प्रकृति

बदलते लैंडस्केप और बच्चों के बीच बढ़ता डर: कश्मीर में मानव-वन्यजीव संघर्ष

कश्मीर में जंगली जानवरों के हमले ग्रामीण समुदायों को प्रभावित कर रहे हैं। इस बीच अधिकारी और संरक्षणवादी इस समस्या की जड़- जानवरों के हैबिटैट की बर्बादी- को सुलझाना चाहते हैं और उसका समाधान खोज रहे हैं।
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इस साल जून में उत्तरी कश्मीर के एक दूर और एकांत हिस्से में एक आठ वर्षीय बच्ची इकरा जान पर एक तेंदुए ने उसके घर के पास हमला कर दिया। तबसे इकरा सदमे में है। ख़ुशक़िस्मती से वह उस हमले में बच गई। वो उस वक़्त अपनी मां के साथ थी और एक जंगली पहाड़ी पर अपने परिवार की गायों को चरा रही थी। पिछले हफ़्ते, उसी तेंदुए ने पास के एक इलाके में दो अन्य बच्चों पर भी हमला किया था। वो हमले में नहीं बच पाए।

उस क्षेत्र के वन्यजीव विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2010 की शुरुआत से मार्च 2020 के अंत तक, तेंदुए और भालू सहित जंगली जानवरों ने कश्मीर में 166 लोगों पर हमला करके उन्हें मार डाला और 2,659 को घायल कर दिया। (ये डेटा द् थर्ड पोल को प्रिंट फॉर्म में दिया गया है और यहां ऑनलाइन देखा जा सकता है।) वन्यजीव वार्डन इंतेसर सुहैल के अनुसार, ये संख्या 1990 के दशक की तुलना में काफी अधिक है। पिछले एक दशक में कश्मीर में मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। घाटी में वन्यजीव विभाग नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए हैं, वन रक्षकों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और उपकरण और समुदायों के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी बनाए गए हैं। तुलनात्मक रूप से, इस प्रयास की वजह से पिछले कुछ वर्षों में मौतों और चोटों की संख्या में कमी हुई है। लेकिन इस साल अब तक 10 से अधिक मौतों के साथ, समुदायों में विशेष रूप से दूरदराज के इलाकों में चिंता की भावना है।

दुनिया के इस हिस्से में विश्वसनीय डेटा मिलना बहुत मुश्किल है – लेकिन रिपोर्टिंग की वजह से वन्यजीवों के हमलों की संख्या पता चल पाई है। कश्मीर में मोबाइल फोन के उपयोग में वृद्धि और इंटरनेट की वजह से अधिक लोग जागरूक हैं और वो समझते हैं कि उन्हें वन्यजीवों के हमलें रिपोर्ट करनी चाहिए और इसे करने के आसान तरीके भी हैं। बेहतर रिपोर्टिंग से अधिकारियों को घटनाओं से तेजी से निपटने में मदद मिलती है, घायल लोगों और जानवरों दोनों को बचाया जा सकता है। लेकिन समस्या का मूल कारण अभी अनियंत्रित है और बदतर होता जा रहा है: सीमाओं से घिरे हुए कश्मीर के वन्यजीव दबाव में हैं। इस दबाव का कारण है लोगों की जनसंख्या में बढ़ोतरी और इन जानवरों के आवास का विनाश।

वन्यजीव विभाग और वन्यजीव एसओएस जैसे संरक्षण एनजीओ लोगों और जानवरों के साथ रहने के तरीके खोजने के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन जब ऐसे हमले होते हैं, तो समुदाय के लोग अक्सर ग़ुस्से से उबल जाते हैं। पूरी की पूरी भीड़ शिकार करने और उस जानवर को मारने के लिए इकट्ठा हो जाती है। यह एक कारण है कि वन्यजीव विभाग ने हमले होने पर कुशलता से प्रतिक्रिया करने की अपनी क्षमता बढ़ा दी है – बढ़े हुए तनाव केवल स्थिति को अक्सर ख़राब कर देते हैं। लेकिन इंतेसर सुहैल और संरक्षणवादी आलिया मीर दोनों के लिए, मानव-वन्यजीव संघर्ष से वास्तव में निपटने का एकमात्र तरीका उन आवासों को संरक्षित और पुनर्स्थापित करना है, जिन पर कश्मीर के जंगली जानवर आश्रय और भोजन के लिए निर्भर हैं। इस खूबसूरत हिमालयी क्षेत्र के “बेज़ुबान साथियों” को अपने लोगों की तरह ही एक घर की ज़रूरत है।

प्रोडक्शन क्रेडिट:

आकिब फ़याज़ और दानिश काज़ी द्वारा निर्देशित।
आकिब फ़याज़ और दानिश काज़ी द्वारा निर्मित।
दानिश काज़ी द्वारा फिल्माया गया।
काशिफ शकील द्वारा एडिटेड।
लिज़ी हेस्लिंग और ऐरन वाईट को धन्यवाद।

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