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विस्थापित हाथियों से संघर्ष कर रहे रोहिंग्या शरणार्थी

म्यांमार में बर्बरता के शिकार रोहिंग्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश में शरण ली और वे हाथियों वाले गलियारे के आसपास बस गये। इससे इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
<p>The IUCN team training refugees on how best to respond to elephants [image by: IUCN/Tarik Kabir M.A. Motaleb]</p>

The IUCN team training refugees on how best to respond to elephants [image by: IUCN/Tarik Kabir M.A. Motaleb]

अगर वो सामान्य भैंसे जैसे होते तो लोगों को फिक्र नहीं होती या कम फिक्र होती लेकिन ये तो हाथी हैं। कुछ तो 5 टन से भी ज्यादा भारी हैं। लेकिन भारी-भरकम होने के बावजूद अगर इन्हें कुछ असामान्य दिखता है तो ये आसानी से डर जाते हैं। इन दिनों कॉक्स बाजार की पहाड़ियों के ये हाथी रोहिंग्या शरणार्थियों से डरे हुए हैं।

अगस्त, 2017 में रोहिंग्या लोगों के अचानक सीमा पार आने से बांग्लादेश पूरी तरह हैरान-परेशान हो गया। रोहिंग्या शरणार्थियों को इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि उनके रहने के लिए कोई जगह है या नहीं या फिर उनके खाने की आपूर्ति होगी की नहीं। वे बस म्यांमार सरकार द्वारा किए गए विश्व इतिहास के सबसे क्रूर जातीय सफाई अभियान से मौत के डर से सीमा पार कर गये थे। वे हर जगह थे- धान के खेतों में, सड़क के किनारे गड्डों और नालियों में; उन्हें सीमा के पास कोई भी खाली जगह प्रयोग करने के लिए विवश होना पड़ा था।

इस समस्या का समाधान निकालने में बांग्लादेश सरकार को कई महीने लग गए। कुल आधिकारिक 7,00,000 शरणार्थियों में से 80 प्रतिशत शरणार्थी कॉक्स बाजार के किनारों पर अस्थायी शिविरों में भेजे गए थे।

दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविरों में से एक इन शिविरों में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक प्रमुख ट्रांसबाउंड्री हाथी आवास गलियारा पड़ता है। यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशनर फॉर रिफ्यूजीज (यूएनएचसीआर) के अनुसार, इस क्षेत्र में लगभग 40 हाथी हैं और जो भोजन की तलाश में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच घूमते हैं। शिविर निर्माण के बाद कॉक्स बाजार के रोहिंग्या शिविरों में हाथी के कारण हुई भगदड़ में 12 लोगों की मौत हो चुकी है।

एक शरणार्थी कैंप के पास हाथियों का गोबर। ये कैंप जिस जगह पर है पहले वो हाथियों के गलियारे का हिस्सा हुआ करता था।   [image by: IUCN/M.A. Motaleb]
परिणाम

इसको करने के दो संभावित परिणाम हैं। पहला, हाथी अपने क्षेत्र में अवांछित घुसपैठियों से परेशान होते रहेंगे और शरणार्थियों पर हमला करते रहेंगे, जो अचानक से एक बार उनके वनघर में आए थे।

दूसरा, शरणार्थी बदला लेने के लिए या तो हाथियों को मारेंगे या फिर उन्हें दूर भगाने के लिए उन्हें डराएंगे। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि हाथियों ने पहले से ही  अपने चलने की पद्धति बदल ली है। खतरनाक बात ये है कि  अनुमानित रास्ता सीमा के उस हिस्से से नया गलियारा लेता है, जहां म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं को वापस आने से रोकने के लिए सैकड़ों विस्फोटक माइन्स बना रखी हैं। स्थानीय प्राधिकरणों ने शरणार्थी शिविर की जगह बनाने के लिए 5,800 एकड़ पहाड़ी वन भूमि को साफ करा दिया है। यह एक अन्य कारण है कि हाथी, जिन्हें खाने के लिए पेड़ चाहिए, नीचे शिविर के पास आने लगे हैं।

यूखिया में पुलिस स्टेशन के एक इंस्पेक्टर मोहम्मद किसलु ने कहा, अक्टूबर 2017 में बालुखाली कैम्प-1 में ऐसे ही एक हाथी के आक्रमण में एक महिला और तीन बच्चों की मौत हो गई थी। जब पहले हाथी नीचे आया, तब वे इधर-उधर भागने लगे थे। उनमें से कुछ हाथियों को डराने और दूर भगाने के लिए लाठी और पेड़ के तने का इस्तेमाल कर रहे थे।

बचाव के कदम

हाथियों की भगदड़ के समय ली गई निजी वीडियो को देखने के बाद यूएनएचसीआर ने मनुष्य-हाथी के संघर्ष की गंभीरता का एहसास किया। यूएनएचसीआर के प्रवक्ता कैरोलिन ग्लक ने कहा कि शरणार्थियों के प्रवेश के साथ-साथ आने वाले पर्यावरणीय जोखिमों को दूर करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है।

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र एजेंसी और आईयूसीएन ने मनुष्य और हाथियों, जो एक-दूसरे के कार्यकलापों से समान रूप से डरते हैं, दोनों की मदद के लिए साझेदारी की है। इस योजना में शिविर में प्रवेश करने के बाद से, शरणार्थियों को हाथी के पास आने पर डरा कर, लेकिन बिना मारे  और भी बेहतर तरीके से प्रतिक्रिया देना सिखाते हैं।

यूएनएचआरसी-वित्त पोषित परियोजना के हिस्से के रूप में आईयूसीएन शरणार्थी और मेजबान समुदायों के साथ मानव-हाथी संघर्ष शमन के उपायों को लागू कने और पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ाएगा।

इन गतिविधियों में सामुदायिक परामर्श, सड़क संकेत स्थापित करना, प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता बढ़ाना, प्रतिक्रिया समूह बनाना और जागरूकता अभियान व रक्षा कार्यक्रम आयोजित करना शामिल है।

हाथी को कैसे रोकें

यूएनएचसीआर-आईयूसीएन कार्यक्रम के तहत रोहिंग्या-हाथी प्रतिक्रिया समूह के एक सदस्य अब्दुल लतीफ अगस्त 2017 में बांग्लादेश आने के बाद से कम से कम 14 हाथियों को देखा है।

सितंबर 2017 में हुए पहले हाथी आक्रमण के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, हमें बिल्कुल भी नहीं पता था कि हमें क्या करना चाहिए, जब वे यानी हाथी आक्रमण करते हैं। सभी लोग चिल्ला रहे थे और पागलों की तरह इधर-उधर घूम रहे थे। हर कोई एक-दूसरे में भाग रहा था।

जैसे-जैसे और हमले हुए, उन्होंने अपने को व्यवस्थित किया और रात को स्वंयसेवक अंधेरी पहाड़ियों में किसी भी संदिग्ध गतिविधि को देखने पर लोगों को चौकन्ना करने के लिए जागते रहते हैं। उनके पास कोई भी उपकरण नहीं था-हाथियों के आक्रमण की आपात स्थिति में हाथियों को दूर करने और सोए हुए शरणार्थियों को जगाने के लिए उन्हें केवल अपनी आवाज में तेज से चिल्लाने के लिए कहा गया था।

कैंप 3 के पास हाथियों का रास्ता [image by: IUCN/M.A. Motaleb]
प्रशिक्षण सरल था, एशियाई हाथियों के इतिहास और चरित्र पर कुछ प्रस्तुति, जो जानवरों के प्रति सम्मान बढ़ाने के लिए बनाया गया था, कुछ समूह-निर्माण अभ्यास और एक नकली हाथी और उसके घुटनों में तीन प्रशिक्षुओं के साथ घुसपैठ, अपने दोस्तों के साथ जबकि अन्य दूसरे लोग हाथी को दूर रखने और दर्शकों को बनाए रखने के लिए गाइड की नकल कर रहे थे। उत्तरदाताओं को फ्लैशलाइट, स्पॉटलाइट और सीटियां दी गई थी।

मोटालेब ने कहा कि हाथी प्रतिक्रिया टीमों को प्रशिक्षित करने की कुंजी उनके भीड़ को नियंत्रित करने की सीख देने में हैं और यह सुनिश्चित करने में कि कैंप से दूर हाथियों की रक्षा करने और उन्हें सिखाने के लिए 10 से अधिक लोगों को समूह जिम्मेदार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि  पिछले कुछ समय में, शरणार्थी पहले उन्हें चारों ओर से घेरेंगे, फिर उन्हें उत्तेजित करेंगे और फिर उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं छोड़ेंगे और तब वे उन पर प्रहार करेंगे।

यूएनएचसीआर के प्रवक्ता कैरोलिन ग्लक ने कहा कि वे शरणार्थियों और मेजबान समुदायों दोनों के बीच एक बेहतर पर्यावरणीय जागरूकता बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि इस नाजुक मसले को बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा सके।

 

(Mohammad Al-Masum Molla ढाका के पत्रकार हैं।)