जलवायु

2022 में क्लाइमेट से जुड़े 10 सबसे ज़रूरी पॉइंट्स

आईपीसीसी के विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन पर इस साल की कई महत्वपूर्ण रिपोर्टों को 10 निष्कर्षों में समाहित किया है।
हिन्दी
<p>जंगल की आग से बच गई एक लोमड़ी। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की नई रिपोर्ट का कहना है कि उच्च तापमान और सूखे के संयोजन के कारण जंगल की आग की घटनाएं बढ़ रही हैं। (फोटो: जेम्स थेव / अलामी)</p>

जंगल की आग से बच गई एक लोमड़ी। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की नई रिपोर्ट का कहना है कि उच्च तापमान और सूखे के संयोजन के कारण जंगल की आग की घटनाएं बढ़ रही हैं। (फोटो: जेम्स थेव / अलामी)

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल आईपीसीसी के विशेषज्ञों ने इस साल जलवायु विज्ञान से कुछ मुख्य बिंदुओं को निकाला है। इन पॉइंट्स को इस उम्मीद के साथ पेश किया है कि COP27 में सरकारी प्रतिनिधि इन पर गंभीरता से चर्चा करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी सिमॉन स्टील ने इजिप्ट के शर्म अल-शेख में COP27 के दौरान इस रिपोर्ट को जारी किए जाने के मौके पर कहा, “इस रिपोर्ट की इनसाइट्स खतरनाक हैं और हमें बताती हैं कि कहां तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत है।”

एक प्रमुख आईपीसीसी लेखक जॉन रॉकस्ट्रॉम ने जलवायु वार्ता में प्रगति ना होने पर कहा, “यह रिपोर्ट वैज्ञानिक हताशा की एक प्रतिक्रिया है।”

स्टील कहते हैं कि 10 इनसाइट्स में से पहला यह है कि “सिर्फ़ एडेप्टेशन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला नहीं कर सकता।” 

जल विशेषज्ञ और आईपीसीसी लेखिका अदिति मुखर्जी ने बताया: “ग्लोबल वार्मिंग के उच्च स्तर पर अनुकूलन उपाय बहुत प्रभावी नहीं रहेगा।”

“अंतहीन अनुकूलन के मिथक पर उठने वाले सवालों” पर रिपोर्ट कहती है:

  • दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर पहले से ही अनुकूलन की सीमाओं का उल्लंघन हो रहा है। जैसे-जैसे हम पूर्व-औद्योगिक काल के तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंचने लगेंगे, जलवायु परिवर्तन का सामना करना और इससे जुड़ी चुनौतियों के साथ अनुकूलन स्थापित करना कठिन होता जाएगा।
  • अतीत, वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिम को पर्याप्त रूप से कम करने के लिहाज से मौजूदा अनुकूलन प्रयास कमजोर हैं। इन प्रयासों से, उन लोगों को फायदा नहीं हो रहा है जो जलवायु प्रभावों के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं, विशेष रूप से वे लोग जो जलवायु प्रभावों के संपर्क में आ चुके हैं।
  • अनुकूलन, महत्वाकांक्षी मिटिगेशन प्रयासों को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। यहां तक कि प्रभावी अनुकूलन भी सभी लॉसेस एंड डैमेजेस यानी नुकसानों और क्षतियों से नहीं बचा पाएगा। और अनुकूलन की नई सीमाएं, संघर्षों, महामारी और पहले से मौजूद विकास चुनौतियों के रूप में उभर सकती हैं।
  • अनुकूलन सीमाओं के व्यापक उल्लंघन से बचने के लिए गहन और त्वरित मिटिगेशन महत्वपूर्ण है।

दूसरी इनसाइट “जोखिम वाले क्षेत्रों में वल्नरबिलिटी हॉटस्पॉट्स क्लस्टर” को लेकर है।

विशेषज्ञों का कहना है:

  • लगभग 1.6 अरब लोग ऐसे स्थानों में रहते हैं जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जोखिम बहुत ज्यादा है। मतलब ये वल्नरबिलिटी हॉटस्पॉट्स की श्रेणी में हैं। इस संख्या के 2050 तक दोगुना होने का अनुमान है। सबसे कम वल्नरबिलिटी वाले देशों की तुलना में हॉटस्पॉट वाले देशों में जलवायु की वजह से होने वाले खतरों के चलते मृत्यु दर 15 गुना अधिक है।
  • वल्नरबिलिटी – जलवायु की वजह से होने वाले खतरों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की स्थिति – मानव-पर्यावरण प्रणालियों में संरचनात्मक असमानता का एक उत्पाद है। प्रमुख “जोखिम वाले क्षेत्रों” हैं: मध्य अमेरिका, एशिया और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में, और अफ्रीका में पूरे साहेल, मध्य और पूर्वी अफ्रीका में।
  • इन क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय जोखिम में हैं। ये तेजी से जलवायु परिवर्तन और जलवायु की वजह से होने वाले खतरों के संपर्क में आते जा रहे हैं। यहां असमानता और गरीबी बहुत ज्यादा है। साथ ही ये देश काफी कमजोर हैं। इन वजहों से ऐसी परिस्थितियों के प्रति संघर्ष कर पाने की इनकी क्षमता (शारीरिक, पारिस्थितिक एवं सामाजिक आर्थिक) कम हो जाती है।  

जलवायु की अन्य चिंताओं के बीच स्वास्थ्य और सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता

एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन प्रभाव, जिस पर विशेषज्ञों का ध्यान गया है, लेकिन जो अभी भी शर्म अल-शेख के वार्ता कक्षों से बहुत दूर है, वह स्वास्थ्य है। रॉकस्ट्रॉम ने कहा कि कोविड -19 महामारी के अनुभव को देखते हुए, “हमें स्वास्थ्य प्रभावों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता है”।

आईपीसीसी लेखक क्रिस्टी ईबी ने इस रिपोर्ट को जारी किए जाने के मौके पर इस तर्क को और अधिक मजबूती से रखा। उन्होंने कहा, “लोग अब मर रहे हैं, लेकिन यूएनएफसीसीसी फंड के एक फीसदी का आधा हिस्सा स्वास्थ्य के लिए जाता है। स्वास्थ्य प्रणालियां झटकों के लिए तैयार नहीं हैं।”

रिपोर्ट की तीसरी इनसाइट “जलवायु-स्वास्थ्य संबंधों के क्षितिज पर नए खतरे” से संबंधित है:

  • जलवायु परिवर्तन के कारण जटिल और व्यापक जोखिम, मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रहे हैं।
  • लगभग 40 फीसदी गर्मी से संबंधित मौतों के लिए जलवायु परिवर्तन पहले से ही जिम्मेदार है और हर बसे हुए महाद्वीप को मिलाकर गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है।
  • उच्च तापमान और सूखे के संयोजन के कारण जंगल की आग की आवृत्ति में वृद्धि हो रही है, जिससे अल्पकालिक और दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ने की आशंका है।

एक बड़ा सवाल यह भी है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मजबूरी में होने वाला मानव प्रवास कितना है। रॉकस्ट्रॉम के अनुसार, विशेषज्ञों ने गणना की है कि 88.9 फीसदी विस्थापन, अब मौसम से संबंधित है। इससे जलवायु शरणार्थियों पर बहस तेज होगी।

चौथी इनसाइट के प्रमुख संदेश हैं:

  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित धीमी शुरुआत वाले प्रभावों और चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण अनैच्छिक प्रवास और विस्थापन तेजी से होगा।
  • जलवायु परिवर्तन और संबंधित प्रभावों के परिणामस्वरूप बहुत से लोग, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय, अपने निवास स्थान से दूर जाकर अनुकूलन स्थापित करने की अपनी क्षमता खो सकते हैं। हालांकि, बढ़ते जलवायु जोखिमों का सामना करने के बावजूद, अन्य लोग अपने स्थान पर रहना पसंद करेंगे।
  • दुनिया भर में, जलवायु से संबंधित गतिशीलता में सहायता करने और विस्थापन को कम करने के लिए पूर्वानुमानित मानवीय कार्रवाइयों की संख्या- प्रारंभिक सफलता की कहानियों के साथ- बढ़ रही है। 

इससे जुड़ी हुई इनसाइट्स ये भी हैं कि मानव सुरक्षा के लिए जलवायु सुरक्षा आवश्यक है। रॉकस्ट्रॉम ने कहा: “जलवायु परिवर्तन असुरक्षा का एक विस्तारक है।”

रिपोर्ट कहती है:

  • मानव सुरक्षा जलवायु कार्रवाई पर निर्भर है।
  • जलवायु परिवर्तन टकराव का कारण नहीं बनता; बल्कि, यह मानव सुरक्षा (शासन और सामाजिक आर्थिक स्थितियों के कारण) में मौजूदा वल्नरबिलिटी को बढ़ा देता है, जिससे हिंसक संघर्ष को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • वल्नरबिलिटी और अस्थिरता बढ़ने से, जलवायु परिवर्तन के मानव सुरक्षा प्रभाव, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन जाते हैं।
  • मानव सुरक्षा और विस्तार से देंखे तो राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए प्रभावी और समय पर न्यूनीकरण (मिटिगेशन) और अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है। बढ़ते हिंसक संघर्ष के जोखिमों को कम करने और शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मानव सुरक्षा प्रदान करने के लिए ठोस प्रयासों के समानांतर इन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने खाद्य आपूर्ति व स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा तक स्थिर पहुंच के संदर्भ में महत्वपूर्ण समस्याओं का खुलासा किया है, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता से उत्पन्न होती हैं। ये कमजोरियां मानव सुरक्षा को नष्ट कर देती हैं।

वातावरण को गर्म करने वाली 25% ग्रीन हाउस गैसों को प्रकृति द्वारा अवशोषित करने के साथ, जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्थायी भूमि उपयोग आवश्यक है। रिपोर्ट कहती है:

  • जब भूमि रूपांतरण में वृद्धि को सीमित करने के लिए उचित नीतियां हैं तो कृषि सघनता, जो दीर्घकालिक टिकाऊ है, प्राकृतिक क्षेत्रों में आगे के विस्तार के लिए बेहतर है।
  • प्रतिकूल पारिस्थितिक प्रभावों को कम करते हुए बढ़ी हुई पैदावार और प्रणाली एकीकरण के माध्यम से खाद्य उत्पादन बढ़ाने के प्रयास इसी तरह खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।
  • भूमि उपयोग के साथ समान रूप से अनेक सेवाएं जुड़ी हुई हैं जैसे जलवायु समाधान, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता। इन सबकी स्थिति, जलवायु के आगे की राह पर निर्भर है। अगर तापमान अधिक बढ़ेगा तो भूमि प्रणालियों की क्षमता से जुड़े लाभ के प्राप्त होने की संभावना वर्तमान अनुमानों से कम होगी।  
  • एकीकृत भूमि प्रबंधन, लोगों और पर्यावरण को लाभान्वित करते हुए जलवायु समाधान प्रदान कर सकता है; हालांकि, भूमि-उपयोग परिवर्तन आपसी फायदे की तुलना में अधिक बार लेन-देन को आवश्यक बना देता है। हितधारकों द्वारा पहचाने गए लेन-देन को संतुलित करने के लिए काम करने वाले दृष्टिकोण, सामाजिक रूप से स्वीकार्य जलवायु और संरक्षण परिणाम प्रदान करने की अधिक संभावना रखते हैं।

मौजूदा और हाल में हुए अन्य संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलनों में सबसे ज़रूरी चर्चा रही है विकसित देशों से विकासशील देशों को मिलने वाला वित्त। विकसित देशों ने बार-बार कहा है कि जलवायु कार्रवाई के लिए निजी वित्त ही एकमात्र प्रमुख विकल्प है। लेकिन आईपीसीसी विशेषज्ञ अब अपनी सातवीं इनसाइट में निष्कर्ष निकाल चुके हैं कि “प्राइवेट सस्टेनेबल फाइनेंस कार्यप्रणालियां, गहरे परिवर्तन को उत्प्रेरित करने में विफल हो रही हैं।”

रॉकस्ट्रॉम ने कहा कि एकमात्र तरीका “कार्बन [उत्सर्जन] के सही मूल्य का उपयोग करना” था। “हम ग्रह के साथ नेगोशिएट नहीं कर सकते; इसकी भौतिक सीमाएं हैं।” और उन्होंने “सामाजिक लागत” प्रति टन उत्सर्जन पर 16,300 रुपये रखा। वर्तमान में, उच्चतम कीमत यूरोपीय संघ के कार्बन बाजार में 6184 रुपये प्रति टन है।

रिपोर्ट कहती है:

  • विशेष रूप से भारी जलवायु प्रभावों वाले आर्थिक क्षेत्रों में नेट जीरो प्रदान करने के लिए वित्तीय बाजार महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, निजी क्षेत्र की “सस्टेनेबल फाइनेंस” कार्यप्रणालियां अभी तक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक गहन और तीव्र परिवर्तनों को उत्प्रेरित नहीं कर रही हैं।
  • आज की टिकाऊ वित्त कार्यप्रणालियों के बहुत बड़े हिस्से को वित्तीय क्षेत्र की मौजूदा व्यापार मॉडल में फिट करने के लिहाज से डिजाइन किया गया है, न कि उन तरीकों से पूंजी आवंटित करने के लिए, जो जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने पर सबसे अधिक प्रभाव प्रदान करें। परिणाम यह है कि आज तक टिकाऊ वित्त कार्यप्रणालियों का एक बड़ा हिस्सा पूंजी को स्थानांतरित करने के लिए मजबूत प्रभाव नहीं डालता है; वे निरंतरता के केवल सामान्य चालक भर हैं।
  • जलवायु नीति के उपायों को लागू करना और मजबूत करना- जैसे कि कार्बन की कीमत और कर, न्यूनतम मानक, और निम्न-कार्बन समाधानों के लिए समर्थन उपाय- जलवायु समाधानों की दिशा में आर्थिक प्रोत्साहनों को निर्देशित करने और इस प्रकार इन समाधानों की ओर पूंजी को स्थानांतरित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।
  • निजी टिकाऊ वित्त कार्य प्रणालियों को भी तेजी से आगे बढ़ना चाहिए ताकि वे जलवायु नीति के प्रयासों के साथ बेहतर ढंग से जुड़ सकें और उन प्रयासों को बढ़ा सकें। इसके लिए, नीति निर्माताओं को सीधे वित्तीय क्षेत्र पर लक्षित नीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है जो (ए) निवेश और बचत में सन्निहित उत्सर्जन की पारदर्शिता में काफी सुधार करते हैं; और (बी) सुनिश्चित करें कि पूंजी प्रवाह पेरिस के लक्ष्यों के साथ इस तरह संरेखित हो कि हमारी अर्थव्यवस्थाओं में उत्सर्जन और लचीलेपन पर वास्तविक प्रभाव पड़े।

और अब, हानि और क्षति

जलवायु परिवर्तन के इर्द-गिर्द की बातचीत, उत्सर्जन को कम करने से लेकर इसके प्रभावों को अपनाने, पहले से ही हो रही लॉस एंड डैमेज यानी हानि और क्षति तक पहुंच गई है। COP27 में नया सवाल यह है कि क्या हानि और क्षति से निपटने के लिए वित्तीय सुविधा को सक्रिय किया जाएगा या नहीं।

अदिति मुखर्जी कहती हैं कि “एट्रिब्यूशन साइंस में प्रगति लॉस एंड डैमेज को मापने में मदद करती है”। एट्रिब्यूशन स्टडीज एक नया क्षेत्र है, जो मापता है कि किस हद तक एक आपदा के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

लॉस एंड डैमेज को “अत्यावश्यक ग्रहीय अनिवार्यता” कहते हुए, रिपोर्ट कहती है:

  • लॉस एंड डैमेज पहले से ही हो रहे हैं और वर्तमान (उत्सर्जन) प्रक्षेपवक्र पर काफी बढ़ जाएंगे, लेकिन तेजी से न्यूनीकरण और प्रभावी अनुकूलन अभी भी इनमें से कई को रोक सकते हैं।
  • जबकि कई लॉसेस एंड डैमेजेस की गणना मौद्रिक संदर्भ में की जा सकती है, गैर-आर्थिक लॉसेस एंड डैमेजेस भी हैं जिन्हें बेहतर ढंग से समझने और उनका लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता है, लॉसेस एंड डैमेजेस के लिए एक समन्वित, वैश्विक नीति प्रतिक्रिया की तत्काल आवश्यकता है।

आईपीसीसी के एक अन्य लेखक, लिसा शिपर का कहना है कि अगर दुनिया को प्रभावी ढंग से जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना है और पहले से मौजूदा प्रभावों के प्रति अनुकूलन स्थापित करना है तो समावेशी निर्णय लेना ही होगा। 

रिपोर्ट कहती है:

  • जलवायु की स्थितियों के लिहाज से विकास, सामाजिक विकल्पों पर बनाया गया है जो राजनेताओं और नीति निर्माताओं के औपचारिक निर्णय लेने से परे हैं।
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया के सभी रूपों में समावेशी और सशक्त होने से, बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण जलवायु परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • वर्तमान में, किए जा रहे “समावेशी” डिसीजन मेकिंग, कार्रवाई या न्याय की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।

यदि इनमें से अगर कोई भी किया जाना है, तो संरचनात्मक बाधाओं को तोड़ना होगा और अनसस्टेनेबल लॉक-इन को रोकना होगा। रॉकस्ट्रॉम ने नेशनल एकाउंटिंग में “जीडीपी से परे जाने” का आह्वान किया।

  • तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लिए न्यूनीकरण रणनीति अभी भी अपर्याप्त है।
  • सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और सम्पन्नता द्वारा मापी गई सामाजिक प्रगति, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रमुख चालकों में से एक है। इसने संसाधन-गहन अर्थव्यवस्थाओं में जड़ जमा लिया है। ये जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा है।
  • इस राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली के भीतर निहित स्वार्थों ने पूरे सामाजिक मानदंडों, उद्योग और अर्थव्यवस्था में अनसस्टेनेबल लॉक-इन्स को जकड़ लिया है। अनसस्टेनेबल लॉक-इन्स के उदाहरणों में लगातार बढ़ते उत्पादन पर केंद्रित व्यवसाय मॉडल, कमजोर या अस्पष्ट जलवायु नीतियां, और यहां तक कि प्रत्यक्ष उग्रता जो जीवाश्म ईंधन उद्योगों को लाभ पहुंचाता है, शामिल हैं। 
  • जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्रणाली द्वारा संचालित जलवायु परिवर्तन की लागतों को वंचित समुदायों पर प्रतिरोध करने के लिए आसानी से थोप दिया जाता है। 
  • यदि हम वाकई परिवर्तनकारी बदलाव को प्राप्त करना चाहते हैं, तो अनसस्टेनेबल लॉक-इन्स को हटाने के लिए एक साथ सभी संरचनात्मक बाधाओं में हस्तक्षेप करना महत्वपूर्ण होगा।