जलवायु

जी20 में क्लाइमेट को लेकर क्या करेगा भारत?

भारत का नेट-ज़ीरो लक्ष्य 2070 का है। इसको और पहले खिसकाने के अनौपचारिक दबाव के बावजूद, ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही है कि इस साल के जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत, इस पर कुछ करेगा। लेकिन यह सच है कि भारत में होने वाला ऊर्जा परिवर्तन, वैश्विक स्तर पर बदलावों को गति दे सकता है।
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<p>दुनिया के नेताओं ने, जी20 शिखर बैठक, 2021 के दौरान इटली के शहर रोम में पलाजो पोली के सामने ट्रेवी फाउंटेन में सिक्के फेंके।(फोटो: अलामी)</p>

दुनिया के नेताओं ने, जी20 शिखर बैठक, 2021 के दौरान इटली के शहर रोम में पलाजो पोली के सामने ट्रेवी फाउंटेन में सिक्के फेंके।(फोटो: अलामी)

वैज्ञानिकों की तरफ से सख्त चेतावनियां आ चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा जी 20 देशों से ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए आगे आने की अपील की जा चुकी है। इसके बावजूद, भारत सरकार ने फिलहाल, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए, किसी विशेष कार्रवाई से संबंधित बातचीत, को जी20 के एजेंडे से बाहर रखा है। 

भारत ने दिसंबर 2022 में जी 20 की अध्यक्षता संभाली थी। जी20 दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। इसकी सामूहिक रूप से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भागीदारी 75-80 फीसदी है। जी 20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया से भारत के पास आई है। 

इस मौके पर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारियों की चुनौतियों को, आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही सुलझाया जा सकता है।”

लेकिन विकसित देशों द्वारा भारत पर इस बात के लिए राजनयिक दबाव के बावजूद, कि ग्लोबल वार्मिंग को स्लो करने में मदद के लिए नेट-ज़ीरो लक्ष्य को संशोधित करके 2050 तक लाया जाए, भारत में अधिकारी इसे 2070 की समय सीमा तक रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

जी20 बैठकों में जलवायु

भारत ने अब तक, अपनी जी 20 अध्यक्षता के दौरान मंत्रिस्तरीय बैठकों की एक सीरीज की मेजबानी की है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के कई देशों के प्रतिनिधियों का स्वागत किया है। एक से अधिक प्रतिनिधिमंडल के अधिकारियों के अनुसार, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, क्योंकि सुझाव “अनौपचारिक” थे, उन्होंने सुझाव दिया कि भारत अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्य के वर्ष को 2050 तक लाने की स्थिति में है। और इस आशय की घोषणा, सितंबर के लिए निर्धारित जी 20 शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री की तरफ से होती है तो यह  “एक बड़ी बात” होगी। भारतीय अधिकारियों ने इस संबंध में “विकसित देशों की तरफ से दबाव” की बात की है।

हालांकि, औपचारिक बातचीत में इसमें से कुछ भी सामने नहीं आया। भारत के जी20 शेरपा, अमिताभ कांत ने इस विचार को खारिज कर दिया और द् थर्ड पोल को बताया कि उन्होंने “ऐसा कोई दबाव नहीं देखा, न सुना या अनुभव किया।” 

हालांकि, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के प्रमुख संजय वशिष्ठ ने पुष्टि की कि भारत पर नेट-ज़ीरो लक्ष्य के साल को पहले लाने के लिए नए सिरे से दबाव डाला गया है। उन्होंने द् थर्ड पोल से कहा: “2021 के ग्लासगो कॉप से पहले भारत पर नेट-ज़ीरो की घोषणा का दबाव था। जब 2070 के लक्ष्य की घोषणा हो गई, तो कुछ समय के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव को कम कर दिया गया, लेकिन उम्मीदें थीं कि भारत को अपने नेट-जीरो लक्ष्य के वर्ष को और पहले लाना चाहिए।”

वशिष्ठ के अनुसार, यह दबाव विकसित और विकासशील देशों के बीच भेदभाव को समाप्त करने के प्रयास का हिस्सा है। 

हालांकि भारत जलवायु वार्ता के दौरान इस अंतर को बनाए रखने में कामयाब रहा है। भारत ने “सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं” के तर्क का उपयोग करते हुए कहा कि “इस लाइन को एक बार फिर मिटाने के लिए नए सिरे से दबाव डाला गया है।” दरअसल, “सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं” वाली लाइन को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन का एक पिलर माना जाता है। 

द् थर्ड पोल से बात करने वाले नौकरशाहों ने कहा कि भारत की तरफ से, जी20 फोरम में जलवायु संबंधी कोई विशेष प्रतिबद्धता व्यक्त करने की संभावना नहीं है।


आर.आर, रश्मी, जिन्होंने कई वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के लिए भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और अब एक थिंक टैंक, द् एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) के साथ हैं, ने द् थर्ड पोल को बताया: “मेरे विचार में, नेट-ज़ीरो का सवाल ऐसा नहीं है जिस पर जी 20 के दौरान बात हो… दरअसल, जी20 के भीतर, प्रस्ताव पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारत को अपनी नेट-ज़ीरो लक्ष्य की डेटलाइन पर फिर से विचार करने के लिए प्रेरित करे। 

इस बात की ज्यादा संभावना है कि इस मुद्दे पर यूएनएफसीसीसी [यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज] के भीतर चर्चा की जाएगी और निर्णय लिया जाएगा, जहां अल्पावधि (2030) और दीर्घावधि (2050) दोनों में, राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखा जाना है।

यूएनएफसीसीसी का वार्षिक शिखर सम्मेलन यानी कॉप में इस बात पर विचार किया जाएगा कि 2015 के पेरिस समझौते के तहत किए गए जलवायु वादों की तुलना में देशों ने किस तरह से जरूरी प्रयास किए हैं, और किस हद तक इसे बेहतर किया जा सकता है। 

अगला, शिखर सम्मेलन यानी कॉप 28 इस साल के आखिर में यूएई में होने वाला है। 

इस प्रक्रिया को वैश्विक स्टॉकटेक (जीएसटी) कहा जाता है, और भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र को प्रस्तुत करने की योजना की रिपोर्ट तैयार करना शुरू कर दिया है।

भारत सरकार के सर्कल यानी हलकों में इस समय माना जा रहा है कि सितंबर के जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) की अवधारणा पर जोर दे सकते हैं। इस बात को वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आगे बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, भारत ने घरेलू स्तर पर और विदेश में अक्षय ऊर्जा पर काफी काम किया है। इस काम को इंटरनेशनल सोलर एलायंस यानी अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से और कोलिएशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन के माध्यम से अंजाम दिया जा रहा है।

अब क्लाइमेट एक्शन की ज़रूरत है

भारत में, विशेष रूप से, सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशंस यानी नागरिक समाज संगठनों के बीच, नेट-ज़ीरो लक्ष्य की तारीख पर कम ही ध्यान दिया जाता है। बजाय इसके, ज्यादा ध्यान इस बात पर होता है कि एक हरित अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बदलाव, कैसे नौकरियों, स्वास्थ्य और निरंतर आर्थिक सुरक्षा में बेहतर परिणाम ला सकता है। विशेषज्ञों और विभिन्न एनजीओ का कहना है कि यह भारत के हित में है कि देश- स्थानीय, प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर- तेजी से आगे बढ़े।

वशिष्ठ का मानना है कि सबसे बड़ी एकमात्र चीज, जिसको लेकर सरकार को अपने प्रयासों में तेजी लाएगी, वह है जमीनी नतीजे।

द् थर्ड पोल को वह बताते हैं, “भारत सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी और 125 गीगावाट से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा हासिल कर ली है। इस उपलब्धि ने भारत सरकार को 2030 तक 500 गीगावाट की घोषणा करने का विश्वास दिलाया।” 

वशिष्ठ स्पष्ट करते हैं कि शॉर्ट-टर्म ट्रांजिशंस यानी कम समय के भीतर हुए इन बदलावों की कामयाबी, भारत के बदलावों को गति दे सकती है। यह बात विशेष रूप से इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि विकसित देश, वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करने में विफल रहे हैं, जो दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं को हासिल करने की दिशा में अनिश्चितता को बढ़ाता है। 

उन्होंने यह भी कहा कि ग्रीन ट्रांजिशन यानी हरित बदलाव से राजनीतिक फायदे भी मिलते हैं क्योंकि यह रोजगार सृजन, स्वच्छ वातावरण और व्यापार विकल्पों के नए अवसर लाता है। इसके अलावा, लीडरशिप, भारतीय समाज की भलाई के लिए बदलावों को सुविधाजनक बनाने का जरूरी श्रेय ले सकती है। 

नीतिगत निश्चितता, निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को अपने 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगभग 400-500 अरब डॉलर की पूंजी की आवश्यकता है।
विभूति गर्ग,आईईईएफए में साउथ एशिया डायरेक्टर

एक थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) में साउथ एशिया डायरेक्टर, विभूति गर्ग के अनुसार, अगर भारत को ऊर्जा बदलावों के फायदों का पूरी तरह से लाभ उठाना है, तो भारत को मौजूदा गति और को तेज करना होगा।

एक थिंक टैंक, एम्बर, की एक हालिया रिपोर्ट जारी होने के मौके पर उन्होंने कहा: “भारत ने कुल स्थापित क्षमता में, नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ अपनी बिजली परिवर्तन यात्रा में उल्लेखनीय प्रगति की है। हालांकि, कुल उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को भी तेज गति से बढ़ाने की जरूरत है… निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत निश्चितता महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को अपने 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगभग 400-500 अरब डॉलर की आवश्यकता है।”

यूके में ग्रेशम कॉलेज में अवकाश प्राप्त प्रोफेसर और निवेश व वित्तीय सेवाओं पर बारबाडोस के प्रधानमंत्री के विशेष दूत, अविनाश प्रसॉद जैसे विशेषज्ञों के अनुसार, 

दुर्भाग्य से, तंग सोच के चलते, ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच विभाजन को कम करने के लिए, जी20 की अध्यक्षता में भारत की बहुत नाममात्र मदद होगी। 

मार्च के आखिर में द् थर्ड पोल द्वारा आयोजित एक क्लोज्ड-डोर वेबिनार में, प्रसॉद ने कहा कि उनको लगता है कि ग्लोबल साउथ का चैंपियन बनने के लिए भारत को कुछ काम करने की जरूरत है। ग्लोबल साउथ में दुनिया की 40 फीसदी या 3.3 अरब की आबादी भयानक गर्मी झेल रही है और डूब जाने की स्थितियां भी हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति ये लोग सबसे नाजुक हैं। मुझे लगता है अगर भारत खुद को चैंपियन के रूप में देखना चाहता है तो उसे इसके इर्द-गिर्द कुछ अलग तरह प्रयास करने होंगे। 

उन्होंने कहा, “अमीर देश अमीर हैं क्योंकि उन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के भंडार को वायुमंडल में बढ़ा दिया है। इस वजह से जो नतीजे दुनिया के सामने हैं, उसके लिए अमीर देशों को भुगतान करना चाहिए। लेकिन क्या वे भुगतान करेंगे? अगर वे ऐसा नहीं करते तो हम क्या करें? हमें अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने, अपने देशों को अधिक रेजिलिएंट बनाने और लॉस एंड डैमेज के लिए कुछ बाहरी धन प्राप्त करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की आवश्यकता है।

पैसे का सवाल

ऊर्जा परिवर्तन के लिए भारत को खुद, कहीं अधिक धन की आवश्यकता है। एक, थिंक टैंक, द् इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई फॉरेस्ट) ने हाल की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अगले 30 वर्षों में भारत में उचित ऊर्जा परिवर्तन के लिए कम से कम 73,631 अरब रुपयों की आवश्यकता होगी। यह आंकड़े केवल कोयला खदानों और ताप विद्युत संयंत्रों के लिहाज से हैं।

रिपोर्ट जारी होने के मौके पर आई फॉरेस्ट के अध्यक्ष और सीईओ चंद्र भूषण ने कहा कि उचित बदलाव के लिए हमारी रणनीति, देश के नेट-ज़ीरो लक्ष्य और ऊर्जा स्वतंत्रता लक्ष्यों के हिसाब से गाइड होनी चाहिए। हमारे प्रयासों में हरित ऊर्जा व उद्योगों के निर्माण और एक कुशल कार्यबल विकास होना चाहिए।”

ऐसा करने के लिए, भारत को, विकसित से विकासशील देशों की ओर अधिक क्लाइमेट फाइनेंस फ्लो यानी जलवायु वित्त के प्रवाह के लिए बातचीत करनी होगी। अगर यह अनुदान के रूप में न हो पाए तो ब्याज की अधिक आकर्षक दरों के साथ ऐसा होना चाहिए। भारत और ग्लोबल साउथ के कई विशेषज्ञों के हिसाब से, यह यानी अधिक क्लाइमेट फाइनेंस फ्लो इसका सबसे महत्वपूर्ण क्लाइमेट लीडरशिप गोल यानी जलवायु नेतृत्व लक्ष्य होना चाहिए।