प्रकृति

फिशिंग कैट के अस्तित्व पर संकट: एशिया के वेटलैंड की जंगली बिल्ली को बचाने के लिए शोधकर्ताओं के प्रस्ताव

पर्यावास के विनाश और मछुआरों के साथ संघर्ष के कारण मछली का शिकार करने वाली वेटलैंड की इस बिल्ली की आबादी लगातार सिकुड़ रही है। जिन इलाक़ों में इनकी आबादी है, उन सभी क्षेत्रों में इसको बचाने के लिए शोधकर्ता काम कर रहे हैं।
<p><span style="font-weight: 400;">दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की एक दुर्लभ जंगली बिल्ली फिशिंग कैट को हैबिटैट लॉस और प्रतिशोध में होने वाली हत्या से खतरा है। (फोटो: फेलिक्स चू / अलामी)</span></p>

दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की एक दुर्लभ जंगली बिल्ली फिशिंग कैट को हैबिटैट लॉस और प्रतिशोध में होने वाली हत्या से खतरा है। (फोटो: फेलिक्स चू / अलामी)

हल्के झिल्लीदार पंजे वाली फिशिंग कैट पानी में मछली का शिकार कर सकती हैं और अपने पैने पंजों से ये फिसल रहे शिकार को भी पकड़ सकती हैं। इनके शरीर पर रोएं की दो परतें हैं जिनकी मदद से वो ख़ुद को सूखा रख सकती हैं। इस प्रजाति की आबादी दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के वेटलैंड्स यानी आर्द्रभूमि में बिखरी हुई है, लेकिन रात में सक्रिय रहने वाली यह बिल्ली दुर्लभ हो चुकी है और शायद ही कभी देखी जाती है। 

इसकी कुल जनसंख्या की जानकारी उपलब्ध नहीं है। मछली पकड़ने वाली यह बिल्ली विलुप्त होने की कगार पर है क्योंकि इसको कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ रहा है। 

जिन इलाकों में फिशिंग कैट्स पाई जाती हैं, उनके कुछ हिस्सों में इनको निशाना बनाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें मछली चुराने वाला जानवर समझा जाता है और ये अक्सर मछली पकड़ने वाले जाल को बर्बाद कर देती हैं। कुछ अन्य इलाक़ों में मांस के लिए इनका शिकार किया जाता है। पूरे एशिया की फिशिंग कैट्स की रेंज में इनके लिए एक आम खतरा इनके हैबिटेट यानी प्राकृतिक वास का नुकसान है। 

फिशिंग कैट्स का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इसका अस्तित्व इसके आर्द्रभूमि पर्यावास की सुरक्षा और बहाली पर टिका है। इसके अलावा, लोगों का इनके साथ शांतिपूर्ण तरीक़े से रहना भी ज़रूरी है। इनके अस्तित्व को बचाने के लिए कई परियोजनाएं चल रही हैं। 

फिशिंग कैट पर बड़ा खतरा

केवल वेटलैंड्स में पाए जाने की वजह से फिशिंग कैट का अस्तित्व बहुत संवेदनशील है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी आर्द्रभूमि चाहे वह मैंग्रोव, दलदल, बाढ़ के मैदान हों या डेल्टा हों – ये क्षेत्र विकास, कृषि विस्तार और शहरीकरण के कारण सिमटते जा रहे हैं।

साल 1970 और 2015 के बीच, एशिया ने अपनी प्राकृतिक आर्द्रभूमि का 32 फीसदी खो दिया है। जलवायु परिवर्तन भी एक खतरा पैदा करता है: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत, जो फिशिंग कैट का एक मजबूत गढ़ है, इस सदी में समुद्र के स्तर के एक मीटर बढ़ने के चलते 669 वर्ग किलोमीटर तटीय आर्द्रभूमि और 889 वर्ग किलोमीटर खारे आर्द्रभूमि को खो सकता है।

वाइल्ड कैट रिसर्चर वनेसा हेरान्ज़ मुनोज़ कहती हैं कि फिशिंग कैट्स कई अलग-अलग वेटलैंड इकोसिस्टम में रह सकती हैं, लेकिन मैंग्रोव “असलियत में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण” हैं। वह कहती हैं कि इन जानवरों को मैंग्रोव पसंद हैं क्योंकि उनकी घनी जड़ें एक आश्रय प्रदान करती हैं जहां वे छिप सकते हैं और जीवित रह सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में भी मैंग्रोव महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे अन्य प्रकार के वनों की तुलना में अधिक कार्बन स्टोर करते हैं। लेकिन एशिया के मैंग्रोव खतरे में हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में मछली पालन, कृषि और ताड़ के तेल के बागानों के रूपांतरण के कारण साल 2000 और 2012 के बीच 100,000 हेक्टेयर से अधिक मैंग्रोव नष्ट हो गए।

fishing cat peeking out from mangrove trees
दक्षिण भारत के गोदावरी नदी डेल्टा में मैंग्रोव के एक असुरक्षित पैच में एक फिशिंग कैट की तस्वीर (फोटो: श्री चक्र प्रणव)

मुनोज़ का कहना है कि मैंग्रोव विनाश के कारण वियतनाम के मेकांग डेल्टा में फिशिंग कैट्स के पहले से ही विलुप्त होने का खतरा है। यह प्रजाति एक समय में जावा, इंडोनेशिया में भी पाई जाती थी, लेकिन साल 2000 के बाद से वहां नहीं देखी गई है। वह कहती हैं, “कुल मिलाकर, दक्षिण पूर्व एशिया में स्थिति काफी गंभीर है।”

कैमरा ट्रैप की मदद से 2015 में, मुनोज़ और उनकी टीम ने दक्षिण-पश्चिम कंबोडिया के तटीय मैंग्रोव में दो स्थानों पर फिशिंग कैट्स की खोज की। यह 12 वर्षों में इस प्रजाती को लेकर देश का पहला रिकॉर्ड है। मुनोज़ कहती हैं, “इस तरह की उम्मीद थी कि हम उन्हें मैंग्रोव में पाएंगे।” स्थानीय स्तर पर उन्हें ‘क्ला ट्रे’ के नाम से जाना जाता है। यह आबादी काफी कम है। इनकी वास्तविक संख्या को लेकर संकोच की स्थिति है।   

इस खोज के एक साल बाद, उन्होंने इस प्रजाति और इसके घटते प्राकृतिक वास को बचाने के लिए एक संरक्षण पहल, क्ला ट्रे कंबोडियन फिशिंग कैट प्रोजेक्ट की स्थापना की।

एशिया भर में फिशिंग कैट्स की आबादी की सीमाएं ज्यादातर इंसानों के साथ मिलती-जुलती हैं। इस प्रजाति के हाल के वितरण को मैप करने वाले हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान में फिशिंग कैट्स के अनुमानित क्षेत्र और मनुष्यों के क़ब्ज़े वाले 80 फीसदी क्षेत्र के साथ ओवरलैप हैं जिनमें खेती योग्य भूमि और बस्तियां शामिल हैं।  

पूर्वी भारत के तटीय मैदानों; बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के सिंधु-गंगा के मैदानों; और कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम के मेकांग नदी घाटी व बाढ़ के मैदानों में यह ओवरलैप विशेष रूप से अधिक है। 

फिशिंग कैट को कहां बचाया जा सकता है?

फिशिंग कैट के ज्ञात वितरण के तकरीबन 40 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत, इस प्रजाति के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। जब दिव्यश्री राणा ने फिशिंग कैट पर अपने मास्टर्स रिसर्च के लिए इनमें से कुछ क्षेत्रों का दौरा किया, तो उन्होंने देखा कि प्रत्येक प्राकृतिक वास फिशिंग कैट्स के लिए अपनी अनोखी चुनौतियां पेश करता है।

उदाहरण के लिए, उत्तरी पूर्वी तट पर उन्होंने पाया कि फिशिंग कैट्स मारी जाती हैं क्योंकि वहां लोगों के लिए उनके तालाब में पाली जाने वाली मछलियां कीमती हैं। वहीं दूसरी ओर, नीचे दक्षिण में, जहां मछलियां प्राकृतिक जल में अधिक मात्रा में थीं, मछुआरों को वो ख़तरा नहीं लगी। लेकिन वहां, प्राकृतिक वास का नुकसान इन बिल्लियों के लिए एक बड़ा खतरा थी। 

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज़ में अब एक पीएचडी की छात्रा राणा को इस हालात ने इस प्रजाति के लिए एक ‘कंजर्वेशन ब्लूप्रिंट’ तैयार करने के लिए प्रेरित किया।

fishing cat sitting in mud among mangrove shoots
फिशिंग कैट के वेटलैंड प्राकृतिक वास को अधिकांश स्थानों पर खतरा है (फोटो: पार्थ दे)

यह जानते हुए कि फिशिंग कैट, मध्यम तापमान वाले गीले और निचले इलाकों को पसंद करती है, राणा और उनके सहयोगियों ने सबसे पहले, भारत में उन क्षेत्रों की मैपिंग की जहां फिशिंग कैट के रहने की अच्छी संभावना है, लेकिन इस प्रजाति का कोई पूर्व रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने जिला स्तर पर ऐसे 156 क्षेत्रों की पहचान की। शोधकर्ताओं का कहना है कि इन जिलों का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए, जहां छोटी, अलग-थलग आबादी मौजूद हो सकती है।

उन्होंने तराई आर्क – घास के मैदानों वाला और दलदली क्षेत्र जो उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल में फैला है – में फिशिंग कैट्स के प्राकृतिक वास के कई क्षेत्रों की पहचान की है जहां इनके होने की संभावना है। राणा कहती हैं कि भारतीय तराई में फिशिंग कैट के रेंज के अध्ययन पर ध्यान देना चाहिए। उनके अध्ययन का पूर्वानुमान है कि यह भारत के उन तीन क्षेत्रों में से भी एक है, जहां प्राकृतिक वास में कनेक्टिविटी काफी अच्छी है, अन्य दो, पूर्वी तट और उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदान हैं।

एक साथ जुड़े हुए ये हैबिटैट फिशिंग कैट्स को इधर-उधर घूमने और आनुवंशिक रूप से अलग-अलग फिशिंग कैट्स के साथ प्रजनन करने की अनुमति देते हैं, जो स्वस्थ आबादी को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। राणा चेतावनी देते हुए कहती हैं कि लेकिन सड़क और रेलवे जैसे विकास इस संपर्क को बाधित कर सकते हैं। 

राणा और उनकी टीम ने उन 12 भारतीय राज्यों में से हर एक को अपने रिसर्च का हिस्सा रखा जहां फिशिंग कैट्स के पाए जाने की जानकारी है। इन राज्यों को इस रिसर्च के अंतर्गत एक ‘कंजर्वेशन लाइक्लीहुड’ स्कोर दिया गया। यह स्कोर इनके संरक्षण बजट व नेट जीडीपी के आधार पर रखा गया। इन दोनों को सकारात्मक संकेतक के रूप में उपयोग किया गया। इसके साथ उस इलाक़ों में मौजूद मछुआरों की आबादी को भी एक फैक्टर रखा गया। इन्होंने मछुआरों की आबादी को एक नकारात्मक संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया। मछुआरों की मौजूदगी का मतलब है वेटलैंड का अधिक इस्तेमाल और इस वजह से फिशिंग कैट्स के संरक्षण परियोजना के प्रति विद्वेष की आशंका। 

इन बिंदियों का उपयोग करते हुए, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड “संरक्षण की सफलता की सबसे कम संभावना” वाले राज्यों के रूप में उभरे। दूसरी ओर, उत्तराखंड, उच्चतम संरक्षण क्षमता के साथ उभरा।

राणा के अध्ययन ने प्राकृतिक वास की गुणवत्ता और फिशिंग कैट्स के ठौर-ठिकानों के रिकॉर्ड के आधार पर उच्चतम ‘संरक्षण प्राथमिकता’ वाले जिलों की पहचान करने के लिए एक दूसरे, जिला-स्तरीय मेट्रिक (मापन) का भी उपयोग किया। 

उन्होंने पाया कि इनमें से अधिकतर उच्च प्राथमिकता वाले ज़िले पश्चिम बंगाल और ओडिशा में थे। राणा कहती हैं, “इसके अलावा, गैर-सरकारी और सरकारी संगठनों के फंड्स से चल रहे संरक्षण प्रयासों के लिए, हमने संयुक्त रूप से कंजर्वेशन ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिए एक और जिला-स्तरीय मेट्रिक का उपयोग किया।”

भारत में 2000 से फिशिंग कैट उपस्थिति के रिकॉर्ड का नक्शा। स्रोत: राणा और अन्य, जर्नल फॉर नेचर कंज़र्वेशन (ग्राफिक: द् थर्ड पोल)

2010 में शुरू की गई एक शोध और संरक्षण परियोजना, द् फिशिंग कैट प्रोजेक्ट की सह-संस्थापक टियासा आध्या, जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल और ओडिशा में काम कर रही हैं, अध्ययन की कार्यप्रणाली से सहमत नहीं हैं। आध्या बताती हैं कि कंज़र्वेशन के लिए अकेले सरकार द्वारा ही धन प्राप्त नहीं हो रहा है और गैर-सरकारी संगठनों वाले निवेश – जैसे कंज़र्वेशन चैरिटीज़ पैन्थेरा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और फिशिंग कैट कंज़र्वेशन एलायंस से प्राप्त होने वाले फंड्स – को अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है। वह यह भी कहती हैं कि जीडीपी संरक्षण क्षमता को नहीं बल्कि पर्यावरण के विनाश का संकेत हो सकता है।

आध्या का कहना है कि फिशिंग कैट के लिए एक कंजर्वेशन ब्लूप्रिंट को इस बात का आकलन करना ही चाहिए कि उनके लिए कितना प्राकृतिक वास बचा हुआ है और साथ ही साथ मानव जनित खतरों के हॉटस्पॉट के नक्शे तैयार करने चाहिए। वह कहती हैं, “हमें सड़क हादसों से संबंधित काफ़ी ज़्यादा आंकड़ों की ज़रूरत है, ताकि हादसों के लिहाज़ से संवेदनशील सड़कों के हिस्सों की पहचान की जा सके और ऐसी दुर्घटनाओं को कम करने के उपायों को लागू किया जा सके।”

फिशिंग कैट के लिए ज़मीन पर कड़ी नज़र रखना है ज़रूरी

इस साल, द् फिशिंग कैट प्रोजेक्ट ने प्रजाति की समझ को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण और अन्य संगठनों के साथ मिलकर एक कार्यक्रम शुरू किया है। वे संघर्षग्रस्त क्षेत्रों से स्थानीय लोगों को, कैद में रखी गई फिशिंग कैट को देखने के लिए आमंत्रित करते हैं, और उन्हें इसके आहार और व्यवहार के बारे में बताते हैं।

आध्या कहती हैं कि इसमें यह बताया जाता है कि फिशिंग कैट्स, मछलियों के साथ-साथ चूहा जैसे अन्य जानवरों का भी शिकार करती हैं। इस बात पर रोशनी डाली गई कि फिशिंग कैट्स किसानों को अपने खेतों में इन जानवरों से छुटकारा दिलाने में मददगार हो सकती हैं। इससे प्रजाति के बारे में लोगों की धारणा बदल गई। स्थानीय लोगों द्वारा चिड़ियाघर के दौरे के बाद, क़ैद में रखी गई दो बिल्लियों को एक याचिका पर हस्ताक्षर के बाद छोड़ दिया गया। इन्हें पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले से पकड़ा गया था जहां संघर्ष अधिक है।

fishing cat in cage on ground surrounded by group of people
छह महीने तक चिड़ियाघर के बाड़े में रखने के बाद एक मादा फिशिंग कैट को मई 2022 में पश्चिम बंगाल के हावड़ा में कुलिया गांव के पास छोड़ दिया गया। (फोटो: तमाल दास, ह्यूमन एंड एनवायरनमेंट एलायंस लीग)

आध्या, ओडिशा सरकार के निकाय चिल्का विकास प्राधिकरण के साथ चिल्का झील में फिशिंग कैट के संरक्षण के लिए एक पंचवर्षीय कार्य योजना पर भी काम कर रही हैं, जो फिशिंग कैट के लिए एक प्रमुख निवास स्थान है। इस योजना के तहत एक लक्ष्य आर्द्रभूमि में उगाए जाने वाले चावल की पारंपरिक किस्मों की खेती को बढ़ावा देना है।

आध्या कहती हैं कि वेटलैंड में चावल मॉनसून के दौरान छह फीट तक बढ़ता है और फिशिंग कैट के लिए एक मौसमी आवास प्रदान करता है। जबकि जल-कृषि जो कि क्षेत्र में भूमि उपयोग का एक प्रमुख रूप है, आर्द्रभूमि को बदल देता है और प्रदूषित पानी को चिल्का झील में छोड़ देता है, जो कि देसी मछली की आबादी के लिए खराब है। 

आध्या को उम्मीद है कि जैविक रूप से उगाए गए चावल का विपणन उन जिलों से बाहर किया जा सकता है जहां स्थानीय स्तर पर इसकी खपत होती है और इससे फिशिंग कैट्स के वेटलैंड प्राकृतिक वास के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।

आध्या कहती हैं, “फिशिंग कैट प्रोजेक्ट, फिशिंग कैट कंज़र्वेशन को स्वस्थ वेटलैंड और मानव जीविका से जोड़ने में विश्वास करता है। हम हमेशा प्रोटेक्टेड एरिया नेटवर्क के बाहर काम करते रहे हैं, ज़्यादातर इसलिए क्योंकि वहां आप मुख्य रूप से फिशिंग कैट्स पाते हैं।”

फिशिंग कैट के लिए कई अन्य जगहों पर भी बची हुई आबादी की रक्षा के लिए योजनाएं चल रही हैं। कंबोडिया में, मुनोज़ की टीम इन जानवरों के लिए और अधिक पर्यावास प्रदान करने की आशा में स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ कमज़ोर हो चुके मैंग्रोव जंगलों को बहाल करने के लिए काम कर रही है। वे व्यक्तियों और समुदाय संरक्षित क्षेत्र समितियों के साथ काम करते हैं और मैंग्रोव बहाली कार्य का मार्गदर्शन करते हैं और इस काम के लिए फंड्स की व्यवस्था करते हैं।

देश के दक्षिण-पश्चिम में मौजूदा आबादी पर कड़ी नज़र रखने के अलावा, मुनोज़ कंबोडिया के मध्य में टोनले सैप झील पर एक साइट का सर्वेक्षण कर रही हैं।

वह कहती हैं, “वहां हम अभी भी फिशिंग कैट्स की तलाश में हैं।” वह लाओस-कंबोडिया सीमा पर मेकांग नदी के बाढ़ वाले जंगलों का सर्वेक्षण करने के लिए भी तैयारी कर रही हैं।

मुनोज़ कहती हैं, “हम सभी बची हुई आबादी की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।”