icon/64x64/climate जलवायु

जलवायु परिवर्तन से भारत में बढ़ीं बिजली गिरने की घटनाएं

पिछले 50 साल के दौरान भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली मौतों में बहुत बड़ा हिस्सा आकाशीय बिजली गिरने के कारण होने वाली मौतों का है, फिर भी बिजली गिरने को आपदा घोषित नहीं किया गया है।
<p>राजस्थान के जैसलमेर शहर के ऊपर आकाशीय बिजली का कहर (Image: Alamy)</p>

राजस्थान के जैसलमेर शहर के ऊपर आकाशीय बिजली का कहर (Image: Alamy)

जलवायु परिवर्तन के चलते 1970 के दशक के बाद से दक्षिण एशिया में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मानसून में बिजली गिरने की वजह से बड़ी संख्या में जानें जाती हैं, खासकर खेत में काम कर रहे किसानों की।

आकाशीय बिजली अब भारत में सबसे घातक प्राकृतिक खतरा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 1967 से लेकर 2019 के बीच बिजली गिरने से 100,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई। यह संख्या 52 साल में प्राकृतिक आपदाओं में हुई कुल मौतों की 33 फीसदी है, जोकि बाढ़ के कारण होने वाली मौतों की तुलना में दोगुनी से अधिक है।

इसके बावजूद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अभी तक आकाशीय बिजली गिरने की समस्या को आधिकारिक तौर पर प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित नहीं किया है। राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (एसडीआरएफ) में चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट हमले, ठंड, शीत लहर और अब कोविड-19 को भी शामिल कर लिया गया है।

जब तक बिजली गिरने की घटना को आधिकारिक सूची में नहीं जोड़ा जाता है, तब तक सभी विकास और आपदा प्रबंधन योजनाओं में बिजली गिरने से उत्पन्न जोखिमों को शामिल करना अनिवार्य नहीं माना जाता है।

किस कारण से गिरती है बिजली?

बिजली गिरना असल में स्थैतिक ऊर्जा का निकलना होता है, जो वातावरण में असंतुलन के कारण निकलती है, जब बहुत अधिक ठंडी हवा, गर्म हवा की सतह में पहुंच जाती है। जैसे ही जल वाष्प पृथ्वी की गर्म सतह से मिलता है, यह वायुमंडल में प्रवेश करता है और जम जाता है। यही बर्फ के कण जब आपस में टकराते हैं तो इनके घर्षण से विद्युत आवेश उत्पन्न होता है। यह आवेश पृथ्वी की सतह और अन्य बादलों की ओर आकर्षित होता है, जहां यह बिजली के रूप में गिरता है।

उष्ण कटिबंध में अन्य क्षेत्रों की तुलना में बिजली अधिक गिरती है क्योंकि यहां के वातावरण में गर्मी और नमी अधिक होती है। दुनिया भर में एक ही समय पर दो मिलियन यानी 20 लाख से अधिक बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।

भारत में बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि जारी

हाल के वर्षों में भारत में बिजली गिरने की आवृत्ति, तीव्रता और भौगोलिक प्रसार में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। एक एनजीओ क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (CROPC) की ओर से प्रकाशित 2020-21 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल के अंदर बिजली गिरने की घटनाओं में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों की ओर से वर्ष 2014 में किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि वैश्विक औसत हवा के तापमान में हर एक डिग्री वृद्धि से अमेरिका में बिजली गिरने का खतरा 12 फीसदी तक बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं ने वर्ष 2100 तक अमेरिका में बिजली गिरने की घटनाओं में 50 फीसदी तक वृद्धि होने का अनुमान लगाया है। क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल के आंकड़ों से पता चला है कि भारत पहले से ही बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी का सामना कर रहा है। निकट भविष्य में भारत में स्थिति और अधिक विकराल हो सकती है।

अस्थिर मानसून मतलब बिजली गिरने का अधिक खतरा

मौसम में बढ़ती गर्मी और नमी आ​काशीय बिजली गिरने के लिए आदर्श स्थिति बनाते हैं, इसलिए जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में वृद्धि होगी, वैसे-वैसे हीटवेव, तूफान और बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी।

दक्षिणी एशिया में मानसून से पहले आने वाले तूफानों के दौरान बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। मानसून में यह पीक पर पहुंच जाती हैं और सितंबर में मानसून की वापसी के दौरान ये घटनाएं फिर से बढ़ जाती हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अधिक अनिश्चित हो गया है। अब बरसात के मौसम में अक्सर तेज धूप पड़ने लगी है, इससे मानसून के दौरान बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ गई हैं। पिछले दो वर्षों में बिजली गिरने की घटनाओं की संख्या देखें तो पता चलता है कि मानसून और उसके आसपास बिजली गिरने का जोखिम चरम पर रहता है। इन दो वर्षों में सबसे अधिक घटनाएं अप्रैल और मई में हुईं थीं। बता दें कि दक्षिण एशिया में सबसे गर्म प्री मानसून महीने होते हैं। यह मौसम जोकि भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग है, आपदा की तैयारियों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। संस्था सीआरओपीसी ने प्रत्येक राज्य में उन जगहों की पहचान की है, जो बिजली गिरने के लिए हॉटस्पॉट हैं। संस्था की यह जानकारी स्थानीय नीति निर्माताओं को बिजली गिरने की घटनाओं से लोगों की बचाने में मदद कर सकती है।

कितने खतरनाक होते हैं बिजली के झटके?

नेशनल ज्योग्राफिक के मुताबिक, आकाशीय बिजली की चपेट में आए करीब 10 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है। बिजली गिरने से लोगों को दिल का दौरा पड़ सकता है। इसके अलावा, 70 फीसदी पीड़ितों को मानसिक क्षति, जलन और दौरे जैसी गंभीर दीर्घकालिक परेशानियों से जूझना पड़ता है।

भारत में बाढ़ और चक्रवात के दौरान पूर्व चेतावनी प्रणाली के चलते जानमाल के नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। इसके विपरीत, देश में बिजली गिरने के जोखिम को कम करने के लिए अभी तक कोई काम नहीं किया गया है।

आकाशीय बिजली की चपेट में आने वाले ज्यादातर लोग घर के बाहर होते हैं। इससे सबसे अधिक खतरा किसानों, चरवाहों, मछुआरों, निर्माण व खे​ती के काम में लगे श्रमिक और बाहरी कारखानों जैसे-ईंट भट्टों में काम करने वाले लोगों को रहता है। किसी पेड़, खंबे या इमारत जैसी ऊंची सुनसान वस्तु के नीचे शरण लेने वाले व्यक्ति के इसकी चपेट में आने का खतरा बना रहता है।

इन राज्यों ने किए हैं कुछ उपाय

जब बिजली गिरती है तो बचने के लिए कोई भी एक्शन लेने का वक्त नहीं मिलता है। इससे सुरक्षित रहने का एकमात्र तरीका सावधानी और इससे बचने की जानकारी ही है।

देश के कुछ राज्यों- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, केरला, नागालैंड और बिहार ने ​व्यापक तौर पर बिजली जोखिम प्रबंधन उपाय किए हैं। इसका परिणाम यह है कि अप्रैल, 2019 से लेकर मार्च, 2021 के बीच आंध्र प्रदेश और ओडिशा में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में 70 फीसदी तक की कर्मी आई है।

जागरूकता की जरूरत

सीआरओपीसी ने वर्ष 2019 में लाइटनिंग रेजिलिएंट इंडिया अभियान 2019-2022 शुरू किया। इसमें सिटिजन साइंस अप्रोच का उपयोग किया जाता है। अभियान में भारत मौसम विज्ञान विभाग और वर्ल्ड वि​जन इंडिया भी साझेदार हैं। साथ ही सरकार के लिए काम करने वाली कई एजेंसियों का समर्थन प्राप्त है। इस अभियान को भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा बनाई गई एक पूर्व चेतावनी प्रणाली के माध्यम से चलाया जा रहा है। वर्ष 2019 में आईएमडी ने बिजली गिरने और गरजने को लेकर पूर्वानुमान जारी करना शुरू किया, जिसे 24 घंटे या फिर तीन से चार घंटे पहले जारी किया जाता था।

अप्रैल, 2019 में शुरू होने के बाद से यह अभियान अपने सामूहिक प्रयासों के माध्यम बिजली गिरने से होने वाली मौतों में काफी कमी ला चुका है। अब इसका लक्ष्य आने वाले तीन साल में जानमाल के नुकसान को 80 फीसदी तक कम करना है।

अब तक उठाए गए ये कदम

आकाशीय बिजली के जोखिम से निपटने के लिए उठाए गए अन्य कदमों में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने दामिन मोबाइल ऐप लॉन्च किया है। यह ऐप मोबाइल के आसपास कम से कम 40 किलोमीटर के दायरे में बिजली का पूर्वानुमान बताता है और इससे बचने के लिए सुझाव भी देता है। वहीं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘लाइटनिंग डिटेक्शन नेटवर्क’ और ‘ऑनलाइन लाइटनिंग अर्ली वार्निंग सिस्टम’ तैयार किया है। यह पूर्व चेतावनी राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन अधिकारियों को भेजी जाती है।

इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के जरिये स्वयंसेवक आकाशीय बिजली के बचने के संभावित उपायों को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। देश भर में अधिक से अधिक मौसम निगरानी स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं। संस्थागत भवनों जैसे- स्कूल, अस्पताल, सामुदायिक केंद्र आदि में बिजली सुरक्षा उपकरणों को स्थापित किया गया है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने राज्य सरकारों को आकाशीय बिजली से निपटने के लिए एक्शन प्लान बनाने और पूर्व चेतावनी देने संबंधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें जनता के लिए क्या करना है और क्या नहीं, इसकी भी एक सूची है। अब तक 17 राज्य सरकारों ने बिजली गिरने को आपदा के रूप में अधिसूचित​ किया है। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसे अभी तक आपदा के रूप में अधिसूचित​ नहीं किया है।

संस्था सीआरओपीसी ने अकादमिक और वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग से अनुसंधान और विकास के मार्ग का नेतृत्व किया है। इसका परिणाम यह है कि अब इस विषय पर और अधिक शोध किए जा रहे हैं। सीआरओपीसी की रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है।

जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों को लेकर लोगों को जागरूक करने में राज्य और स्थानीय प्रशासन को अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

अपने कमेंट लिख सकते हैं

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.