icon/64x64/climate जलवायु

आपदाओं से जूझ रहे हिमालय में तापमान बढ़ने से बिगड़ेंगे हालात, आईपीसीसी की चेतावनी

विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में जोखिम और बढ़ सकता है। आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट के बाद संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने जी 20 देशों से जलवायु परिवर्तन की दिशा में और अधिक प्रयास करने का आह्वान किया है।
<p>जुलाई 2020 में सिराजगंज, बांग्लादेश में आई बाढ़। हिमालय में ग्लेशियरों और स्नोपैक के पिघलने से तिब्बत, नेपाल, भूटान और भारत से बांग्लादेश में बहने वाली नदियों में बाढ़ आ गई। (फोटो: मॉनिरुज्ज़मन सज़ल / क्लाइमेट विज़ुअल्स काउंटडाउन)</p>

जुलाई 2020 में सिराजगंज, बांग्लादेश में आई बाढ़। हिमालय में ग्लेशियरों और स्नोपैक के पिघलने से तिब्बत, नेपाल, भूटान और भारत से बांग्लादेश में बहने वाली नदियों में बाढ़ आ गई। (फोटो: मॉनिरुज्ज़मन सज़ल / क्लाइमेट विज़ुअल्स काउंटडाउन)

दुनिया के बड़े जलवायु वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का आख़िरी भाग, आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट, जारी कर दिया है। इसमें क्लाइमेट क्राइसिस यानी जलवायु संकट को लेकर “फाइनल वार्निंग” है। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों ने इस बात को लेकर चिंता जताई है कि अगर पहाड़ और हिमनद यानी ग्लेशियर और ज़्यादा गर्म होते हैं तो तकरीबन 2 अरब लोगों की जिंदगी पर इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। 

पिछले आठ वर्षों के दौरान, साइंटिफिक बॉडी के कामकाज को इकट्ठा करने वाली आईपीसीसी एआर 6 सिंथेसिस रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी स्थितियों के बावजूद, इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की आशंका बनी हुई है। इससे खाद्य सुरक्षा को लेकर खतरा बढ़ेगा। लोगों को खतरनाक मौसम का सामना करना पड़ेगा। आपस में संघर्ष बढ़ेगा। तापमान के मौजूदा स्तर पर, पर्वतीय समुदाय पहले से ही भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़ और झरनों के सूखने जैसी स्थितियों का सामना कर रहे हैं।

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट में कहा गया है कि क्रायोस्फीयर में बदलाव के कारण, हिंदू कुश हिमालय सहित अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों में “गंभीर परिणाम” होंगे।

इस रिपोर्ट के जारी होने के समय, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जी 20 देशों से 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने का आग्रह किया। दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश भारत, इस समय जी 20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है। भारत ने 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लिया है।

थर्ड पोल के लिए आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट की कुछ अहम चेतावनियां

• दुनिया भर में तापमान बढ़ने की वजह से अनुमान है कि ग्लोबल वाटर साइकिल की स्थिति और गंभीर हो जाएगी। दुनिया भर में मानसून अस्थिर रहेगा। भारी बारिश और सूखा दोनों का खतरा रहेगा। 

क्रायोस्फीयर (जमे हुए पहाड़) में लगभग सभी तत्वों की मात्रा और परिमाण के कम होने का अनुमान है।

हीटवेव और सूखे की स्थितियों के काफी बढ़ जाने की आशंका है। 

ट्रॉपिकल साइक्लोन और थंडरस्टॉर्म बढ़ सकते हैं।  

• भयानक गर्मी और सूखे जैसे हालात पैदा होंगे। 

हिमालय के लिये 1.5C बहुत गर्म है

2019 में, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की एक ऐतिहासिक रिपोर्ट में पाया गया कि हिंदू कुश हिमालय, वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है। और इस क्षेत्र में इसके गंभीर परिणाम हैं।

आईसीआईएमओडी ने अपने आकलन में कहा कि 1.5 डिग्री सेल्सियस हिंदू कुश हिमालय के लिए “बहुत गर्म” है। आईसीआईएमओडी के पूर्व महानिदेशक डेविड मोल्डन ने चेतावनी दी कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप पहाड़ों में 2 डिग्री तापमान में वृद्धि होगी। यह हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र में आधे ग्लेशियरों को प्रभावित करेगा। एशिया की नदियों को अस्थिर करेगा। और अरबों लोगों के जीवन और आजीविका को खतरे में डालेगा।

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट कहती है कि ग्लेशियरों के पीछे हटने और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की वजह से इकोसिस्टम पर प्रभाव “अपरिवर्तनीयता के करीब” पहुंच रहे हैं, मतलब अब इनको दुरुस्त ही नहीं किया जा सकता। इन्हें “कम लोचशील वाले पारिस्थितिक तंत्र” यानी “इकोसिस्टम्स विद लो रिजिलियन्स” के रूप में वर्णित किया गया है।

Glaciologists monitoring the changes in the Gepang Gath Glacier
ग्लेशियोलॉजिस्ट्स हिमाचल प्रदेश में गेपांग गाथ ग्लेशियर में बदलाव को मॉनिटर कर रहे हैं। (फोटो: राकेश राव / क्लाइमेट विज़ुअल्स काउंटडाउन)

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट के 93 लेखकों में से एक और कंसोर्टियम ऑफ इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर्स की डायरेक्टर अदिति मुखर्जी ने द् थर्ड पोल को बताया: “रिपोर्ट इस आवश्यकता पर ज़ोर देती है कि लॉस एंड डैमेज की मात्रा का बेहतर निर्धारण किया जाए। अब तक हमारे पास ऐसा करने के बेहतर उपाय नहीं हैं। वहीं, नीति निर्माताओं को भी इसकी ज़रूरत है। लेकिन नीति निर्माता एक बात स्पष्ट करते हैं कि रैपिड एंड डीप इमिशन यानी तीव्र और गहरे उत्सर्जन में कटौती की आवश्यकता पर बहुत ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया जा सकता। इसके बिना, इसके प्रभाव लगातार बढ़ते रहेंगे।”

मुखर्जी ने कहा: “हिमालय में हो रहे विकास असलियत में सही दिशा में नहीं हैं। इसलिए हम जोशीमठ जैसा धंसाव देख रहे हैं। हम झरनों को सूखते हुए देख रहे हैं। हमें विकास बनाम पर्यावरण की पुरानी बातों से आगे बढ़ना चाहिए।”

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया करते हुए, आईसीआईएमओडी में लाइवलीहुड एंड माइग्रेशन यानी आजीविका और प्रवासन की वरिष्ठ विशेषज्ञ, अमीना महाराजन ने द् थर्ड पोल को बताया: “बाढ़ और भूस्खलन जैसे जलवायु-प्रेरित खतरों में अनुमानित परिवर्तन से गंभीर परिणाम होंगे। लोगों, इंफ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरण को इनका जोखिम झेलना होगा।”

महाराजन ने हिमालय में मौजूदा ऐडप्टेशन रेस्पॉन्सेस यानी अनुकूलन को लेकर किए जाने वाली कोशिशों को “काफी हद तक वृद्धिशील” के रूप में वर्णित किया है। और यह भी कहा कि इसमें अर्ली वार्निंग सिस्टम्स यानी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और आजीविका में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

उन्होंने हालांकि यह भी कहा है कि इसकी मौजूदा रफ्तार, इसको लेकर गुंजाइश और अनुकूलन के लिए किए जाने वाली प्रयासों की गहराई, भविष्य के जोखिमों को दूर करने के लिहाज से अपर्याप्त होंगे।”

A farmer holidng misformed and spoiled corn bobs
ओडिशा में फसल बर्बाद हो गई है। इस फोटो में एक किसान ऐसे भुट्टों को दिखा रहा है जिसमें दाने बेहद कम बचे हैं। (फोटो: अनिकेत गवाड़े / क्लाइमेट विज़ुअल्स काउंटडाउन)

आईसीआईएमओडी में आजीविका के मूल्यांकन विश्लेषक अवश पांडे ने कहा, “यहां की बहुत बड़ी आबादी पर्वतीय संसाधनों पर निर्भर है, इस संदर्भ में इस क्षेत्र को महत्व देते हुए यह न केवल जलवायु परिवर्तन के कारण, इस क्षेत्र के सामने आने वाले मुद्दों को शामिल करने की मांग करता है बल्कि संपूर्ण आईपीसीसी प्रक्रियाओं में इस क्षेत्र से प्रतिनिधित्व की भी मांग करता है।”

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट के बाद जी 20 के लिए कड़ा संदेश

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट के जारी होने के मौके पर एक वीडियो संदेश में, एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि उन्होंने “जी 20 के लिए एक क्लाइमेट सॉलिडैरिटी पैक्ट का प्रस्ताव दिया था।” उन्होंने आह्वान किया कि देशों को अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के हिसाब से, एक लक्ष्य को प्राप्त करने के सिद्धांत पर आगे बढ़ते हुए अपने नेट-ज़ीरो ट्रांज़िशन को तेज़ करना चाहिए।” 

उन्होंने कहा कि विकसित देशों को 2040 के करीब नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिए विशेष रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए।


नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करने को लेकर एंटोनियो गुटेरेस ने क्या कहा 
  • ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के देशों में 2030 तक और अन्य सभी देशों में 2040 तक कोयले को चरणबद्ध तरीके से बाहर करना है और कोयले पर निर्भर नये प्रोजेक्ट शुरू नहीं करना है
  • कोयले के सभी अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक और निजी फंडिंग को ख़त्म करना है
  • तेल और गैस की सभी नई लाइसेंसिंग या फंडिंग को बंद करना है
  • मौजूदा तेल और गैस भंडार के विस्तार को रोकना है
  • सब्सिडी को जीवाश्म ईंधन से एक उचित एनर्जी ट्रांजिशन में स्थानांतरित करना है
  • 2050 ग्लोबल नेट-जीरो टार्गेट के हिसाब से मौजूदा तेल और गैस उत्पादन को वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे कम करना है

गुटेरेस ने कहा, “मैं जी 20 के सभी लीडर्स पर इस बात के लिए यकीन करता हूं कि वे कॉप 28 [यह वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन इस साल के आखिर में संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित होगा] की समाप्ति तक, सभी ग्रीन हाउस गैसों को शामिल करते हुए एंबिशियस न्यू इकोनॉमी-वाइड नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रीब्यूशंस यानी महत्वाकांक्षी नई अर्थव्यवस्था-व्यापी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के लिए प्रतिबद्ध हैं। और यह 2035 और 2040 के लिए उनके पूर्ण उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को दर्शाता है।”

जी 20 के मौजूदा अध्यक्ष भारत के लिए यह मुश्किल लक्ष्य है। हालांकि सरकार सौर और पवन उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रही है। लेकिन यह सबसे खराब जीवाश्म ईंधन यानी कोयले के उपयोग का विस्तार करने की भी योजना बना रही है।

वार्मिंग को 1.5C तक सीमित करना अभी भी संभव है

आईपीसीसी एआर 6 सिंथेसिस रिपोर्ट कहती है कि यदि पूर्व-औद्योगिक समय से औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखना है तो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2025 तक ही चरम पर होना चाहिए। इसके बाद इसको नीचे लाना ही होगा। लेकिन मिटिगैशन एंड एडॉप्टेशन एक्शन यानी अल्पीकरण (शमन) और अनुकूलन प्रयासों में देरी से कई तरह के खतरे बढ़ जाएंगे। 

A woman bails water from the doorway of a flooded building
जून 2022 में बांग्लादेश के सिलहट जिले में आई बाढ़ (फोटो: सुवरा कांति दास / अलामी)

यह, इस साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले और उसके दौरान गरमा गरम बहस का मुद्दा हो सकता है। साल 2023 इस बातचीत लिहाज से अहम है कि राष्ट्रों ने पेरिस समझौते में किए गए वादों को कैसे लागू किया है।

द् एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के दीपक दासगुप्ता और सिंथेसिस रिपोर्ट एक अन्य लेखक ने रिपोर्ट जारी होने के बाद पत्रकारों के एक समूह को बताया, “तापमान में हर मामूली वृद्धि को सीमित करने की कोशिश करना ज़रूरी है।” 

उन्होंने यह भी कहा कि उत्सर्जन में कटौती के लिए “कई अवसर” हैं: “रिपोर्ट हमें बताती है कि ट्रांजिशन को कैसे तेज किया जाए। उदाहरण के लिए अर्बन हीट, वाटर मैनेजमेंट और एनर्जी ट्रांजिशन जैसे मुद्दों पर किस तरह से काम किया जाना चाहिए।”

आईपीसीसी सिंथेसिस रिपोर्ट कहती है कि 3 अरब से अधिक आबादी, जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।

मुखर्जी ने रिपोर्ट जारी होने के मौके पर बताया कि 2010 और 2020 के बीच, अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में बाढ़, सूखे और तूफान से मानव मृत्यु दर, बहुत कम संवेदनशील क्षेत्रों की तुलना में 15 गुना अधिक थी। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और मौसम संबंधी आपदाओं के कारण विस्थापन तेजी से बढ़ रहा है। उनका यह भी कहना है “क्लाइमेट जस्टिस, बहुत अहम है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन यानी जलवायु की हालत को बदतर करने में जिन लोगों का योगदान बेहद कम है, वे भी इससे काफी ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।”

अपने कमेंट लिख सकते हैं

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.