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बाढ़ की भारी तबाही के बीच उत्तराखंड में बांधों के निर्माण पर मंत्रालयों में टकराव

आपस में मिलकर गंगा का निर्माण करने वाली सभी हिमालयी नदियां इस मानसून में उफान पर हैं। अप‌सर्जित बांधों के कारण तीव्र बाढ़ की स्थिति और विकराल होती जा रही है। इन सबके बावजूद कुछ मंत्रालय अब भी बांधों का निर्माण चाहते हैं।
<p>Flash floods have been devastating Uttarakhand [image by Dev Dutt Sharma / Mountain Partnership]</p>

Flash floods have been devastating Uttarakhand [image by Dev Dutt Sharma / Mountain Partnership]

भारत में सालाना 17-18 सप्ताह लंबे ग्रीष्म मानसून के छह सप्ताह बाद ही, उत्तराखंड एक के बाद एक तीव्र बाढ़ों का सामना कर रहा है। इसके लिए कुछ हद ‌तक हिमालयी राज्यों में शुरू किए गए हाइड्रोइले‌क्ट्रिक परियोजनाओं को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है, जिसे 2013 में भारी बाढ़ को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश में यथास्थिति में छोड़ दिया गया था।

दूसरा बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है, जिसके कारण इस मानसून में वर्षा के दिनों में कमी आई है, लेकिन उन दिनों बहुत तीव्र वर्षा होती थी। हिमालयी राज्यों में 1990 के दशक के अनुपात में औसत तापमान में तीन गुनी वृद्ध‌ि होने से हिमनद भी तेजी से पिघल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बेसुध पड़े अल्प निर्मित बांधों के कारण नदियों के बहाव की दिशाओं में हुए परिवर्तन की दोहरी मार से उत्तराखंड के ग्रामीण निवासियों को भारी भू-स्‍खलन का सामना करना पड़ रहा है। इससे खाने-पीने की चीजें उनसे दूर हो जाती हैं और उनके घर के बह जाने या दूसरे भू-स्खलन में दफन हो जाने का खतरा मंडराने लगता है।

पहाड़ी समुदाय बाढ़ और भू-स्‍खलन के कारण अलग हो जाते हैं।  [image by Dev Dutt Sharma / Mountain Partnership]
पहाड़ी समुदाय बाढ़ और भू-स्‍खलन के कारण अलग हो जाते हैं।
[image by Dev Dutt Sharma / Mountain Partnership]
गंगा बेसिन के मु‌हाने पर मध्य जुलाई की स्थिति पर एक नजर डालते हैं :

-तीव्र बाढ़ और भू-स्‍खलन के कारण, प्रसिद्ध तीर्थ स्‍थान बद्रीनाथ की ओर जाने वाले राजमार्ग को बंद कर दिया गया।

-नंद प्रयाग जाने वाले रास्ते को एक पखवाड़े के लिए बंद कर दिया गया इसके कारण वहां रहने वाले परिवारों को भोजन की किल्लत का सामना करना पड़ा। पहाड़ी पर शिलाखंडों की पकड़ ढीली पड़ने से उनके घरों पर लगातार खतरा मंडराने लगा। सड़क निर्माण सामग्री को भी एक तरफ नहीं किया गया था।

-चर्चित हिल स्टेशन मसूरी में मूसलाधार बारिश ने सभी को अपने घरों के भीतर सिमट जाने पर मजबूर कर दिया, जबकि राज्य की राजधानी देहरादून से निकलने वाली सड़क को भूस्‍खलन से भारी क्षति पहुंची।

-हल्द्वानी और चोरगलिया के रास्ते पर एक बस तीव्र बाढ़ में बह गई। स्‍थानीय लोगों ने अपनी जान पर खेल कर 24 यात्रियों को बचाया।

-प्रसिद्ध धारी देवी मंदिर के पास थैलसेन गांव में 8 घर तीव्र बाढ़ में बह गए। मंदिर के रास्ते में दरार आ गई। तेज बारिश में अलकनंदा नदी से यहां आने वाले एक पुल पर जोखिम आ गया। (हिमालय में अलकनंदा, गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है)

– बड़े-बड़े पेड़ जड़ों से उखड़ कर पुलों की नींव को लगातार क्षतिग्रस्त करते हुए नीचे बाढ़ के पानी में तैरने लगे।

-भूस्‍खलन ने गंगोत्री और यमुनोत्री के रास्ते को जोखिम में डाल दिया।

-गंगोत्री के रास्ते में भाटवारी में एक भूस्‍खलन स्‍थल पर दिल्ली से गए सैलानियों के एक समूह को तब अपनी कार से बाहर आकर पत्‍थरों को मार्ग से हटाना पड़ा, जब अचानक एक शिलाखंड खिसकर उनके कार पर आ गिरी। यमुनोत्री के रास्ते में एक कमजोर सड़क, पूर्ण रूप से लदे ट्रक के भार से नीचे धंस गई और घंटों तक वहां यातायात अवरुद्ध हो गया। इन रास्तों पर भूस्‍खलन के दो मामले प्रकाश में आए, जिसमें कुछ मीटर की ऊंचाई से गुजरने वाली गाड़ियां गायब हो गईं।

-देहरादून सहित लगभग पूरे उत्तराखंड के शहरों में मानसून से पहले नालों में जमी गाद को बाहर नहीं निकाला गया था, नतीजतन बारिश का पानी सड़कों पर बहता रहा।

लोग त्रस्त हैं, मंत्रालय झगड़ रहे हैं

इस प्रकार की परिस्थिति में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय रुके हुए बांधों के निमार्ण कार्य को दोबारा शुरू करने के लिए झगड़ रहे हैं। विद्युत और पर्यावरण मंत्रालय, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि वे पांच हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं को शुरू करना चाहते हैं, जबकि जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने किसी भी नई शुरुआत का विरोध किया है। जल संसाधन मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा है, “तीनों नदियों, अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी तथा गंगा नदी को देव प्रयाग के नीचे से लेकर गंगा सागर तक मौजूदा स्वरूप में रखा जाना चाहिए और इसमें आगे किसी प्रकार की बाधा/रुकावट अथवा मोड़ नहीं आना चाहिए। गंगा के हिमालय से निकलकर मैदान में प्रवेश से पहले, अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी गंगा में मिलती हैं। गंगा सागर, गंगा के अंतिम छोर पर स्थित है, जहां से गंगा, बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर जाती है।

जल संसाधन मंत्रालय ने thethirdpole.net से कहा कि प्रधानमंत्री गंगा में पर्याप्त पानी की उपलब्‍धता को लेकर चिंतित थे, ताकि गंगा में गिरने वाले प्रदूषण की स्थिति को और अधिक विकराल होने से बचाया जा सके। लेकिन विद्युत मंत्रालय उन परियोजनाओं के लिए एक नई हाइड्रोपावर नीति तैयार कर रहा है, जिन्हें इन परियोजनाओं के कारण निर्वासित होने वाले लोगों के विरोध के चलते रोक दिया गया था। पर्यावरणविद् भी इन परियोजनाओं का विरोध करते रहे हैं, जिनके तर्क को उत्तरांखड की विभिषिका से बल मिलता है।

जब 2013 में उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, तब वर्षों से ‌नियोजित पड़ी 70 हाइड्रोपावर परियोजनाओं में से वहां 24  परियोजनाएं निर्माणाधीन थीं। इन कुल 70 परियोजनाओं से 9,000 मेगावाट बिजली के उत्पादन की संभावना है, लेकिन अब जल संसाधन मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को इंगित किया है कि इस ऊर्जा ‌परियोजना को, नदियों के जल वहन क्षमता, नदियों के सदानीरा रहने के लिए न्यूनतम जल की आवश्यकता या स्‍थानीय लोगों की आवश्यकताओं पर विचार किए बिना ही निर्धारित कर दिया गया है। अब मंत्रालय सभी प्रस्तावित परियोजनाओं पर ध्यान देते हुए एक संचयी प्रभाव अध्ययन चाहता है।

पांच बांध जिन्हें अन्य मंत्रालय पुनर्जीवित करना चाहते हैं, उनमें 300 मेगावाट की अलकनंदा परियोजना, 24.3 मेगावाट की भायंदर गंगा परियोजना, 4 मेगावाट की खिराओ गंगा परियोजना, 171 मेगावाट की लता तपोवन परियोजना और 195 मेगावाट की कोटलीभेल 1A परियोजना शामिल है। सरकार ने अलकनंदा और कोटलीभेल 1A परियोजनाओं पर “व्यापक प्रारूप सुधारों” की शिफारिश की है।

इसका विरोध करते हुए और यह इंगित करते हुए जल संसाधन मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा, “यदि गंगा के उद्गम से समझौता किया गया, तो नदी का संरक्षण असंभव हो जाएगा।”

पर्यावरण मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय से कुछ इसी तरह की बात कही थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। मीडिया खबरों में आया है कि यह बदलाव प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ बैठक के बाद आया है।

गंगा के लिए नया कानून 

जहां, सर्वोच्च न्यायालय को सरकार के विभिन्न विभागों के टकरावों से जूझना है, जल संसाधन मंत्रालय गंगा सफाई के लिए एक विधेयक के साथ आगे बढ़ रहा है। मंत्री उमा भारती ने कहा है  कि उन्होंने विधेयक के लिए लिए उन राज्यों से समर्थन जुटा लिया है, जहां से (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल) गंगा बहती है। यह जरूरी है क्योंकि जल स्रोतों के विभिन्न पहलू भारतीय संविधान के तहत केंद्र, राज्य और समवर्ती सूची के विषय हैं। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के वर्तमान सदस्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश गिरधर मालवीय, विधेयक तैयार करने वाले दल का नेतृत्व करेंगे।

मंत्रालय को, प्रधानमंत्री के प्रमुख कार्यक्रम ‘स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन’ जिसे नमामि गंगे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत नदी सफाई, जल बहाव में सुधार और बड़े जहाजों के नौवहन के योग्य बनाना है, के तहत परिणाम दिखाना है। इस मिशन के लिए मई, 2015 से शुरू होकर अगले पांच सालों के लिए 20,000 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया गया है।

उमा भारती, जल्दबाजी में योजनाओं को जारी करती रही हैं। उन्होंने हाल ही में गंगा के साथ-साथ उसकी सहायक नदियों के घाटों और श्मसान स्‍थलों के नवीनीकरण और पुनर्विकास, गंदे नालों की सफाई के लिए अवसंरचनात्मक विकास, वृक्षारोपण, बड़े व अवरोधक नालों, ट्रैश ‌स्किमर्स और जैव विविधता संरक्षण के लिए एक के बाद एक 231 परियोजनाओं के शुभारंभ की घोषणा कर दी।

इसके अलावा अन्य योजनाएं निम्नलिखित हैं- 

-गंगा किनारे बसे 400 गांवों को आदर्श गांवों के रूप में विकसित किया जाना है, जिसके तहत 13 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों में से प्रत्येक को पांच गांवों को गोद लेना है।

-आठ जैव विविधता केंद्रों को ऋषिकेश, देहरादून, नरोरा, एलाहाबाद, वाराणसी, भागलपुर, साहिबगंज और बैरकपुर में विकसित किया जाएगा। भारतीय वन्यजीव संस्थानों को गंगा के डॉलफिनों, घड़ियालों और अन्य जीवों के संरक्षण के लिए कहा गया है। केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान मछली उत्पादन और इसके प्रकार में सुधार के लिए कहा गया है।

-नदी किनारे बसे 118 शहरों में से, 59 का सर्वे किया गया है और 27 रिपोर्ट तैयार किए गए हैं, जिनमें अधिकतर नालों के सुधार पर केंद्रित हैं।

-भूक्षरण को रोकने के लिए मौजूदा वित्त वर्ष में नदी किनारे के 2700 हेक्टेयर पर पौधारोपण किया जाएगा।

-57 मानव निर्मित केंद्रों के अलावा पांच स्वचालित जल गुणवत्ता निगरानी केंद्रों ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया है। मंत्री ने आगामी मार्च तक 113 और स्वचालित स्टेशनों की स्‍थापना का वादा किया है।

-प्रधानमंत्री के संसदीय सीट वाराणसी में ऑटोमेटिक रीयल-टाइम सेंसर के जरिये जल गुणवत्ता को विभिन्न घाटों पर प्रदर्शित किया जाएगा।

-गंगा में प्रवाहित होने वाली औद्योगिक कचरा के मामले में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 508 फै‌क्ट्रियों में निगरानी केंद्रों की स्‍थापना की है और 150 फैक्ट्रियों को बंद करने के लिए कहा गया है।

यह सूची तो काफी उत्साहजनक प्रतीत होती है, लेकिन इसके परिणाम आगे देखने होंगे। हालांकि समग्र रूप से देखें तो समस्या कई गुना बड़ी है।