांश अध्ययनों में गर्मी की वजह से गर्भावस्था पर असर और जन्म के समय बच्चे के कम वजन के संबंध में पाया गया। 

ठीक इसी तरह द इंट्रोगर्वमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में एक भाग जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव पर केंद्रित किया गया है। रिपोर्ट के इस भाग में जलवायु परिवर्तन और हीट वेव्स की वजह से मातृ और भ्रूण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया गया है। अमेरिका में हीटवेव्स का असर को सामाजिक, आर्थिक और नस्लीय स्थिति से भी जोड़कर देखा गया है। जिसका परिणाम यह निकला है कि काली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान ज्यादा समस्या देखी गई है। 

आर्थिक और सामाजिक स्थिति भी करती है प्रभावित

डब्लयूएचओ के अनुमान के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से 2030 से 2050 तक ढ़ाई लाख अधिक लोगों की मौत की संभावना है। जलवायु परिवर्तन के इन कारणों में से एक प्रमुख वजह हीटवेव्स यानी गर्म हवाएं भी हैं। साइंस डॉयरेक्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक लोअर मिडिल इनकम वाले देशों में हीटवेव्स की वजह से गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों की जान को ज्यादा खतरा बना रहता है।

14 निम्न मध्यम आय वाले देशों में तेज गर्म हवाओं, समय से पहले जन्म और जन्म के बाद मौत के बीच संबंध पाया गया है। गर्भवती महिलाएं विशेष रूप से गर्मी की चपेट में आती है। स्वास्थ्य की नाजुक स्थिति की वजह से उनमें हीट स्ट्रोक, सांस लेने की समस्या और बच्चे को जन्म देने की परेशानी देखी गई है। 

अलग-अलग वर्ग और सामाजिक स्थिति की गर्भवती महिलाओं पर हीटवेव्स के पड़ने वाले असर में गरीब महिलाओं पर इसका ज्यादा असर हो सकता है। गर्मी से बचाव के ज्यादा साधन न होने की वजह से उनके स्वास्थ्य पर ज्यादा खतरा बन जाता है। डीडब्ल्यू में प्रकाशित लेख में डब्ल्यूआरएचआई की एक शोधकर्ता डॉ दर्शनिका पेमी लाखू का कहना है, “अलग-अलग आबादी के बीच तापमान के प्रभाव का असर वाकई में अलग-अलग होने जा रहा है। यह उनके रहने के इलाके पर निर्भर करता है। एक ही शहर में रहने वाले लोगों पर तापमान में बढ़ोत्तरी का अलग-अलग अनुभव होगा।”

बढ़ते तापमान का नवजात बच्चों पर असर

गर्म तापमान से केवल अजन्मे बच्चों को खतरा नहीं है, बल्कि नवजात बच्चों के लिए भी यह स्थिति बहुत खतरनाक है। द गार्डियन में प्रकाशित लेख के मुताबिक जलवायु संकट पूरी दुनिया में भ्रूण, नवजात और बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डालता है। अधिक तापमान की वजह से समय से पहले बच्चे के जन्म होने से उसके स्वास्थ्य पर आजीवन असर पड़ता है। इससे छोटे बच्चों की अस्पताल में भर्ती होने में बढ़ोत्तरी देखी जाती है।

इज़रायल के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में बच्चे के जीवन के पहले साल में गर्मी और तेजी से वजन बढ़ने के बीच भी संबंध पाया है। उन्होंने 2,00,000 बच्चों के जन्म का विश्लेषण करने पर पाया रात के समय 20 प्रतिशत अधिक तापमान की वजह से शिशुओं में तेजी से वजन बढ़ने का 5 प्रतिशत अधिक जोखिम था। जिससे बच्चों में आगे जाकर मोटापे की बीमारी होने की संभावना बन जाती है।  

बढ़ते तापमान की समस्या का क्या है हल?

दुनियाभर में बढ़ता तापमान एक जटिल समस्या बनता जा रहा है। गर्भावस्था के समय नाजुक स्वास्थ्य को यह अधिक प्रभावित कर कई तरह की परेशानियों को बढ़ाने का काम कर सकता है। प्री मैच्योर डिलीवरी की वजह से माँ और बच्चे दोंनो की सेहत पर पड़नेवाले असर को लंबे समय तक देखा जा सकता है। दुनियाभर में हीटवेव्स के गर्भावस्था पर पड़ने वाले असर से संबंधित रिसर्च सामने आने के बाद भी इस दिशा में बात हो रही है।

अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट (एसीओसी) ने गर्मी के प्रभाव के बारे में चेतावनी, मरीजों को इसकी जानकारी देना और हेल्थ सिस्टम में इसकी तैयारी को लेकर एक गाइडलाइंस जारी कर चुका है। एसीओसी की डॉ डीनिकोला का कहना है कि वीमन हेल्थ प्रोवाइडर की पूरी एक पीढ़ी को हमें इस के संदभ में ट्रेनिंग देने की ज़रूरत है। हमें इस बारे में न केवल समस्याएं आने पर बल्कि नियमित रूप से निवारण करने के लिए बात करनी चाहिए।

यह स्टोरी सबसे पहले फेमिनिज़म इन इंडिया में छपी थी और अनुमति के साथ यहां पुनर्प्रकाशित की गई है।