प्रकृति

जैव विविधता की रक्षा के लिए मानव जाति के पास आखिरी मौका?

अगर हम जैव विविधता के लक्ष्यों को वाकई में हासिल करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें कुनमिंग जैव विविधता वार्ता की बातचीत के मसौदे में मौजूद समस्याओं को सुलझाना होगा।
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<p>A juvenile plumed basilisk in Costa Rica’s Tortuguero National Park [image: Alamy]</p>

A juvenile plumed basilisk in Costa Rica’s Tortuguero National Park [image: Alamy]

कोरोना वायरस ने बहुत लोगों को एक बार फिर इस बात पर गौर करने के लिए मजबूर कर दिया है कि किस तरह से जंतुओं और प्रकृति का आपसी संबंध मानव जाति से है। अक्टूबर में कुनमिंग में एक बैठक होने वाली है। इस बैठक में पृथ्वी पर सभी के जीवन के महत्व पर विचार किया जाना है। दरअसल, 15वें कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप 15) में जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) का आयोजन होने जा रहा है। ये अतिश्योक्ति नहीं है कि इस बैठक का ऐतिहासिक महत्व है।

2020 के बाद की वैश्विक जैव विविधता की रूपरेखा तय करना, कॉप 15 का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होगा। इसके अलावा, अगले दशक के लिए जैव विविधता लक्ष्य निर्धारित किये जाएंगे। साथ ही, प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ रहने के 2050 के एक विजन के अलावा इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्य योजना बनाने पर भी चर्चा होगी। सीबीडी ने 6 जनवरी, 2020 को बातचीत के आधार को प्रस्तुत करते हुए एक जीरो ड्राफ्ट प्रकाशित किया था। पिछले सप्ताह रोम में 2020 रुपरेखा के शुरुआती संस्करण पर चर्चा की गई। लेकिन इसमें जैव विविधता संरक्षण को लेकर विजन और लिखे गये ड्रॉफ्ट में अब भी स्पष्ट अंतर है।

आइची से निराशा

साल 1992, जब सीबीडी में हस्ताक्षर की शुरुआत हुई, से लेकर अब तक मानव जाति जैव विविधता के नुकसान को रोकने के मामले में असफल साबित हुई है और बहुत से देशों में हालात पहले की तुलना में बदतर हुए हैं। साल 2002 में कॉप 6 के दौरान कन्वेंशन ऑन बॉयोलॉजिकल डायवर्सिटी के लिए एक रणनीतिक योजना स्वीकार की गई थी। इसका एक साहसिक लक्ष्य था : जैव विविधता क्षय के मौजूदा दर में 2010 तक एक महत्वपूर्ण कमी हासिल करना। लेकिन मूल्यांकन में पाया गया कि पहला दशकीय लक्ष्य हासिल करने योग्य नहीं था और प्रजातियों का विनाश वास्तव में बढ़ गया था।

2011 से 2020 की रणनीतिक योजना तैयार करने के लिए 2010 में कॉप 10 नगोया, जापान में हुआ। इसमें 20 लक्ष्य शामिल किये गये जिसे आइची बायोडायवर्सिटी टारगेट्स के नाम से जाना जाता है। कॉप 10 में प्राकृतिक जैव विविधता, जिस पर मानव जाति निर्भर है, के नुकसान को रोकने के लिए ‘प्रभावी और अविलंब कार्रवाई’ पर जोर दिया गया। लेकिन इसकी प्रगति कठिन रही। फ्रांस के इंस्टीट्यूट फॉर सस्टनेबल डेवलपमेंट एंड इंटरनेशनल रिलेशंस ने 2018 में बताया कि ज्यादातर आइची लक्ष्यों को 2020 तक हासिल कर पाना संभव नहीं है। आईपीबीईएस (द् इंटरगर्वनमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेस) ने अप्रैल, 2019 में अपने वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा कि पृथ्वी की 80 लाख प्रजातियों में 10 लाख प्रजातियों और 40 फीसदी उभयचर प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा प्रकृति का विनाश का स्तर बदतर हुआ है। कुनमिंग में सीबीडी को सही रास्ते पर स्थापित करने और पहले की त्रुटियों को दोहराने से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास अपने दृष्टिकोण और स्पष्ट संरचनात्मक विफलताओं की फिर से जांच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

आइची से सीख लेने की जरूरत

आइची लक्ष्यों की असफलता हमें कई सबक दे सकती है। पहला, वैज्ञानिक समर्थन और रणनीतिक फोकस की कमी थी। जैव विविधता क्षति दुनिया के हर कोने में हो रही है लेकिन इसको लेकर अभी पर्याप्त वैज्ञानिक प्रतिमान नहीं हैं। अगर हम इसकी तुलना जलवायु परिवर्तन से करें तो पाएंगे कि वहां 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट वार्मिंग टारगेट तय करने के लिए मात्रात्मक प्रतिमान का इस्तेमाल किया गया। इससे राष्ट्रीय, स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर स्पष्ट कार्रवाई की दिशा तय की गई।

समग्र लक्ष्य व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। जैव विविधता और प्रकृति की अंतर्निहित जटिलता के कारण एकल उपाय चिह्नित करना कठिन होता है। मसलन, प्रकृति के साथ सद्भावना के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें कितनी जमीन और कितनी प्रजातियों का संरक्षण करना होगा, ये स्पष्ट तौर पर चिह्रित करना कठिन रहा। इससे वैश्विक तौर पर व्यवस्थित कार्रवाई कठिन हो गई।

दूसरा, आइची लक्ष्यों के डिजाइन और उनके कार्यान्वयन के बीच एक अंतर था। राष्ट्रीय रणनीतियों और कार्रवाइयों में आंतरिक बनाने के बजाय लक्ष्यों को डिजाइन करने और वार्ता में बहुत समय बिताया गया था। इसी तरह, अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय नीति निर्धारण, कार्यान्वयन तंत्र, संसाधन जुटाने, मूल्यांकन और प्रोत्साहन जैसी प्रणाली डिजाइन करने में कम वक्त दिया गया और ये पर्याप्त रूप से बाध्यकारी नहीं थे।

तीसरा, मूल निवासियों और स्थानीय लोगों के अधिकार और भागीदारी को इसमें शामिल नहीं किया गया। वैश्विक स्तर पर कम से कम एक चौथाई भूमि परंपरागत रूप से या तो मूल निवासियों के स्वामित्व में है या वे इनका प्रबंधन करते हैं। इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि समुदायों की तरफ से प्रबंधित पारिस्थितिक तंत्रों से बेहतर जैव विविधता परिणाम प्राप्त होते हैं।

वैसे तो आइची लक्ष्यों ने स्थानीय आबादी और पारंपरिक ज्ञान के महत्व को पहचाना  और आनुवंशिक संसाधनों के उचित वितरण के माध्यम से गरीबी में कमी लाने और सतत विकास को बढ़ावा देने की कोशिश की लेकिन मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों और भागीदार को जितना महत्व दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया जा सका। इसके अलावा सरकारों और समाज की तरफ से गारंटी की कमी भी रही। यह समझने की जरूरत है कि जैव विविधता का संरक्षण केवल सरकार और कुलीनों के लिए ही महत्व नहीं रखता है।

आखिर में एक बात और, सिविल सोसाइटी और जनता को साथ लेकर आगे बढ़ने कोशिश नहीं की गई, ये भी एक असफलता रही। अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन, कारोबार से जुड़े समूह और जनता रूपरेखा बनाने और क्रियान्वयन में व्यापक स्तर पर भागीदार करने में सक्षम नहीं रही। मानव जाति और प्रकृति के बीच संबंधों को दोबारा स्थापित करने, जैव विविधता संरक्षण को मुख्य धारा का हिस्सा बनाने और निजी संसाधन व बाजार तंत्र का सहारा लेने के लिए इनको शामिल करना बेहद जरूरी होता है।

जीरो ड्राफ्ट पर्याप्त नहीं है

चीन का एक समूह द सिविल सोसाइटी एलायंस फॉर बॉयोडायवर्सिटी कंजर्वेशन जैव विविधता और पर्यावरणीय शासन प्रणाली पर काम करता है। इस संस्था ने मौजूदा जीरो ड्राफ्ट की बहुत गंभीरतापूर्वक पड़ताल की है और निम्नलिखित पांच मुद्दों का पता लगाया है। ये हमें चिंतित करते हैं कि मानव जाति अगले 10 से 30 वर्षों तक पृथ्वी पर जीवन के संरक्षण में सक्षम नहीं होगी।

पहला, यह कम महत्वाकांक्षी है और यह प्रकृति की बहाली और संरक्षण के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी बदलावों को हासिल कर पाने में सक्षम नहीं होगा जैसा कि आईपीबीईएस रिपोर्ट में कहा गया है। 2030 के लक्ष्य पर जोर दिया जाना चाहिए, इसलिए लक्ष्य को लेकर कहा गया है : “2030 तक जैव विविधता क्षय को रोकना है। रिवर्स करना है। जैव विविधता को रिकवरी के रास्ते पर लाना है।“ प्रमुख उद्योगों के लिए कार्ययोजना तैयार करके संतुलित महत्वाकांक्षा के साथ व्यावहारिक कार्रवाई के जरिये जैव विविधता क्षय के मूल कारणों से निपटा जा सकता है। उदाहरण के लिए, चीन में सीईई (सोसाइटी ऑफ आंत्रप्रेनेयोर्स एंड इकोलॉजी) फाउंडेशन व्यापारिक गतिविधियों के साथ ग्रीन सप्लाई चेन मानकों को स्थापित करने के लिए जुड़ा हुआ है। इसका मूल लक्ष्य पर्यावरण का संरक्षण है। यह व्यापारिक प्रतिष्ठानों को हरित खरीद अपनाने और पर्यावरणीय सुधार करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। हम ये सुझाव देते हैं कि ड्राफ्ट की पृष्ठभूमि का हिस्सा क्लाइमेट चेंज की वजह से अतिरिक्त खतरे की बात वर्णन करता है जो परिवर्तनकारी बदलावों को स्वीकार करने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।

दूसरा, “कार्रवाई लक्ष्यों” ने जैव विविधता के प्रभावी संरक्षण को सुनिश्चित नहीं किया। हमने पाया कि रूपरेखा अपने लक्ष्यों के मामले में “दीर्घकालीन लक्ष्यों” और “कार्रवाई लक्ष्यों” के बीच विभाजित करता है- इसकी एक प्रभावी विधि ठोस चर्चाओं के लिए प्रोत्साहित करना हो सकता है। लेकिन कार्रवाई लक्ष्य (जैसे इतने प्रतिशत भूमि क्षेत्र का संरक्षण) नीति निर्धारण के लिए केवल शुरुआती बिंदुओं तक ही अपना काम करता है और यह जैव विविधता के वास्तविक संरक्षण को सुनिश्चित नहीं करता है। इसलिए जिन लक्ष्यों को नीतियों के परिणाम के मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, वास्तविक प्रगति की निगरानी में उनकी जरूरत है। इसलिए हम सुझाव देते हैं कि 2030 और 2050 दोनों लक्ष्यों को निर्धारित करने के बजाय, जैसा कि इस समय जीरो ड्राफ्ट में दिखाई पड़ रहा है, 2030 के लिए क्रियाकलापों पर फोकस होना चाहिए। 2050 के लक्ष्यों को शामिल करने से दुर्लभ समय और संसाधन खर्च होगा। ये बातचीत को भी पीछे की तरफ ले जाएगा।

तीसरा, गैर-सरकारी हिस्सेदारों को पूरी भागीदारी और पूरी भूमिका दी जानी चाहिए। विजन 2050 के लिए व्यापक बदलाव, अभूतपूर्व सहयोग और भागीदारी की जरूरत है। जीरो ड्राफ्ट में कई सेक्शंस में मूल निवासियों, स्थानीय समुदायों, सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्र के अधिकारों और कार्रवाइयों पर जोर दिया गया है। लेकिन इसमें ये नहीं बताया गया है कि किस तरह से गैर-सरकारी हिस्सेदारों के लक्ष्यों और कार्रवाइयों को इसमें शामिल किया जाएगा। सिविल सोसाइटी, मूल निवासी, स्थानीय समुदाय और निजी क्षेत्र की 2030 जैव विविधता लक्ष्यों में योगदान को लेकर भी स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं गया है। उदाहरण के लिए, ग्लोबल एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट और पैराडाइज फाउंडेशन जैसे चाइनीज पर्यावरणीय समूहों ने करीब 8000 वर्ग किमी जमीन, कई प्रमुख प्रजातियां और प्राकृतिक वास का संरक्षण किया है। लेकिन इन संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी मान्यता नहीं मिली है और इसीलिए जैव विविधता संरक्षण में जब चीन की भागीदारी की बात आती है तो इनको शामिल नहीं किया जाता।

चौथा, समुद्री जैव विविधता संरक्षण के लिए जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की बेहतर परिभाषा। समुद्र की प्रकृति का मतलब, इसके संरक्षण लिए स्थानीय और वैश्विक सहयोग की जरूरत होना है। हमने पाया है कि मौजूदा ड्राफ्ट में अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और बहुपक्षीय पर्यावरणीय समझौतों के साथ संवाद और सहयोग का जिक्र है। हम राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्रों के अंदर और बाहर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ महासागरों की स्पष्ट कानूनी परिभाषा देखने की उम्मीद करते हैं। इसमें शामिल विभिन्न सरकारों को फिशिंग, शिपिंग और अन्य गतिविधियों से समुद्री वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन और उनके प्रभाव को कम करने लिए कदम उठाने, खुले सागर के सतत विकास और जैव विविधता संरक्षण में सहयोग के लिए प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।

पांचवां, लक्ष्यों का समर्थन करने वाले क्रियान्वयन तंत्र को मजबूत करना। हमने पाया है कि जीरो ड्राफ्ट में कोई स्पष्ट भाषा न होने के साथ क्रियान्वयन तंत्र, संसाधन आवंटन, जिम्मेदारी और पारदर्शिता पर बातचीत चल रही है। हम ऐसे क्रियान्वयन तंत्र की बात कह रहे हैं जो 2020 के बाद की रूपरेखा की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्यों से तालमेल रख सके। उदाहरण के लिए, चीन ने “पारिस्थितिक सभ्यता” की अवधारणा को आगे बढ़ाया है, जैसे पारिस्थितिकी निवारण स्थापित करना और पर्यावरणीय क्रियान्वयन निरीक्षण करना, इन कदमों को नीतिगत सुधारों और कार्रवाईयों का समर्थन प्राप्त है। यह जैव विविधता की रक्षा करने वाले तंत्र के लिए एक मॉडल प्रदान करता है। पारिस्थितिक सभ्यता पहले से ही कॉप 15 का एक विषय है और रूपरेखा में विचार किये जाने वाले कार्यान्वयन तंत्र के उदाहरण शामिल होने चाहिए।

विश्व पहले से ही छठवें जन विलोप के दौर में है जिसे खुद मानव जाति ने बढ़ावा दिया है और ऐसा होने से केवल मनुष्य ही रोक भी सकता है। कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला हुआ है। टिड्डियों के झुंड का उत्पात अब उप-सहारा अफ्रीकी देशों से आगे निकलते हुए कई अन्य देशों में पहुंच चुका है। इन सब घटनाओं से स्पष्ट है कि पृथ्वी के लिए जैव विविधता संकट बहुत खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। अब बेहद जरूरी हो गया है कि मानव जाति प्रकृति के साथ सामंजस्य के साथ रहे।

कुनमिंग कांफ्रेंस, मानव जाति के लिए आखिरी मौका है जिसमें वह जैव विविधता को बचाने के लिए ठोस प्रयास कर सकती है। मौजूदा वक्त में हम जीवन और मौत की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। संतुलित महत्वाकांक्षा के साथ व्यावहारिक कार्ययोजना का खाका खींचने के लिए अगले सात महीने मानव जाति के लिए बेहद अहम हैं।

(Peng Kui ग्लोबल एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट (जीईआई) के इकोसिस्टम कंजर्वेशन कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम में प्रबंधक हैं। यह सिविल सोसाइटी एलायंस फॉर बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन (सीएसएबीसी) में एक सलाहकार भी हैं।)