उर्जा

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लक्ष्य के लिए ई-स्कूटर्स पर भारत का जोर

इस समय बाजार के एक बहुत छोटे हिस्से पर काबिज होने के बावजूद, इलेक्ट्रिक स्कूटर की उपभोक्ताओं के बीच मांग है क्योंकि ईंधन की कीमतें बढ़ती जा रही हैं और नए मॉडल उपभोक्ताओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हैं।
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<p>तमिलनाडु के ओरोविल में चार्ज होते इलेक्ट्रिक स्कूटर  (Image: Alamy)</p>

तमिलनाडु के ओरोविल में चार्ज होते इलेक्ट्रिक स्कूटर (Image: Alamy)

पुणे के एक व्यवसायी 58 वर्षीय महेश जोशी ने आठ महीने पहले अपनी पत्नी के लिए एक इलेक्ट्रिक स्कूटर चेतक खरीदा था। ई-स्कूटर जल्द ही उनकी पसंदीदा सवारी बन गयी। इलेक्ट्रिक स्कूटर बिना किसी दिक्कत के चलता है और ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों के खर्च से भी मुक्त रखता है। ऐसे में, पेट्रोल से चलने वाली मोटरसाइकिल बेमानी बनती जा रही है। जोशी, अब बेहद उत्सुकता के साथ बजाज ऑटो की दोबारा बुकिंग खुलने का इंतजार कर रहे हैं, जिससे वह अपने लिए भी एक इलेक्ट्रिक स्कूटर खरीद सकें। जोशी अकेले नहीं हैं। नोएडा के रहने वाले अविनाश शर्मा ने कुछ महीने पहले ओकिनावा आई-प्राइज ई-स्कूटर खरीदा था। तब से, उनकी पुरानी मोटरसाइकिल पार्किंग में खड़ी-खड़ी बेकार हो गई है।

जोशी और शर्मा जैसे संतुष्ट ग्राहक मानते हैं कि भारत की इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति का नेतृत्व दुपहिया वाहनों द्वारा हो सकता है। ई-स्कूटर को चलाने में लगने वाला खर्च, अन्य दोपहिया वाहनों को चलाने में लगने वाले खर्च का दसवां हिस्सा भर है। इसके अलावा जिस तरह से ईंधन की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे यह अंतर दिनों-दिन और बढ़ता जा रहा है। भारत की सड़कों पर कुल वाहनों में दुपहिया वाहन तकरीबन 81 फीसदी हैं। इलेक्ट्रिक दुपहिया वाहन सस्ते हैं और इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में इनकी पेबैक अवधि काफी कम है।

बहुत छोटा इलेक्ट्रिक स्कूटर बाजार

फिर भी, वर्तमान आंकड़ा बहुत छोटा है। 2019-20 में भारत ने 1,52,000 इलेक्ट्रिक दुपहिया वाहन बेचे। यह संख्या वित्त वर्ष 2018-19 में बेचे गये 1,26,000 से अधिक थी। लेकिन इस वित्त वर्ष में वृद्धि नहीं हो पाई, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था पर कहर बरपाया है। सोसाइटी ऑफ मैन्यूफैक्चर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एसएमईवी) के मुताबिक पिछले साल कुल 1,43,821 इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन बेचे गए। वर्ष-दर-वर्ष के हिसाब से देखें तो इसमें 6 फीसदी की गिरावट है। केंद्र सरकार की फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एफएएमई) पॉलिसी ने हर इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन पर 150,000 रुपये (2,000 अमेरिकी डॉलर) तक की सब्सिडी की पेशकश की है।

इसके पीछे मकसद यह था कि ज्यादा से ज्यादा लोग ई-स्कूटर और मोटरसाइकिल अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों, लेकिन 2020 में केवल 25,700 हाई-स्पीड स्कूटर (42-45 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति) बेचे गए थे। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के मुताबिक यह बाजार प्रति वर्ष 2 करोड़ दोपहिया वाहन बेचता है, उस लिहाज से देखें तो इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन में यह रूपांतरण नगण्य है।

बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज का आरोप है कि धीमी गति वाले और खराब-गुणवत्ता वाले उत्पाद बाजार में उतार दिये गये, इससे लोगों का रुझान ठीक से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की तरफ नहीं हुआ। बजाज कहते हैं, “जब आप एक नई तकनीक पेश करते हैं, तो इसका आकांक्षात्मक होना होता है। इलेक्ट्रिक वाहन लाभदायक नहीं होने का कारण केवल बैटरी की कीमत बहुत अधिक होना ही नहीं है, बल्कि यह भी सच्चाई है कि ये उत्पाद पर्याप्त रूप से आकांक्षात्मक नहीं हैं। ”

जब आप एक नई तकनीक पेश करते हैं, तो इसका आकांक्षात्मक होना होता है।
राजीव बजाज, बजाज ऑटो

भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी एथर एनर्जी के सह-संस्थापक तरुण मेहता का कहना है, ” भारत में और विश्व स्तर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की समस्या अच्छे उत्पादों की कमी है। टेस्ला केवल सब्सिडी के कारण ही सफल नहीं हुई बल्कि उसके पीछे असली कारण ये है कि कंपनी ने मॉडल एस में एक बहुत ही सफल, आकांक्षी और एक असाधारण किस्म के प्रोडक्ट बाजार में उतारे। बजाज का यह भी मानना ​​है कि पहले के कुछ लोगों द्वारा अपनाई गई रणनीति त्रुटिपूर्ण है। यदि आप एक एक्टिवा की कीमत पर ई-स्कूटर बनाते हैं (मुंबई में  81,000 रुपये या 1,083 डॉलर की कीमत पर) तो आप पैसे नहीं कमा पाएंगे।”

आकांक्षी भारतीय को लक्षित करना

ई-स्कूटर सेगमेंट अब उच्च श्रेणी को लक्ष्यित कर रहा है। दुनिया में सबसे बड़े दुपहिया निर्माता हीरो मोटोकॉर्प द्वारा समर्थित एथर ने 2018 में अपना पहला ई-स्कूटर 450 लॉन्च किया। इसकी कीमत एक्टिवा की तुलना में 30,000 रुपये ( 400 डॉलर) अधिक है। एथर की सफलता से बजाज और टीवीएस जैसे पुराने निर्माता, जो कि पहले से ही ई-स्कूटर्स पर काम कर रहे थे, बाजार में उच्च श्रेणी को लक्ष्यित करने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं। बजाज ने जनवरी 2020 में चेतक ब्रांड के तहत अपना पहला प्रोडक्ट बाजार में उतारा। रेट्रो-मॉर्डन स्टाइल के साथ यह मॉडल, बजाज की तुलना में अधिक खरीदारों को आकर्षित कर सकता है। ओकिनावा ऑटोटेक के संस्थापक और प्रबंध निदेशक जितेंद्र शर्मा कहते हैं कि हमें बाजार से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।

एक विशाल संभावित बाजार

ओकिनावा ऑटोटेक ने 2017 में बाजार में प्रवेश किया। यह I-Praise PraisePro और Ridge+  ब्रांड के तहत ई-स्कूटर बेचता है। इसने 90,000 से अधिक यूनिट बेची हैं। शर्मा का मानना ​​है कि कुछ वर्षों के बाद, इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स, अपने उत्पादन के पैमाने के कारण बहुत अधिक व्यवहार्य हो जाएंगे और उन्हें सब्सिडी की आवश्यकता नहीं होगी। वित्तीय सेवा कंपनी मोतीलाल ओसवाल के एक विश्लेषक, जिनेश गांधी ने हालिया रिपोर्ट में लिखा है कि वैसे तो ई-स्कूटर्स और बाइक्स की कीमत, पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की तुलना में अधिक होती है, लेकिन चीजें बदल रही हैं। ईंधन की कीमतों में वृद्धि हो रही है। लीथियम आयन बैटरी की कीमतों में कमी आ रही है। साथ ही, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सिडी दी जा रही है। इससे दोनों के बीच अंतर कम होता जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सब 340 बिलियन रुपये (4.55 बिलियन डॉलर) के स्कूटर सेगमेंट में प्रतिस्पर्धा के परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है, जिसके बाजार का आकार लगभग 56 लाख यूनिट है। कंसल्टेंसी मैकेंजी ने अनुमान लगाया है कि भारतीय ई-टू-व्हीलर बाजार वित्त वर्ष 2025 में 45-50 लाख तक पहुंच जाएगा। यह कुल बाजार का 25-30 फीसदी होगा। यह 2030 तक 90 लाख पहुंच जाएगा जो कुल बाजार का लगभग 40 फीसदी होगा।

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर प्रोत्साहन

राजीव बजाज का कहना है कि शहर आधारित दृष्टिकोण बेहतर परिणाम दिखा सकता है। वह कहते हैं, “यदि नीति-निर्माता कुछ शहरों पर ध्यान केंद्रित करने के मंत्र का पालन करते हैं और फिर एक लक्ष्य रखते हैं कि एक दशक के बाद पेट्रोल-डीजल वाले वाहन नहीं होंगे तो भारत, दुनिया को एक महान उदाहरण दिखा सकता है।” यह वैश्विक दोपहिया निर्माताओं से भी भागीदारी सुनिश्चित करेगा जो अभी तक इलेक्ट्रिक-दुपहिया वाहनों से दूर रहे हैं।

बजाज का कहना है, “देश को नीति और प्रोत्साहन दोनों की जरूरत है।” प्रोत्साहन और 5 फीसदी का कम जीएसटी अच्छा कदम है, लेकिन जब तक इस बात की स्पष्टता नहीं हो जाती है कि ये कब तक बरकरार रहेंगे, तब तक निर्माता पूरी क्षमता नहीं लगाएंगे। हालांकि कुछ लोग पहले ही जुआ खेल रहे हैं। ओला कंपनी के फाउंडर भाविश अग्रवाल ने 2022 तक 1 करोड़ ई-स्कूटर की क्षमता निर्माण वाली फैक्ट्री के लिए पिछले साल दिसंबर में 24 बिलियन रुपये (321 अमेरिकी डॉलर) के निवेश की घोषणा की है। अपनी पूर्ण क्षमता पर यह वैश्विक दुपहिया वाहन उत्पादन क्षमता के 20 फीसदी के बराबर होगा। उनका विजन भारत को, शहरी गतिशील वाहनों के उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित करने का है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ हाल में हुए एक इंटरव्यू में अग्रवाल ने कहा, “हम इसमें विश्व में अगुवा बनना चाहते हैं। हमारा मानना है कि हमारे पास भारत को विश्व मानचित्र पर स्थापित करने का यह एक बहुत ही अनूठा अवसर है।”

अगले कुछ वर्षों में दुपहिया वाहन के लिए चीजें नाटकीय रूप से बदलने जा रही हैं।
सोहिंदर गिल, हीरो इलेक्ट्रिक

एसएमईवी के डायरेक्टर-जनरल और ई-स्कूटर कंपनी हीरो इलेक्ट्रिक के चीफ एग्जीक्यूटिव सोहिंदर गिल कहते हैं, “सभी कंपनियों, विशेष रूप से ओला इलेक्ट्रिक, की योजनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि अगले दो वर्षों में ई-दुपहिया वाहनों के लिए नाटकीय रूप से चीजें बदलने जा रही हैं।” लेकिन गिल को इतना ज्यादा यकीन नहीं है कि यह बदलाव जल्द से जल्द होने जा रहा है जैसा कि अग्रवाल मानते हैं। गिल कहते हैं, “वह (अग्रवाल) मानते हैं कि यह 2022 तक होगा, लेकिन हममें से बाकी लोगों का मानना ​​है कि बाजार को उस पैमाने पर पहुंचने में सात से आठ साल लगेंगे।”

गिल की कंपनी, हीरो इलेक्ट्रिक, भारत में ई-दुपहिया वाहनों का सबसे बड़ी और सबसे पुरानी निर्माता है। इसने अपने हिस्से के काफी झटके भी झेले हैं। FAME II नीति में प्रोत्साहन को स्थानीय उत्पादन, बैटरी प्रौद्योगिकी, एक्सिलिरेशन और स्पीड से जोड़ा गया है। हीरो, कई अन्य लोगों की तरह, लेड-एसिड संचालित कम स्पीड वाले प्रोडक्ट (40 किमी प्रति घंटे से कम स्पीड) तैयार करते हैं और आयात पर निर्भर थे। जनवरी 2019 से बिकने वाली 52,959 हाई-स्पीड बाइक्स में से, केवल 31,813 वाहनों को FAME II स्कीम के तहत दिसंबर 2020 तक सब्सिडी दी गई, बाकी को अयोग्य घोषित कर दिया गया था। नीति में बदलाव ने हीरो को अपने प्रोडक्ट्स पर नये तरह से काम करने और योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जरूरी बदलाव करने के लिए प्रेरित किया। कंपनी के अनुसार, इस वित्त वर्ष में हीरो ने 53,400 यूनिट्स की बिक्री की है, जो पिछले साल की तुलना में 13 फीसदी की वृद्धि है।

गिल कहते हैं, “अब हमारे पास ऐसे मॉडल हैं जो सब्सिडी पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं हैं। भविष्य में भी एक ऐसी ही रणनीति होगी। ” वह कहते हैं कि FAME II से पहले उत्पादित सभी मॉडलों को सब्सिडी दी गई थी, जबकि अब केवल 20 फीसदी को सब्सिडी दी जाती है। कंपनी के उत्पादों पर औसतन सब्सिडी 14,000 रुपये (187 डॉलर) है, जो पूरी तरह से ग्राहक को दे दी जाती है।

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स निर्माता अब प्रतीक्षा कर रहे हैं कि सरकार FAME नीति के तीसरे चरण की घोषणा करे जिसमें विश्वास और निवेश को बढ़ावा देने वाली लंबी अवधि का रोडमैप हो। निर्माताओं में FAME II के गुण और अवगुण पर विभाजन है। बजाज का मानना ​​है कि पहले की नीति त्रुटिपूर्ण थी और उससे वांछित परिणाम, खासकर निर्माण स्थानीयकरण को अनिवार्य बनाने में, प्राप्त नहीं किए जा सके। जब एक नई तकनीक को बाजार में पेश किया जाता है, तो प्राथमिकता मांग की होनी चाहिए, क्योंकि मांग होने से स्केल बढ़ेगा और इससे स्थानीयकरण को बढ़ावा मिलेगा।

वहीं, एथर के मेहता जैसे अन्य लोगों का कहना है कि FAME II ने उद्योग को एक स्पष्ट दिशा दी और नीति के बाद ही चेतक और आई क्यूब जैसे कुछ विश्वसनीय उत्पाद लॉन्च हुए। मेहता कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि एक दशक की विफलता के बाद इस तरह की किसी नीति को प्रोत्साहित करना देश के हित में है जो आयात पर निर्भर हो।”

अंत में, यह तो जोशी और शर्मा जैसे खरीदार ही होंगे जो यह निर्धारित करेंगे कि कौन सी नीति काम करती है।