प्रकृति

सिंधु नदी में दुर्लभ डॉल्फिन की झलक

भारत में सिंधु नदी में डॉल्फिन के पहले सर्वेक्षण में व्हेल शावक समेत कई दुर्लभ प्राणियों की झलक मिली है।
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<p>An Indus river dolphin spotted in Dhunda [image courtesy: WWF-India]</p>

An Indus river dolphin spotted in Dhunda [image courtesy: WWF-India]

सिंधु नदी में डॉल्फिन की आबादी पर हुए अब तक के पहले सर्वेक्षण में पता चला है कि पंजाब की 20 नदियों के छोटे से हिस्से में पांच से ग्यारह विलुप्त प्रजातियां जीवित हैं। भारत में इनकी संख्या मात्र इतनी है।

इतनी कम संख्या होने के बाद भी, कुछ अच्छी बातें भी सामने आई हैं। सर्वेक्षण के दौरान शोधकर्ताओं ने एक व्हेल शावक भी पाया गया, जो यह दर्शाता है कि जनसंख्या में प्रजनन प्रक्रिया हो रही है। एक युवा व्हेल शावक की उपस्थिति एक आबादी के जीवन का संकेत है। विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि यद्यपि विभिन्न प्रजातियों के प्राणियों की संख्या कम है, लेकिन फिर भी 70 वर्षों से बीस नदी के ऊपर हरिके बैरेज में इनकी निरंतर उपस्थिति यह दर्शाती है कि अध्ययन में पाई गई किसी भी प्रजाति की संख्या में कोई कमी नहीं हुई है।

मुंडापिंड गांव के पास डाल्फिन  [image courtesy: WWF-India]
सिंधु नदी डॉल्फिन सर्वेक्षण, पंजाब के वन और वन्यजीव संरक्षण की साझेदारी के साथ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा 3-6 मई को किया गया था। बीस संरक्षण रिजर्व के रूप में नामित, सिंधु नदी के 185 किलोमीटर के हिस्से में, जिसे बीस संरक्षण विजवे के नाम से जाना जाता है, किया गया पहला व्यवस्थित सर्वेक्षण है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के नदी घाटी और जल नीति के निदेशक सुरेश बाबू कहते हैं, लोग अभी भी गंगा नदी की डॉल्फिन के बारे में बात करते हैं, लेकिन कोई भी, न तो राज्य स्तर पर, न ही राष्टीय स्तर पर, सिंधु नदी की डॉल्फिन के बारे में बात नहीं करता है। इसलिए, यह सर्वेक्षण हमें एक नजरिया देने में मदद करेगा। यह डॉल्फिन की आबादी की स्थिति को समझने में मदद करेगा और इसके निष्कर्ष हमें प्रजातियों को बचाने के लिए संरक्षण नीति बनाने में मदद करेंगे।

डॉल्फिन सर्वेक्षण 52 हेडवक् र्स, तलवारा से शुरू हुआ था और हरिके नूज पर खत्म हुआ था, बीस में पानी की कमी के कारण 52 हेडवक् र्स के 55 किलोमीटर नदी के निचले हिस्से में सर्वेक्षण सड़क द्वारा किया गया जबकि  शेष 130 किलोमीटर का सर्वेक्षण मोटरबोट्स के जरिये किया गया। प्रत्यक्ष गणना दो नाव और आठ पर्यवेक्षकों के समूह और दो डाटा रिकॉर्डर का प्रयोग कर के टेंडेम नाव सर्वेक्षण पद्धति से किया गया।

नाव के जरिये और पैदल जाकर दोनों तरह सर्वेक्षण किये गये। [image courtesy: WWF-India]
सर्वेक्षण के दौरान, सबसे पहले एक बूढ़े कमजोर शावक और एक अवयस्क के साथ एक महिला डॉल्फिन दिखाई दी। दूसरी डॉल्फिन पहली डॉल्फिन से आठ किलोमीटर दूर डाउनस्ट्रीम में दिखाई दी, वह भी एक बूढ़े कमजोर शावक और एक अवयस्क के साथ पाई गई, यह नदी में प्रजनन प्रक्रिया को दर्शा रहा था। प्रत्यक्ष गणना के आधार पर, बीस नदी के भारतीय हिस्से में हिंदु नदी में डॉल्फिन की संख्या लगभग पांच से ग्यारह है।

सिंधु नदी डॉल्फिन, (प्लांटानिस्टा गैगंटिका माइनर) ताजे पानी की नदी की डॉल्फिन में उपप्रजाति है और जो केवल भारत और पाकिस्तान की सिंधु नदी में पाई जाती हैं। ये आईयूसीएन द्वारा विलुप्तप्राय जानवर की सूची में शामिल की गई है और अनुमान है कि इसकी संख्या पाकिस्तान में केवल 2,000 से कम है। ताजे पानी की नदी में पाई जाने वाली अन्य उपप्रजाति गंगा नदी डॉल्फिन है, जोकि गंगा नदी की घाटी में पाई जाती है।

गंगा नदी डॉल्फिन की तरह, सिंधु नदी डॉल्फिन भी अंधी, नेवीगेटिंग और अपना शिकार ध्वनि के माध्यम से पकड़ती हैं। सिंधु नदी डॉल्फिन पहले नदी के सभी प्रमुख सहायक नदियों में पाए जाते थे, लेकिन अब भारत की बीस नदी के हिस्से तक सीमित हैं। ऐसा माना जाता है कि पूरे भारत और पाकिस्तान में, इस दुष्प्राय प्राणियों की संख्या कम होकर केवल पांचवा हिस्सा बचा है।

सिंधु और इसकी सहायक नदियों पर बनने वाले कई बांध, मेढ़ और बैराज ने नदियों और डॉल्फिन के आवास के विखंडन और उन्हें छोटी जगहों में बांटने का काम किया है। इन संरचनाओं ने डॉल्फिन को भारत व पाकिस्तान के बीच आने-जाने से रोक दिया और भारत में इनकी इतनी कम संख्या का अप्रजनन से प्रभावित होना वास्तविक खतरा है।

सर्वेक्षण टीम के सदस्य [image courtesy: WWF-India]
बाबू कहते हैं, नदियों का विखंडन ही सबसे बड़ा खतरा है और इसने डॉल्फिन के प्रवासी पथ को प्रभावित किया है। नदियों के विचलन ने उनके अस्तित्व को खतरे में डाला है।

मत्स्य पालन भी इसका एक बड़ा कारण है, क्योंकि डॉल्फिन अक्सर जाल में फंस जाती थी। रेत खनन और शिकार की कमी जैसी मुश्किलें भी डॉल्फिन को झेलनी पड़ी हैं।

पंजाब के वन और वन्यजीव संरक्षण विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया अब इन दुर्लभ प्रजातियों और उनके आवास को बनाने के लिए एक कार्यान्वित रोड मैप के साथ एक हिंदु नदी डॉल्फिन रणनीति तैयार कर रही है। वे क्या प्रजातियां नदी के निचले हिस्से से प्रवास करने में सक्षम हैं, ये जानने के लिए वे मानसून के बाद नदी के निचले हिस्से के बारे में भी अध्ययन करेंगे।