जलवायु

विचार: बिपरजॉय के खतरे झेल रहे भारत और पाकिस्तान को जलवायु तबाही से निपटने के लिए हर हाल में मिलजुल कर काम करना चाहिए

जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं से निपटने के लिए भारत और पाकिस्तान को सीमाओं से परे सोचना चाहिए। आपदाओं के दौरान तालमेल की कमी के कारण, आम लोग इससे होने वाली तबाही के प्रति बेहद नाज़ुक स्थिति में पहुंच जाते हैं।
<p>14 जून 2023 को चक्रवात बिपारजॉय लैंडफॉल से पहले कराची, पाकिस्तान में उच्च ज्वार और तेज़ हवाएँ चल रही थी। (फोटो: एशियानेट-पाकिस्तान / अलामी)</p>

14 जून 2023 को चक्रवात बिपारजॉय लैंडफॉल से पहले कराची, पाकिस्तान में उच्च ज्वार और तेज़ हवाएँ चल रही थी। (फोटो: एशियानेट-पाकिस्तान / अलामी)

भारत में गुजरात और पाकिस्तान में सिंध, दोनों जगहों पर, इस समय, वहां के आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। इसकी वजह है, चक्रवात बिपरजॉय।

तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को, वहां से निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है। अलर्ट जारी है। चक्रवात बिपरजॉय को देखते हुए आश्रयों को चिह्नित किया जा रहा है।

दरअसल, जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील इन दोनों देशों की यह सब ज़रूरत बन गई है। चक्रवात बिपरजॉय की बाद अब यह बात पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट है कि इन साझा खतरों का सामना करने के लिए दक्षिण एशिया के इन दोनों देशों, यानी भारत और पाकिस्तान को, अब और अधिक मिलजुल कर काम करने की ज़रूरत है।

चक्रवात बिपरजॉय (जिसका बंगाली में अर्थ है ‘आपदा’) जून की शुरुआत में अरब सागर में उठा। इसके 15 जून को भारत और पाकिस्तान के तटों पर लैंडफॉल की उम्मीद है।

पिछले 48 घंटों में, दोनों देशों ने, उच्च तीव्रता वाली हवाओं (155 किमी प्रति घंटे तक) की भविष्यवाणी की है। इससे भारी वस्तुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाने का खतरा है।

चक्रवात बिपरजॉय के कारण, दोनों देशों ने मछुआरों और उनकी नावों को, अरब सागर में गहरे समुद्र से बाहर निकलने का आदेश दे दिया है। दोनों देशों ने अपने नागरिकों को खुले समुद्र और समुद्र तट से बचने की सलाह भी दी है।

चक्रवात बिपरजॉय से पहले, हाल के दिनों में, भारत और पाकिस्तान के प्रमुख शहरों, जैसे कि मुंबई और कराची, ने आपदाओं का प्रकोप झेला है। दरअसल, मानसून में अभूतपूर्व बारिश हुई और शहरों में बाढ़ आ गई। ये शहर बिल्कुल लकवाग्रस्त हो गए क्योंकि यहां की सड़कें, नदियों में तब्दील हो गईं।

लेकिन बिपरजॉय चक्रवात से पैदा होने इन सामान्य खतरों के बावजूद, ये पड़ोसी देश, आपस में मौसम संबंधी डेटा साझा करने के मामले में न्यूनतम प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बात जब आपदा राहत और तैयारियों की आती है तो भी ऐसा प्रतीत होता है कि आपस में कोई बातचीत नहीं हो रही है।

चक्रवात बिपरजॉय की भविष्यवाणी और चेतावनी

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने द् थर्ड पोल को बताया कि आईएमडी ने पाकिस्तान में अधिकारियों के साथ चक्रवात बिपरजॉय के मार्ग से संबंधित पूर्वानुमान और एडवाइज़री साझा की है। उन्होंने कहा, “एक औपचारिक व्यवस्था [डेटा साझा करने के लिए] है, और औपचारिक व्यवस्था के अनुसार, आईएमडी, उष्णकटिबंधीय यानी ट्रॉपिकल चक्रवातों के लिए एक रीजनल स्पेशलाइज्ड सेंटर के रूप में कार्य करता है। यह बंगाल की खाड़ी से संबंधित 13 देशों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात से जुड़ी एडवाइज़री देता है, जिनमें से एक पाकिस्तान भी है।

महापात्रा इस बात का उल्लेख करते हैं कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के तटीय देशों के लिए, चक्रवात की चेतावनी के लिहाज़ से, भारत का दर्जा, विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा नामित एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में है। एक रीजनल हब के रूप में, आईएमडी, अपने पूरे क्षेत्र में, चेतावनी सेवाओं का प्रसार करने के लिए एक ऑपरेशनल प्लान का पालन करता है।

लेकिन पाकिस्तान की जलवायु परिवर्तन मंत्री, शेरी रहमान ने द् थर्ड पोल से बातचीत में इस बात की पुष्टि की कि दोनों देशों के बीच कोई सीधा संपर्क नहीं है। टेक्स्ट के जरिए उन्होंने कहा, “हम सीधे संपर्क में नहीं हैं, न ही वे हैं।” 

इन हालात को अगर संक्षेप में बताना हो तो यही कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के अधिकारी जहां समन्वय करना चाहते हैं, वहां समन्वय करते हैं। और यह समन्वय, ऑटोमेटेड ई-मेल्स और एक-दूसरे की वेबसाइटों की निगरानी तक ही सीमित है।

चक्रवातों पर नजर रखने के अलावा, यह दृष्टिकोण अन्य जलवायु-संबंधी आपदाओं पर डेटा साझा करने के मामलों में भी लागू होता है, जैसे कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (जीएलओएफ), हिमस्खलन और कमजोर हिमालयी पहाड़ों में भूस्खलन। 

वैसे मामलों में भी, सूचनाओं को अनिच्छा के साथ साझा किया जाता है। संयुक्त योजना, शुरू ही नहीं हो पा रही है। कोई स्पेशलाइज्ड रियल-टाइम कॉर्डिनेशन भी नहीं है। 

क्या आपदा राहत में सुधार के उद्देश्य से जलवायु आपदाओं को लेकर रियल-टाइम इंगेजमेंट से दोनों देशों को लाभ होगा? इस सवाल के जवाब में शेरी रहमान ने द् थर्ड पोल से कहा,”जाहिर सी बात है।” उनका मानना है कि निश्चित रूप से दोनों देशों को इसका फायदा होगा।

तालमेल की कमी का नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ता है 

एक्सट्रीम मौसम से जुड़ी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली आपदाओं को लेकर ठीक ढंग से तालमेल न हो पाने के कारण, दोनों देशों के कमज़ोर तबकों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

बिपरजॉय चक्रवात का संभवतः एक सबसे स्पष्ट प्रभाव, सर क्रीक में मछुआरों और उनकी नौकाओं पर पड़ने वाला है। यह एक विवादित जल निकाय है जो अरब सागर में बहता है। और यह भारत के गुजरात राज्य को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है।

तेज हवाएं और समुद्र की स्थितियां, अक्सर मछुआरों को खाड़ी में उनके इच्छित रास्तों से परे धकेल देती हैं।

दोनों देशों के समाचार पत्रों में, अक्सर ऐसी खबरें प्रकाशित होती हैं कि समुद्री सीमा पार करने वाले मछुआरों को गिरफ़्तार कर लिया गया। कभी-कभार, ये मछुआरे अनजाने में, खराब मौसम के कारण समुद्री सीमा पार कर जाते हैं।

क्या सिंध और गुजरात में बिपरजॉय के कारण गलती से समुद्री सीमा पार कर जाने वाले मछुआरे जेलों में पहुंच जाएंगे?

दो महीने पहले, भारत और पाकिस्तान के मछुआरा संघों ने, दोनों देशों की जेलों में बंद अपने लगभग 750 सहयोगियों को मुक्त करने की गुहार दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से लगाई थी।

भारत और पाकिस्तान के बीच मछुआरों की रिहाई और स्थानांतरण की सुविधा के लिए एक तंत्र के रूप में, 2008 में कैदियों पर एक संयुक्त न्यायिक समिति बनाई गई थी।

दुर्भाग्य से, दोनों देशों के बीच राजनीतिक माहौल के कारण, वह समिति पिछले एक दशक में काफी हद तक नॉन-फंक्शनल रही है।

इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि जैसे-जैसे यह ग्रह गर्म होगा, अरब सागर में चक्रवात की गतिविधियां अधिक तीव्र हो जाएंगी। इसके अलावा, हिमालय में हिमस्खलन और जीएलओएफ जैसी आपदाएं भी बढ़ेंगी।

यह स्पष्ट है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु आपदाओं के खतरे बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे पहाड़ और नदियां, जिनको भारत और पाकिस्तान आपस में साझा करते हैं, वहां भी ऐसी आपदाओं से तबाही के खतरे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं का प्रकोप, दोनों देशों के तटीय इलाकों में भी स्पष्ट है।

ऐसे में, भारत और पाकिस्तान, जलवायु परिवर्तन के भयानक प्रभावों के कारण होने वाली तबाही से अगर अपने नागरिकों की रक्षा करना चाहते हैं, तो दोनों देशों के पास, आपदा राहत और डेटा-शेयरिंग के मामलों में, अर्थपूर्ण समन्वय के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।

अब चूंकि, उपमहाद्वीप में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो अत्यधिक गर्मी, वर्षा, सूखे और अन्य आपदाओं की चपेट में हैं, ऐसे में सरकारों को अपने आपसी मतभेदों को किनारे रखते हुए जलवायु के खतरों से निपटने के लिए साथ आना चाहिए। सभी को इस हकीकत से रूबरू होना ही चाहिए कि आपदाएं और तबाही, सियासत का इंतजार नहीं करेंगी।


निश्चित रूप से सबसे बड़ी चुनौती सियासत है। यह ज़रूरी तालमेल के रास्ते में आ जाती है। 
मलिक अमीन असलम, जलवायु परिवर्तन पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार 

द् थर्ड पोल से बात करते हुए, जलवायु परिवर्तन पर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार, मलिक अमीन असलम ने कहा कि जलवायु-परिवर्तन से जुड़ी आपदाएं, भविष्य में कभी भी बहुत बड़ी तबाही मचा सकती हैं। ऐसे में, भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी तालमेल बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवाती गतिविधि, तीव्रता और आवृत्ति में काफ़ी इजाफा हो रहा है। और यह पाकिस्तान के सामने आने वाली अन्य आपदाओं के साथ ही हो रहा है। इनमें प्रति दशक, तीन गुना की तीव्रता से बढ़ोतरी हो रही है और ये हकीकत में चिंता का कारण हैं।”

असलम ने यह भी कहा: “कोई औपचारिक [सूचनाएं साझा करने वाली] प्रणाली नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन, मानव निर्मित सीमाओं को नहीं पहचानता है। हमारी सरकार में, हमने सार्क के माध्यम से बाढ़ और चक्रवातों की स्थिति में समन्वय के लिए एक औपचारिक तंत्र बनाने के उद्देश्य से, एक मंच बनाने की कोशिश की। लेकिन, निश्चित रूप से सबसे बड़ी चुनौती सियासत है। यह ज़रूरी तालमेल के रास्ते में आ जाती है।”