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तस्करी के चलते विलुप्त हो रहा भारत का सबसे खूबसूरत कछुआ

अंतरराष्ट्रीय बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद, अपने अस्तित्व के लिए खतरा झेल रहे भारतीय स्टार कछुओं की तस्करी जारी है। ये स्थितियां वैश्विक वन्यजीव व्यापार नियंत्रण के लिए उठाए जा रहे कदमों की कमियां उजागर करती हैं।

Illustration: Kabini Amin / The Third Pole

ठंडे बक्सों में रखकर, शॉपिंग बैग में बांधकर, सूटकेस में भरकर, हर साल हजारों भारतीय स्टार कछुओं की तस्करी होती है। इन हालातों में, ये दर्दनाक परिस्थियां झेलने को मजबूर हैं। इनके मूल स्थान भारत और श्रीलंका से इनकी तस्करी जारी है। भारतीय स्टार कछुए, एक आकर्षक पालतू जानवर बन गये हैं। इनमें से ज्यादातर को दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और अमेरिका ले जाया जाता है।

स्रोत: आईयूसीएन। ग्राफिक: द थर्ड पोल

इनको दुनिया के सबसे खूबसूरत कछुओं में से एक माना जाता है। भारतीय स्टार कछुओं के आवरण पर पीले और काले, तारे का आकार पाया जाता है। इसी पैटर्न के कारण इसका नाम भारतीय स्टार कछुआ है। ये केवल भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं, जहां ये सूखी घास के मैदानों और झाड़ियों में रहते हैं।

वन्यजीव संरक्षण चैरिटी, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संयुक्त निदेशक जोस लुइस ने www.thethirdpole.net को बताया कि ये बहुत सुंदर होते हैं। इनको रखना आसान होता है। इनकी उम्र लंबी होती है। दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में ऐसी भी मान्यता है कि कछुए भाग्य लाते हैं।

यही वे गुण हैं जिनके कारण भारतीय स्टार कछुओं को एक पालतू जानवर के रूप में पसंद किया जाता है। निवास स्थान में लगातार कमी और अंतरराष्ट्रीय पालतू पशु व्यापार के लिए इनके संग्रह की प्रवृत्ति के चलते जंगलों में रहने वाली ऐसी प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। 2016 के शोध में पाया गया कि भारतीय स्टार कछुए का किसी भी अन्य कछुए प्रजाति की तुलना में अधिक अवैध व्यापार होता है। इन खतरों ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) को भारतीय स्टार कछुए को “संवेदनशील” के रूप में वर्गीकृत करने के लिए प्रेरित किया है। यह श्रेणी लुप्तप्राय प्रजातियों की रेड लिस्ट से बस एक पायदान नीचे है।  

2019 में, भारतीय स्टार कछुओं के अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय इसे यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डैन्जर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फाउना एंड फ्लोरा या सीआईटीईएस के परिशिष्ट I में जोड़ा गया था। ऐसा भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और सेनेगल के प्रयासों के बाद संभव हो पाया था।

सीआईटीईएस क्या है?

द् कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डैन्जर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फाउना एंड फ्लोरा या सीआईटीईएस 183 देशों द्वारा हस्ताक्षरित, एक कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार इस स्तर तक न बढ़ जाए जिससे जंगली जानवरों या जंगली पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो जाए।

सीआईटीईएस, उन प्रजातियों पर लागू होता है जो इसके परिशिष्ट में सूचीबद्ध हैं। परिशिष्ट I में व्यापार के कारण सबसे अधिक खतरे वाली प्रजातियां शामिल हैं। इनका अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक व्यापार प्रतिबंधित है। विभिन्न सीमाओं के बीच इन प्रजातियों को ले जाने की स्थिति में निर्यात और आयात करने वाले दोनों देशों के परमिट की जरूरत होती है।

एक परिशिष्ट II  सूची, विनियमित वाणिज्यिक व्यापार की अनुमति देती है, लेकिन केवल तभी, जब निर्यात करने वाला देश निर्यात परमिट देता है। परिशिष्ट III  सूची के लिए किसी विशिष्ट देश से उस प्रजाति के व्यापार के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। सीआईटीईएस के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहने पर संबंधित देश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इनमें सीआईटीईएस सूचीबद्ध प्रजातियों के व्यापार पर अस्थायी प्रतिबंध शामिल भी है।

दुनिया के जानवरों और पौधों की प्रजातियों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही सूचीबद्ध है और इसलिए ये सीआईटीईएस के तहत विनियमित हैं। सीआईटीईएस ट्रेड डाटाबेस, जो ऑनलाइन मौजूद है, में 1975 से सीआईटीईएस-सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय आवागमन के रिकॉर्ड शामिल हैं।

भारतीय स्टार कछुआ पहले परिशिष्ट II में था, जिसका अर्थ है कि निर्यात परमिट के साथ विनियमित व्यापार की अनुमति थी, लेकिन सीआईटीईएस व्यापार डाटाबेस के अनुसार, जंगलों से एकत्र किए गए भारतीय स्टार कछुओं के वाणिज्यिक निर्यात के लिए 1999 से कोई परमिट भारत, श्रीलंका या पाकिस्तान द्वारा जारी नहीं किया गया था। फिर भी हजारों की संख्या में स्टार कछुओं का अवैध रूप से व्यापार होता रहा। अकेले 2017 में, भारत, श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड में 11 घटनाओं में 6,040 भारतीय स्टार कछुओं को जब्त किया गया था।

अधिकांश देशों में, परिशिष्ट I में शामिल प्रजातियों से जुड़े अपराधों को लक्षित करना प्राथमिकता है और दंड अधिक हैं
कनिथा कृष्णसामी

परिशिष्ट I में प्रजातियों को सूचीबद्ध करने के सफल प्रस्ताव में रेखांकित किया गया कि अवैध व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई है और प्रजातियों की आबादी में भारी गिरावट है। एक उदाहरण के मुताबिक, 2014 के दौरान भारतीय राज्य, आंध्र प्रदेश में एक ही क्षेत्र से 55,000 से अधिक भारतीय स्टार कछुओं को अवैध रूप से एकत्र किए जाने की सूचना है।

6,040

2017 में भारत, श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड में 11 घटनाओं में 6,040 भारतीय स्टार कछुओं को जब्त किया गया

दक्षिणपूर्व एशिया में डायरेक्टर फॉर कंजर्वेशन एनजीओ ट्रैफिक, कनिथा कृष्णसामी ने एक ई-मेल के जरिए www.thethirdpole.net को बताया कि परिशिष्ट I  में सूचीबद्ध प्रजाति का संदेश स्पष्ट है कि वाणिज्यिक व्यापार, इन प्रजातियों जनसंख्या में गिरावट का मुख्य कारण रहा है और इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है।  

वह कहते हैं, “ज्यादातर देशों में, परिशिष्ट I प्रजातियों से जुड़े अपराधों को लक्षित करना प्राथमिकता है, और निवारक प्रभाव पैदा करने की उम्मीद में दंड अधिक हैं। दुर्भाग्य से, अधिकांश उपभोक्ता राज्यों [भारतीय स्टार कछुए के] में ऐसा नहीं हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत की प्रजातियों की आबादी को भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है।”

स्टार कछुए का व्यापार जारी है

भारत में, एक एनजीओ, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी द्वारा एकत्र किए गए और www.thethirdpole.net के साथ साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि सीआईटीईएस प्रतिबंध लागू होने बाद, अधिकारियों ने 2020 और 2021 में 24 घटनाओं में 3,500 स्टार कछुओं को जब्त किया। 2022 में, अब तक देश में दो बार ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें कुल 1,498  स्टार कछुए जब्त किये गये हैं। इनकी तस्करी की कुछ ही घटनाओं को अधिकारियों द्वारा पकड़ा जा पा रहा है, ऐसे में स्पष्ट है कि स्टार कछुओं की होने वाली अवैध तस्करी का वास्तविक संख्या काफी ज्यादा है।

स्टार कछुआ व्यापार मार्गों की पहचान करने के लिए अंडरकवर का काम करने वाले लुइस के अनुसार तस्करी की उनकी यह यात्रा कुछ इस तरह शुरू होती है। कोई स्थानीय व्यक्ति जंगलों में कछुए को पाता है। फिर वह इसको, कुछ पैसों के बदले, कछुओं को एकत्र करने वाले व्यक्ति को सौंप देता है। इसके बाद यह किसी निर्यातक को दिया जाता है, जो कई कछुओं को एक साथ पैक करता है, उन्हें सब्जी के डिब्बे, सूटकेस या कार्गो में छुपाता है। स्टार कछुओं के पैरों के चारों ओर टेप लपेटा जाता है, जिससे देश से बाहर जाने, अक्सर दक्षिण पूर्व एशिया, से पहले उनके पैरों की गति सीमित हो जाए।

लुइस बताते हैं कि हवाई अड्डे के कर्मचारी, सरीसृपों के बजाय, नशीले पदार्थों या धातु की वस्तुओं को देखने के लिए प्रशिक्षित होते हैं और इस तरह वे कछुओं को छोड़ देते हैं।

भारतीय स्टार कछुओं पर शोध करने वाले, एक एनजीओ, वल् र्ड एनिमल प्रोटेक्शन के पशु कल्याण एवं अनुसंधान के प्रमुख डॉक्टर नील डिक्रूज कहते हैं, “एक बार लैंड करने के बाद, व्यापारी उन्हें स्थानीय स्तर पर बेच देते हैं। एक विकल्प यह भी होता है कि उन्हें अधिक कीमतों पर दूसरे देश में भेजा जा सकता है। स्टार कछुओं के नए मालिक, स्कॉटलैंड में ग्लेनरोथ्स से फिलीपींस में दावो सिटी तक की लोकेशन, फेसबुक ग्रुप्स पर लिस्ट करते हैं। हांगकांग और थाईलैंड गेटवे के रूप में कार्य कर रहे हैं।”

Illustration of Indian star tortoises being transported, Kabini Amin
Illustration: Kabini Amin / The Third Pole

वह कहते हैं, “लेकिन कई इसे, उनका अंतिम गंतव्य नहीं बनाते हैं। जब टेप किया जाता है या बहुत कसकर पैक किया जाता है, तो वे अपने सिर और अपने अंगों को नहीं हिला सकते। इस तरह के दर्द, बीमारी और सांस की समस्याओं (जिसका वे अनुभव करते हैं) के चलते कछुओं के आवरण में टूट आ सकती है और उनको घुटन का भी सामना करना पड़ सकता है।

लुइस कहते हैं कि इन कछुओं का अंतिम मालिक अपने नए पालतू जानवर के पिछली कहानी से अनजान हो सकता है। यह बिलकुल एक कैमरा या मोबाइल फोन की तरह है। आप खरीदते तो हैं लेकिन आपको इस बात की चिंता नहीं है कि आपका आई फोन, चीन या वियतनाम या बांग्लादेश में बनाया गया है।

कछुओं की रक्षा करने में विफल कानून प्रवर्तन

भारत में, जहां स्टार कछुआ, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची IV के तहत संरक्षित है। जिस व्यक्ति के कब्जे में ये प्रजातियां पाई जाएंगी, उसको आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें छह महीने तक की सजा हो सकती है।

लुइस कहते हैं, “लेकिन हकीकत में, सजा के नाम पर, केवल एक छोटा सा जुर्माना और एक छोटे समय के लिए जेल की सजा होने की संभावना रहती है। यह स्थिति यहां तक ​​​​कि उन लोगों के लिए भी लागू है जो घोषित तस्कर के रूप में जाने जाते हैं।” एक व्यक्ति के बारे में वह विशेषरूप से बताते हैं कि पकड़े जाने से पहले, दो साल में उसने 34 से अधिक बार स्टार कछुओं के साथ चेन्नई और बैंकॉक के बीच उड़ान भरी। उसका केस अभी भी चल रहा है। लुइस का मानना ​​​​है कि उसे तीन से छह महीने से अधिक की सजा मिलने की संभावना नहीं है। लुइस के अनुसार, स्टार कछुए के अवैध व्यापार के लिए स्पष्ट सजा की कमी का मतलब है कि इसके व्यापारियों के लिए पर्याप्त निवारक नहीं है। कृष्णासामी का कहना है, “यह नियंत्रण और नियमों व कानूनों के प्रवर्तन को कम करता है।”

मैं आपको स्टार कछुआ भेजता हूं, आप मुझे मछली दें
जोस लुइस

एक और चुनौती यह है कि कई देशों में कानूनी सुरक्षा, देशी प्रजातियों तक ही सीमित है। सीआईटीईएस को इसके लिए धन्यवाद कि एक देश में भारतीय स्टार कछुए की तस्करी अवैध है लेकिन अगर यही कुछ देशों में पहुंच जाता है, जिनमें थाईलैंड और इंडोशिया शामिल हैं, तो यह संरक्षित नहीं है। इसका मतलब है कि अधिकारी, तस्करी किए गए जानवरों की खरीद-बिक्री और कब्जे की जांच और मुकदमा चलाने में असमर्थ हो सकते हैं।

वन्यजीव व्यापार के कारण प्रभावित प्रजातियों में कमी को रोकने की दिशा में शोध के माध्यम से काम करने वाली एक एनजीओ मॉनिटर कंजर्वेशन रिसर्च सोसाइटी में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर क्रिस शेफर्ड कहते हैं कि इन कमियों का मतलब है कि इन्हें दुकानों में खुले तौर पर बेच सकते हैं।

ट्रैफिक जैसे संगठनों ने थाईलैंड को गैर-देशी प्रजातियों को कवर करने के लिए अपने कानूनों का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया है। कैंपेनर्स ने यूरोपीय संघ से अमेरिका के उदाहरण का पालन करने का भी आग्रह किया है, जहां लेसी एक्ट, अपने मूल देश में कानूनों के उल्लंघन करके एकत्र की गई किसी भी प्रजाति को खरीदना या बेचना अवैध बनाता है।

मलेशिया द्वारा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2010 के तहत, स्टार कछुए को एक संरक्षित प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध करने का मतलब इसे पालतू जानवरों की दुकानों से हटाना है। स्टार कछुए जैसी प्रजातियों की रक्षा के लिए कानून मौजूद हैं, फिर भी शेफर्ड ने कई जगहों पर चेतावनी दी है कि वे “लगभग एक बुरा मजाक” हैं। उन्होंने सीआईटीईएस  को लागू करने में विफल रहने वाले देशों को दंडित करने का आह्वान किया है।

दक्षिण पूर्व एशियाई संरक्षण विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करने वाले चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के प्रोफेसर एलिस ह्यूग्स कहते हैं कि यदि वे सीआईटीईएस के तहत अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं, तो व्यापार प्रतिबंधों को उन देशों पर लागू किया जाना चाहिए, लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता है। यहां तक ​​कि [सीआईटीईएस] के पास जो उपकरण हैं, उनका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

55,000

2014 के दौरान, भारतीय राज्य, आंध्र प्रदेश में एक ही क्षेत्र से 55,000 स्टार कछुओं को अवैध रूप से एकत्र किए जाने का मामला सामने आया।

लुइस कहते हैं कि आपूर्ति श्रृंखलाओं में उचित जांच के साथ-साथ भारी जुर्माना या साल भर की जेल की सजा को राष्ट्रीय ढांचे में शामिल करने से भारतीय स्टार कछुओं के लगातार अवैध व्यापार की समस्या से निपटने में मदद मिल सकती है।

वन्यजीव तस्करी की समस्या को दूर करने की दिशा में काम करने वाले विशेषज्ञों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि जांच के दायरे में व्यापार ऋखंला में ऊपर के लोग ही आते हैं। अवैध तस्करी के धंधे के सबसे महत्वपूर्ण और बार-बार बदल जाने वाले छोटे प्लेयर्स कुछ जुर्माना झेलकर बच जाते हैं। यह इस समस्या के समाधान की दिशा में सबसे बड़ी पहेली है। लेकिन लुइस का कहना है कि इन समूहों के पैसों के लेनदेन की कड़ी का पता लगा मुश्किल हो सकता है क्योंकि व्यापारी अक्सर, पैसों के लेन-देन की जगह उत्पाद के संदर्भ में सौदा करते हैं। उदाहरण के लिए मैं आपको एक स्टार कछुआ भेजता हूं, आप मुझको एक मछली दें।  

क्या सीआईटीईएस में सरीसृपों की उपेक्षा हो रही है?

संधि को “उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं” कहते हुए, विशेष रूप से सरीसृपों के लिए, ह्यूग्स ने सीआईटीईएस के कार्यान्वयन से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डाला, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि सीआईटीईएस के 8 फीसदी से कम रिकॉर्ड विसंगतियों से मुक्त हैं, जो इसकी प्रभावशीलता में बाधा डालते हैं।

उदाहरण के लिए, 2000 और 2015 के बीच, सीआईडीईएस डाटा ने 70,000 से अधिक भारतीय स्टार कछुओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के रूप में सूचीबद्ध किया। जॉर्डन, यूक्रेन, हांगकांग और स्लोवेनिया को सबसे बड़े निर्यातकों के रूप में पहचाना गया। इन देशों में आयात को सूचीबद्ध करने वाली रिपोर्टों की कमी – जिनके पास कोई जंगली स्टार कछुआ नहीं है – ने सवाल उठाया कि यह संख्या इतनी अधिक कैसे हो सकती है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि प्रजाति, कैद में अच्छी तरह से प्रजनन नहीं करती है।

डिक्रूज का कहना है, “गंभीर चिंता की बात यह है कि जॉर्डन, यूक्रेन, हांगकांग और स्लोवेनिया से निर्यात किए गए स्टार कछुओं से उस समय कैद में वैध प्रजनन नहीं हुआ। किसी के पास उचित सीआईटीईएस आयात रिकॉर्ड नहीं था। यह उनके पास पाए गए स्टार कछुओं की वैधता के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।”

छह साल बाद भी विसंगतियां बरकरार हैं। सीआईटीईएस व्यापार डाटा से पता चलता है कि, 2020 में, श्रीलंका, जर्मनी और यूके ने भारतीय स्टार कछुओं के निर्यात की सूचना दी थी, लेकिन आयात की कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई जबकि परिशिष्ट I की प्रजातियों के लिए आयात परमिट की आवश्यकता होती है।

ह्यूग्स कहते हैं, “वास्तविक संख्या प्राप्त करना [अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार की जाने वाली सीआईटीईएस-सूचीबद्ध प्रजातियों का] और यदि देशों के बीच संदर्भों को देखना हो तो बहुत ज्यादा कठिन हो सकता है। इसलिए यदि एक देश ने कहा कि उसने दूसरे को एक्स इकाइयों का निर्यात किया है, तो आप वास्तविक समय सीमा में जांच नहीं कर सकते कि कितने प्राप्त हुए थे। यह ट्रैकिंग और व्यापार की निगरानी को कठिन बनाता है। ”

ह्यूग्स कहते हैं कि सीआईटीईएस प्रणाली केवल प्रजातियों के एक छोटे उपसमूह – विशेष रूप से स्तनधारियों – को सुरक्षा प्रदान करती है जबकि सरीसृपों और उभयचरों की उपेक्षा होती है। 98 सरीसृपों की तुलना में 325 स्तनपायी प्रजातियां सीआईटीईएस परिशिष्ट I में सूचीबद्ध हैं।

देशों को यह भी साबित करना होगा कि यदि किसी प्रजाति को व्यापार के चलते खतरा पैदा हो रहा है, तो वह सूचीबद्ध हो जाए। यह एक धीमी प्रक्रिया हो सकती हैं। वहीं, पालतू पशुओं के उद्योग में व्यापार की प्रवृत्ति तेजी से जंगली प्रजातियों को खत्म कर सकती है।

Illustration of Indian star tortoise as a pet, Kabini Amin
Illustration: Kabini Amin / The Third Pole

ह्यूग्स का सुझाव है कि सीआईटीईएस को किसी प्रजाति के व्यापार को विनियमित करने के लिए पूरे कायापलट की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। अब तक किसी देश का इंतजार किया जाता है कि वह खतरे वाली प्रजातियों को चिह्नित करके सूचीबद्ध करने के लिए वकालत करे।

डिक्रूज कहते हैं कि सीआईटीईएस की प्रभावशीलता पर वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र में बहस बढ़ रही है। कानून के किसी खास हिस्से में भी सुधार किया जा सकता है। लेकिन इस समय सीआईडीईएस एकमात्र विधायी उपकरण है जो अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार और वैश्विक स्तर पर एक स्थिरता और संरक्षण के दृष्टिकोण से इसके प्रभावों से संबंधित है। डिक्रूज का कहना है कि इसे मानवीय व्यवहार परिवर्तन के साथ पूरक करने की आवश्यकता है, जबकि उपभोक्ता मांग के मूल कारणों को संबोधित किया जाता है।

भारतीय स्टार कछुओं के मामले में, एक आकर्षक विदेशी पालतू जानवर के रूप में इन प्रजातियों की मांग को कम करना होगा, जिसमें संभावित उपभोक्ताओं को इस बारे में शिक्षित करना भी शामिल है कि इससे जानवरों समग्र अस्तित्व पर खतरा हो सकता है और यह उन जानवरों के हित में नहीं है।

वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि जब लोग देखेंगे कि किस तरह से जानवरों को बांधा जाता है और उनको एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाया जाता है तो वास्तव में हैरान हो जाएंगे। इनकी मृत्यु दर भी लोगों को दुखी करने वाली होगी। मेरा मानना है कि निश्चित रूप से कई मामलों में लोगों के सामने यह प्रश्न खड़ा होगा कि क्या वाकई में किसी विशेष पशु को पालूत के रूप में रखना ठीक है?

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