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विचार: हिमालय क्षेत्र के भविष्य के लिए ज़रूरी हैं नेचर-बेस्ड सलूशंस

जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के चलते अनेक नकारात्मक प्रभाव बढ़ रहे हैं। इन परिस्थितियों से निपटने के उद्देश्य से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के देश नेचर-बेस्ड सूलशंस यानी प्रकृति पर आधारित समाधान की रूपरेखा बनाने और उनको लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नेचर-बेस्ड सलूशंस में देशज और स्थानीय ज्ञान को महत्व दिया जाता है।
<p>म्यांमार के इनले झील में फ्लोटिंग एग्रीकल्चर (फोटो: एलेक्स ट्रेडवे / आईसीआईएमओडी )</p>

म्यांमार के इनले झील में फ्लोटिंग एग्रीकल्चर (फोटो: एलेक्स ट्रेडवे / आईसीआईएमओडी )

बहुत पुराने वक्त से अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली चुनौतियों का हल निकालने के लिए दुनिया भर में लोग प्रकृति का सहारा लेते आ रहे हैं। हम सबको प्रकृति से पर्याप्त भोजन प्राप्त होता है। पानी मिलता है। प्रकृति के माध्यम से ही जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं से होने वाले नुकसान को सीमित किया जाता है। खराब हो चुके वातावरण को फिर से दुरुस्त किया जा सकता है जिससे उससे दोबारा उपयोगी संसाधनों का उत्पादन हो सके। इस तरह से नेचर-बेस्ड सलूशंस यानी प्रकृति-आधारित समाधान कोई नई बात नहीं है। और इन नेचर-बेस्ड सलूशंस में से कई देशज और स्थानीय समुदायों की जानकारियों और कार्यप्रणालियों से विस्तार से जुड़े हुए हैं।

हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जलवायु परिवर्तन के सामने चुनौतियों का दायरा बड़ा हो जाता है। साल 2030 तक पृथ्वी के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होने की आशंका है। ऐसे में नेचर-बेस्ड सलूशंस को न केवल बड़े पैमाने पर लागू किया जाना चाहिए बल्कि इस काम को करने की रफ्तार काफी तेज होनी चाहिए। और यह बात हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के लिए बहुत ज्यादा सटीक है। 

नेचर-बेस्ड सलूशंस अनेक प्रयासों की एक बड़ी सीरीज से है जो प्रकृति द्वारा प्रेरित और प्रकृति के सहयोग से ही किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के नुकसान और पर्यावरण में गिरावट के कारण लोगों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें दूर करने में मदद के लिए नेचर-बेस्ड सलूशंस को अपनाया जाता है। 

द् इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन), नेचर-बेस्ड सूलशंस को प्राकृतिक या बदल चुकी पारिस्थितिकी की रक्षा, प्रबंधन और उसको दोबारा स्थापित करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों के रूप में परिभाषित करता है।

आईयूसीएन के मुताबिक, इसके ज़रिए सामाजिक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। यह सामाजिक चुनौतियों के प्रति अनुकूलन में मददगार है। साथ ही, इससे लोगों के हितों और जैव विविधता को फायदा पहुंचता है। 

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में पहले से ही उपयोग किए जाने वाले नेचर-बेस्ड सलूशंस के कुछ उदाहरणों में बांग्लादेश में फ्लोटिंग एग्रीकल्चर यानी तैरने वाली कृषि शामिल है। फ्लोटिंग एग्रीकल्चर एक पारंपरिक तरीका है जिसमें जलभराव वाले क्षेत्रों में सब्जियां उगाने के लिए प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पौधों की सामग्री से बने फ्लोटिंग राफ्ट का उपयोग किया जाता है। 

इसके अलावा, पूर्वोत्तर भारत में रिजेनरेटिव एंड इंटीग्रेटेड फार्मिंग भी इसका उदाहरण है जो भोजन की आपूर्ति करते हुए उत्पादन प्रणालियों को सक्रिय कर देता है। इसी तरह, शहरों की बाढ़ से निपटने के लिए चीन में वेटलैंड हैबिटैट्स का निर्माण भी इसका उदाहरण है। लोगों की आजीविका को बेहतर करने के लिए भारत में नेचर-बेस्ड टूरिज्म को बढ़ावा देना भी इसके उदाहरणों में है।

इस तरह के काम, सामाजिक चुनौतियों को हल करने के लिए प्रयास करते हुए, जैव विविधता को दुरुस्त करने और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और प्रभाव को कम करने के मामले में अनेक फायदे देते हैं।  

बढ़ते संकट से निपटने का अस्त्र

मिलेनियम इकोसिस्टम असेसमेंट में कहा गया है, “इंसान ने मानव इतिहास में किसी भी तुलनात्मक अवधि की तुलना में पिछले 50 वर्षों में पारिस्थितिक तंत्र को अधिक तेजी से और व्यापक रूप से बदल दिया है।” हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए विशेष रूप से संवेदनशील है। यह क्षेत्र, वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। 

भले ही, औसत वार्मिंग पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो, हिंदू कुश हिमालय में तापमान वृद्धि कम से कम 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक होने का अनुमान है।

इस वार्मिंग से ग्लेशियरों के ऊपर की ओर पिघलने को बढ़ावा मिलता है। इससे नीचे की ओर के क्षेत्रों में ग्लेशियर वाली झीलों में पानी बढ़ने लगता है और यह स्थिति बाढ़, भूस्खलन और मिट्टी के कटाव सहित एक अनेक तरह की आपदाओं का कारण बनती है। इन आपदाओं से पर्यावरण पर अनेक गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। 

इन परिस्थितियों में इस क्षेत्र को ऐसे समाधानों की आवश्यकता है जो वार्मिंग और आपदा के जोखिम को एक साथ कम कर सकें। पारिस्थितिकी और बुनियादी ढांचे को नुकसान सीमित कर सकें। साथ ही, मानव हितों में इजाफा भी कर सकें।

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चीन के उत्तर पश्चिमी युन्नान में स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक सामग्री से बने ग्रामीण बुनियादी ढांचे (फोटो: बंदना शाक्य)

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में प्रचुर जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) है। समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। एक-दूसरे से जुड़ी हुई पारंपरिक पारिस्थितिकीय जानकारियां और कार्य प्रणालियां (एसोसिएटेड ट्रेडिशनल इकोलॉजिकल नॉलेज एंड प्रैक्टिसेस) हैं। ऐसे में यह क्षेत्र नेचर-बेस्ड सलूशंस के विकास के लिए अपार अवसर प्रदान करता है। 

ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। मसलन, सिक्किम में बेमौसम बाढ़ और भूस्खलन से निपटने में नदी के किनारों की मजबूती के लिए देशी पौधों का उपयोग। चीन के युन्नान में कम्युनिटी-बेस्ड बर्ड फोटोग्राफी टूरिज्म। यह प्रयास वैज्ञानिकों, सरकारी अधिकारियों, नागरिकों और निजी क्षेत्र को बहुत कुछ सीखने की गतिविधियों के साथ-साथ पक्षियों और उनके आवास के संरक्षण को प्रोत्साहित करता है। साथ ही, ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों में नौकरी के अवसर भी प्रदान करता है।

वैश्विक स्तर पर, नेचर-बेस्ड सलूशंस की सामान्य मान्यता, अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बोनाइज करने, इकोसिस्टम की गिरावट को दुरुस्त करने और कोविड-19 के प्रभावों से हुए नुकसान से निकलकर दोबारा बेहतर हालात बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण नीतिगत साधन के रूप में रही है। दिसंबर 2022 में, द् कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क, सीबीडी कॉप 15 पर सहमत हुआ। यह पारिस्थितिकी सेवाओं को बहाल करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में नेचर-बेस्ड सलूशंस पर जोर देता है। 

वास्तविक नेचर-बेस्ड सलूशंस के लिए लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट, क्रॉस-सेक्टोरल प्लानिंग और इसमें सहभागिता करने वालों की व्यापक स्तर पर इंगेजमेंट की आवश्यकता होती है।

नेचर-बेस्ड सलूशंस को नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रीब्यूशंस में प्रमुख अनुकूलन उपायों के रूप में हाइलाइट किया जाता है। नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रीब्यूशंस, एक संकल्प है जो संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में दुनिया भर के कई देशों द्वारा लिया गया। 

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के देश इसको लेकर गति पकड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, सूखे, पानी की कमी और भूस्खलन का समाधान निकालने के उद्देश्य से बांग्लादेश की राष्ट्रीय अनुकूलन योजना में स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट जैसे नेचर-बेस्ड सलूशंस पर जोर है। चीन में अर्बन फॉरेस्ट पार्क और स्पन्ज सिटी जैसी अवधारणाएं नीतिगत ध्यान आकर्षित कर रही हैं।

लेकिन नेचर-बेस्ड सलूशंस को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कुछ बेहद जरूरी बातों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता होती है: नेचर-बेस्ड सलूशंस के रूप में किस तरह के उपाय उपयुक्त हैं? उनसे क्या-क्या फायदे हो सकते हैं, और हम उनका मापन कैसे कर सकते हैं?

आईयूसीएन, नेचर-बेस्ड सलूशंस के डिजाइन और एप्लीकेशन के लिए एक वैश्विक मानक का सुझाव देता है। यह आठ मानदंडों को रेखांकित करता है: सलूशंस को सामाजिक चुनौती का समाधान अवश्य करना चाहिए; इनका डिजाइन बड़े स्तर के लिहाज से होना चाहिए; बायोडायवर्सिटी नेट गेन प्रदर्शित होना चाहिए; इनक्लूसिव गवर्नेंस होना चाहिए; आर्थिक रूप से व्यावहारिक होना चाहिए; बैलेंस ट्रेड-ऑफ होना चाहिए; एडाप्टिव लर्निंग पर विचार होना चाहिए; और सस्टेनेबिलिटी के एलिमेंट्स में ये होने चाहिए। 

इसका मतलब यह है कि वास्तविक नेचर-बेस्ड सलूशंस के लिए लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट, क्रॉस-सेक्टोरल प्लानिंग और इसमें सहभागिता करने वालों- जिनमें नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, निवेशकों और सिविल सोसाइटी शामिल हैं- की व्यापक स्तर पर इंगेजमेंट की ज़रूरत होती है।

नेचर-बेस्ड सलूशंस के लिए आगे का रास्ता

हिंदू कुश हिमालय में नेचर-बेस्ड सलूशंस को आगे बढ़ाने के लिए तीन बातें ज़रूरी हैं:

1) नेचर-बेस्ड सलूशंस ऐसे हों जिनमें सामाजिक रूप से सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। ये कुछ ऐसे होने चाहिए जो जेंडर इक्वलिटी यानी लैंगिक समानता को बढ़ावा दें। ये इस तरह से तैयार किए जाएं जिनमें, जिस जगह पर इनको लागू किया जाना है, वहां के मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों को इनमें शामिल किया जा सके। साथ ही, इनकी डिजाइन कुछ इस तरह से होनी चाहिए जिनमें मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों की परंपरागत पारिस्थितिकीय जानकारियों और विकास की आकांक्षाओं पर विचार किया जा सके।  

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में लगभग 80 फीसदी ग्रामीण समुदाय अपनी आजीविका के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं। और जब तक नेचर-बेस्ड सलूशंस को कुछ इस तरह से डिजाइन नहीं किया जाता जिससे इस ग्रामीण समुदाय को न्यायसंगत और समावेशी विकास का लाभ मिल सके, तब तक इस तरह के प्रयास प्रकृति और लोगों को वास्तविक फायदे नहीं दे सकेंगे। 

2) नेचर-बेस्ड सलूशंस को सरकार, सिविल सोसाइटी, रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंटरनेशनल एजेंसीज और प्राइवेट सेक्टर सहित विभिन्न हितधारकों के साथ मिलकर डिजाइन किया जाना चाहिए। चीन में अर्बनबायनेचर प्रोग्राम – नेचर-बेस्ड सलूशंस में यूरोप से सबसे बेहतर कार्यप्रणालियों को लागू करने के लिए चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज और यूरोपीय यूनियन द्वारा एक संयुक्त पहल – इसका एक अच्छा उदाहरण है। इस प्रयास में वैश्विक स्तर पर विभिन्न समूहों की सहभागिता है और ये आपस में सहयोग करते हैं। इसमें अन्य हितधारकों के साथ सहयोग के लिए सरकारी क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

3) इसके लिए लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट बेहद अहम है। नेचर-बेस्ड सलूशंस, समय के साथ अधिक प्रभावी हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि जैव विविधता के बढ़नेे से लोगों को भोजन, लकड़ी जैसी वस्तुएं आसानी से प्राप्त हो सकती हैं। पर्यटन को बढ़ावा मिलने की संभावना बनती है। अपशिष्ट का बेहतर प्रबंधन हो सकता है। आपदा और उसके प्रभावों को कम किया जा सकता है। 

नेचर-बेस्ड सलूशंस से लंबी अवधि में क्या-क्या फायदे हैं और उसकी क्या वैल्यू है, इस बात को लोगों के बीच अच्छे ढंग से ले जाना चाहिए जिससे लोग इसको एक निवेश के रूप में स्वीकार करें। 

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में इस तरह के निवेश को बढ़ाने के लिए एक फ्रेमवर्क – द् माउंटेन ऑफ आपर्टूनिटी इन्वेस्टमेंट फ्रेमवर्क- आईसीआईएमओडी द्वारा डिजाइन किया जा रहा है, ताकि निवेशकों के बीच गठजोड़ बनाने और स्थायी वित्तपोषण विकल्पों का पता लगाने में मदद मिल सके।

अगर हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में जलवायु, जैव विविधता और विकास से जुड़े संकटों का एक साथ हल निकालना है तो नेचर-बेस्ड सलूशंस को बड़े पैमाने पर लागू किया जाना चाहिए और इसको लागू करने की गति भी तेज होनी चाहिए। 

इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र के सभी आठ देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान) को सामूहिक प्रतिबद्धताओं और मजबूत सार्वजनिक निवेश के साथ नेचर-बेस्ड सलूशंस के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए सक्षम राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करना चाहिए। 

और इन देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, उनमें ग्लेशियरों के पिघलने से लेकर ट्रांसबाउंड्री लैंड और वॉटर इकोसिस्टम को दोबारा दुरुस्त करने के प्रयास इत्यादि शामिल हैं। इनको लेकर साझा क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत होगी और उससे सीखना होगा। साथ ही, हासिल की गई सफलताओं को आधार बनाकर आगे कामयाब होना होगा। 

यह कार्य विश्व बैंक, आईसीआईएमओडी और द् थर्ड पोल के बीच एक सहयोगी संपादकीय सीरीज़ का हिस्सा है। यह “रीजनल कोऑपरेशन फॉर क्लाइमेट रिजिल्यन्स इन साउथ एशिया” पर जलवायु विशेषज्ञों और रीजनल वॉइसेस को एक मंच पर लाता है। लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार और मत उनके अपने हैं। इस सीरीज़ को यूनाइटेड किंगडम के फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस द्वारा प्रोग्राम फॉर एशिया रिजिल्यन्स टू क्लाइमेट चेंज – विश्व बैंक द्वारा प्रशासित एक ट्रस्ट फंड- के माध्यम से फंड किया गया है।

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