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विचार: नुकसान और क्षति पर सकारात्मक रुख न अपनाने पर मुकदमे का जोखिम उठाएंगे विकसित देश

जलवायु परिवर्तन के कारण हुए नुकसान के भुगतान के लिए वित्त प्रदान करने के ठोस उपायों के बिना ही कॉप26 समाप्त हो गया। अगर अमीर देश जल्द ही इस पर ध्यान नहीं देते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय अदालतों में कानूनी मामले चलेंगे।
<p>लोग नवंबर, 2021 में ग्लासगो में COP26 में जलवायु परिवर्तन प्रभावों से जुड़े नुकसान और क्षति के लिए वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के प्रशासन का विरोध करते हैं (फोटो: यवेस हरमन / अलामी)</p>

लोग नवंबर, 2021 में ग्लासगो में COP26 में जलवायु परिवर्तन प्रभावों से जुड़े नुकसान और क्षति के लिए वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के प्रशासन का विरोध करते हैं (फोटो: यवेस हरमन / अलामी)

तीस साल पहले, वैनुआटू ने पहली बार जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान की तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा था। एलायंस ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स (एओएसआईएस) के अध्यक्ष के रूप में, 1991 में दक्षिण प्रशांत महासागर के इस राष्ट्र ने अंतर सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया और जलवायु परिवर्तन पर एक फ्रेमवर्क कन्वेंशन विकसित करने की दिशा में काम हुए।

पिछले एक दशक में, नागरिक समाज के अथक प्रयासों और जलवायु-प्रेरित आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने अंततः इस मुद्दे को वैसी मान्यता देना शुरू कर दिया है, जैसी इसे आवश्यकता है। पिछले महीने कॉप26 में, ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट ने जलवायु परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत ‘नुकसान और क्षति’ के महत्व को मान्यता दी। कॉप के फैसले में नुकसान और क्षति पर अभी तक ये सबसे मजबूत शब्द हैं।

नुकसान और क्षति क्या है?

ग्लोबल वार्मिंग पर्यावरण को बदल रही है। इससे लगातार और तीव्र बाढ़, लू, तूफान और समुद्र के स्तर में वृद्धि शामिल हैं। इनमें से कुछ प्रतिकूल प्रभावों के जवाब में, लोग अपने बदलते परिवेश के अनुकूल हो सकते हैं। लेकिन कई उदाहरणों में, अनुकूलन असंभव है। इन सब प्रभावों से जीवन खत्म हो जाता है। तटबंध टूट जाते हैं। भूमि बंजर हो जाती है। निवास स्थान स्थायी रूप से बदल जाता है और पशुधन मारे जाते हैं। जलवायु परिवर्तन के जिन सामाजिक और वित्तीय प्रभावों से बचा नहीं जा सकता है, उन्हें ‘नुकसान और क्षति’ कहा जाता है।

यह मान्यता एक ऐसे वर्ष के मद्देनजर आई है जब पूरी दुनिया में बेहद खराब मौसम सुर्खियों में रहा है। स्पेन और अमेरिका ने सबसे भारी हिमपात का सामना किया। विनाशकारी बाढ़ ने ब्रिटेन, जर्मनी, भारत और चीन को प्रभावित किया। इंडोनेशिया में तूफान, कनाडा में एक अभूतपूर्व लू और यूरोप व तुर्की में घातक जंगल की आग इस साल सुर्खियों में रही।

विडंबना यह है कि इस साल बेहद खराब मौसम की घटनाओं ने अमीर देशों को भारी नुकसान पहुंचाया, जो पहले सोचते थे कि जलवायु परिवर्तन से होने वाली दिक्कतें मुख्य रूप से विकासशील दुनिया की समस्या है। विकसित देशों को शुरुआती औद्योगीकरण और प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण से काफी हद तक फायदा हुआ है। इसलिए उनके पास अनिश्चित मौसम पैटर्न और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाओं के प्रभावों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी और वित्तीय संसाधन हैं।

इस बीच, गरीब देशों के पास जलवायु आपदाओं से उबरने के लिए सीमित संसाधन हैं। 2030 तक, विकासशील देशों में जलवायु-प्रेरित नुकसान और क्षति का अनुमान 290-580 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

यह स्थिति चिंताजनक है। दुनिया के नेताओं को अभी कार्रवाई करने की जरूरत है। फिर भी, कॉप26, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण हुए नुकसान के लिए वित्त प्रदान करने के लिए एक ठोस उपाय के बिना समाप्त हो गया। विकासशील देशों, जो दुनिया की 85 फीसदी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने प्रस्तावित किया कि एक हानि और क्षति वित्त सुविधा स्थापित की जानी चाहिए। यह अमीर देशों द्वारा इसे ठुकरा दिया गया था, जो मुख्य रूप से जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

कॉप26 में हानि और क्षति पर क्या हुआ?

ग्लासगो क्लाइमेट समिट के महीनों पहले, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क- 130 से अधिक देशों में 1,500 से अधिक नागरिक समाज संगठनों के एक वैश्विक नेटवर्क- ने घोषणा की कि नुकसान और क्षति, सम्मेलन की सफलता की संभावना को देखने के लिए यह “लिटमस टेस्ट” होगा।

हालांकि यह मुद्दा आधिकारिक कॉप26 एजेंडे में नहीं था। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क अपने सदस्यों और सहयोगियों के साथ, हानि और क्षति सहयोग, हानि और क्षति यूथ संघ और कॉप26 संघ, नागरिक समाज को संगठित करने, मीडिया को सूचित करने और मुद्दे को प्राथमिकता देने के लिए प्रमुख वार्ताकारों को प्रभावित करने के लिए अनेक काम करता है।

सम्मेलन की शुरुआत में, स्कॉटलैंड के मंत्री निकोला स्टर्जन ने विकासशील देशों को नुकसान और क्षति से निपटने में मदद करने के लिए एक प्रतीकात्मक 1 मिलियन जीबीपी फंड का वादा किया। ऐसा करके उन्होंने इस मुद्दे के इर्द-गर्द की वर्जना को तोड़ दिया। कुछ दिनों बाद, उन्होंने राशि को दोगुना कर दिया। साथ ही, इस बात जोर दिया कि दान के कार्य के रूप में नहीं बल्कि प्रतिपूर्ति के कार्य के रूप में, वित्त इसके लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्व के नेताओं से “ग्लासगो में कदम आगे बढ़ाने, अमीर देशों को दुनिया भर के विकासशील व कमजोर देशों को अपना कर्ज चुकाने का काम शुरू करने” का आह्वान किया।

Nicola Sturgeon, Scotland’s first minister, meets climate activists Vanessa Nakate and Greta Thunberg at COP26 in Glasgow, Andy Buchanan
ग्लासगो में कॉप26 में, स्कॉटलैंड की मंत्री (बीच में) निकोला स्टर्जन, जलवायु कार्यकर्ता वैनेसा नाकाटे (दाएं) और ग्रेटा थनबर्ग मुलाकात करते हुए (Image: Andy Buchanan / Alamy)

सबसे कम विकसित देशों के समूह के समर्थन से एओएसआईएस ने कन्वेंशन के वित्तीय तंत्र के तहत ‘ग्लासगो लॉस एंड डैमेज फैसिलिटी’ स्थापित करने का प्रस्ताव दिया। बाद में इसे सभी विकासशील देशों समूह, जिसे जी-77 कहा जाता है और चीन द्वारा अपनाया गया।

यह सुविधा नुकसान और क्षति को रोकने, कम करने और इन समस्याओं से निपटने के लिए सहायता प्रदान करेगी। साथ ही, अगले जलवायु सम्मेलन कॉप27 के लिए संस्तुतियां प्रदान करने के उद्देश्य पर भी 2022 में काम करेगी।  

ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका ने इस मांग का कड़ा विरोध किया। इसके जवाब में, चिल्ड्रेंस इन्वेस्टमेंट फंड फाउंडेशन के नेतृत्व में परोपकारी संगठनों के एक समूह ने इसे अपना समर्थन देते हुए एक बयान जारी किया और “ग्लासगो लॉस एंड डैमेज फैसिलिटी के उद्देश्यों का समर्थन करने के लिए स्टार्ट-अप सहायता के रूप में 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की।

जैसे ही, सम्मेलन समाप्त हुआ, बेल्जियम के तीन क्षेत्रों में से एक, वालोनिया के जलवायु मंत्री फिलिप हेनरी ने “जलवायु परिवर्तन से जुड़े नुकसान और क्षति का सामना करने वाले सबसे कमजोर देशों को सक्षम करने” के लिए 1 मिलियन यूरो का वचन दिया।

इस तरह एक तरफ, गरीब देशों में प्रभावित समुदायों को वित्तीय सहायता देने के लिए एकजुटता वाले प्रयास थे, लेकिन बड़े देशों ने, नुकसान और क्षति की सुविधा स्थापित करने के बजाय, 2022 और 2024 के बीच “वित्त पोषण की व्यवस्था पर चर्चा” करने के लिए “संवाद” के विचार पर जोर दिया। इस भाषा को अंततः ग्लासगो जलवायु संधि में अपनाया गया था। छोटे द्वीप वाले राष्ट्रों के समूह ने अनिच्छा से परिणाम को स्वीकार किया।

उन्होंने कॉप26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा को एक कड़ा बयान दिया: “आम सहमति तक पहुंचने के हित में एओएसआईएस इसे स्वीकार करेगा क्योंकि हम इस स्पष्ट समझ के साथ खड़े हैं कि यह संवाद, हानि और क्षति वित्त सुविधा के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि बातचीत से यह निष्कर्ष निकलेगा कि नई हानि और क्षति वित्त सुविधा को अगले कॉप में अपनाया जाएगा।

नुकसान और क्षति का निराशाजनक इतिहास

संयुक्त राष्ट्र प्रणालियों में नुकसान और क्षति को मान्यता दिलाने के लिए जलवायु-संवेदनशील देशों की लंबी लड़ाई में कई निराशाएं हैं।

2015 में, अमीर देश नुकसान और क्षति को अनुकूलन से अलग एक मुद्दे के रूप में पहचानने के लिए सहमत हुए, बशर्ते कि कॉप21 निर्णय में अलग से एक खंड डाला जाए। इसमें कहा गया “[पेरिस] समझौते के अनुच्छेद 8 में किसी भी दायित्व या मुआवजे के लिए आधार शामिल नहीं है या प्रदान नहीं करता है”। असीमित दायित्व के डर ने उन्होंने इस खंड को जोड़ने के लिए दबाव डाला।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा जारी सलाहकार राय, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, वे नैतिक अधिकार प्रदर्शित करते हैं और कानूनी वजन ऱखते हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानून के विकास को सूचित कर सकते हैं।

विकासशील देश, इस मुद्दे पर धीरे-धीरे प्रगति करने की उम्मीद में, और सहयोग और एकजुटता के आधार पर अमीर देशों से वित्त और अन्य समर्थन की उम्मीद करते हुए, असहाय रूप से सहमत हुए। हालांकि, एक नई धारा स्थापित करने की तो बात ही छोड़िए, अमीर देशों ने वित्त मुद्दे पर चर्चा करने के लिए वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म फॉर लॉस एंड डैमेज के तहत एक विशेषज्ञ समूह स्थापित करने की मांग को रोकना जारी रखा।  नागरिक समाज और विकासशील दुनिया के दबाव ने अमीर देशों को मैड्रिड में 2019 में “कार्रवाई और समर्थन” पर एक विशेषज्ञ समूह स्थापित करने के लिए मजबूर किया। हालांकि, इसका दायरा सीमित था।

प्रभावित राष्ट्रों का मुकदमेबाजी की ओर रुख

अंत में, सितंबर 2021 में, वानुअतु ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए, वर्तमान और भावी पीढ़ियों के अधिकारों पर एक राय जारी करने के लिए कहा। इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि बहुपक्षीय तंत्रों के भीतर, कमजोर विकासशील देशों के लिए कार्रवाई और समर्थन का मौजूदा स्तर, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित नुकसान और क्षति के विनाशकारी स्तरों का जवाब देने के लिए अपर्याप्त है। हालांकि अदालत द्वारा जारी सलाहकार राय, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, वे नैतिक अधिकार प्रदर्शित करते हैं और कानूनी वजन ऱखते हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानून के विकास को सूचित कर सकते हैं।

कॉप26 की शुरुआत से ठीक पहले, एंटीगुआ और बारबुडा के प्रधानमंत्री और एओएसआईएस के वर्तमान अध्यक्ष गैस्टन ब्राउन और तुवालु के प्रधानमंत्री कौसिया नाटानो ने अंतरराष्ट्रीय अदालतों के समक्ष मुकदमेबाजी के लिए दरवाजा खोलने वाले एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें विकासशील देशों से, विकसित देशों और निगमों के खिलाफ मुकदमेबाजी शामिल होगी।

यह समझौता जलवायु परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय कानून पर छोटे द्वीपीय राज्यों का एक आयोग स्थापित करता है, जो निष्पक्ष और न्यायसंगत वैश्विक पर्यावरण मानदंडों और प्रथाओं के विकास और कार्यान्वयन के लिए एक निकाय बनाता है। यह कार्बन उत्सर्जन, समुद्री प्रदूषण और बढ़ते समुद्र के स्तर के लिए राष्ट्रों की कानूनी जिम्मेदारी पर, एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी न्यायिक निकाय, समुद्र के कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण से सलाहकार राय का अनुरोध करने के लिए भी अधिकृत है।

ग्लासगो में अपने समापन हस्तक्षेप में, विकासशील देशों ने फिर से हानि और क्षति वित्त सुविधा स्थापित करने की अपनी अधूरी मांग को उठाया, और जोर देकर कहा कि यह मिस्र में 2022 में आयोजित होने वाले कॉप27 जलवायु सम्मेलन में अमल में लाया जाए। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ते और तीव्र होते जा रहे हैं, अगर अमीर देश एकजुटता नहीं दिखाते हैं और विकासशील देशों के साथ सहयोग से काम नहीं करते हैं, तो प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ और कानूनी मामले दर्ज होने की आशंका है। इसका उद्देश्य उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराने और हुए नुकसान के लिए उनसे भुगतान कराकर न्याय की तलाश करना होगा।